सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

अपामार्ग के फायदे / Apamarg Ke Fayde


अपामार्ग (Apamarg) को चिरचिटा और औंगा भी कहते है। अपामार्ग का क्षुप बहुत प्रसिद्ध है। इसका क्षुप एक हाथ से तीन हाथ तक ऊंचा होता है। अपामार्ग के सर्वांग ही औषधोपयोगी है। प्रायः पंचांग ही ग्रहण किया जाता है।

अपामार्ग (Apamarg) दस्तावर, तिक्षण (कफ और वात नाशक), अग्निदीपक, पाचक, रुचिकारक एवं उल्टी, कफ, मेद (चर्बी), वायु, ह्रदयरोग, अफरा, बवासीर, खुजली, शूल, पेट के विकार और अपची का नाशक है।

अपामार्ग (Apamarg) हिचकी, दाद, आम (आम (Mucous) खाये हुये भोजन से उत्पन्न होने वाला पदार्थ, जो अग्नि के मंद होने के कारण पूरी तरह नहीं पकता। उस कच्चे रस को आम कहते है, यही प्रायः सब रोगों का मूल कारण है) का नाशक, अग्नि के समान तीक्ष्ण और स्त्रंसन (कच्चे-पक्के मल को गुदामार्ग द्वारा निकालनेवाला) है। यह नस्य द्वारा शिर के कृमियों को नष्ट करनेवाला, रक्तावरोधक और रक्तविकार नाशक है। नस्यकर्म और वमन (उल्टी) कर्म में श्रेष्ठ है।

नये चिकित्सा के मत से अपामार्ग (Apamarg) तीक्ष्ण, दीपन, अम्लतानाशक, रक्तवर्धक, शुद्धिकर, पथरी नाशक, मूत्रजनन, मूत्र की अम्लता नाशक, स्वेदल (पसीना लानेवाला), कफघ्न (कफ नाशक) और पित्तसारक (पित्त को निकानेवाला) है। अन्य औषधियों के साथ देने से इसका असर बहुत जल्दी होता है। रक्त के रोग में लोह भस्म के साथ, फुफ्फुस के रोग में सुगंधित और स्नेहन (चिकना पदार्थ जैसे धृत, तैल) दवाओ के साथ, वृक्क (Kidney) विकार में स्नेहन द्रव्यों के साथ, पित्तप्रकोप जनित रोगों पर यकृत (Liver) पर लाभदायक औषधियों के साथ दिया जाता है।

भोजन से पहिले अपामार्ग (Apamarg) का सेवन करने से पेट के अंदर पाचक रस बढ़ता है और पेट की जलन कम होती है इसलिये अपामार्ग अजीर्ण, पेट की निर्बलता, इत्यादि में कड़वी दवाओं के साथ दिया जाता है। मात्रा कम देनी चाहिये, अन्यथा पेट के अंदर जलन होती है। अपामार्ग यकृत के ऊपर बहुत ही लाभदायक है। यह यकृत की तमाम क्रियाओं को सुधारता है, आंतों में खट्टापन कम कराता है, रक्त में रक्त कण बढ़ाता है। 

अपामार्ग संकोचक, मूत्रकारक और रसायन है। रजस्त्राव, संग्रहणी और अतिसार में इसका उपयोग किया जाता है। अपामार्ग का क्षार सूजन, जलोदर, चर्मरोग और गलगंड (Goitre) आदि रोगों में सेवन करने योग्य है। यह कफ को पतला करता है, साँप और कुत्ते के काटे के लिये यह प्रसिद्ध है। अपामार्ग का उपयोग भीतर-बाहर (खाने-लगाने) दोनों प्रकार से किया जाता है। चरक ने इसे शिरोविरेचनोपग रूप में गिनाया है। भस्मक, उन्माद, खांसी आदि रोगों में इसका उपयोग अन्य द्रव्यों के साथ किया जाता है।

अपामार्ग के बीज 5 ग्राम भैंस के दूध में पकाकर चीनी और घी मिलाकर (खीर बनाकर) प्रतिदिन खाने से भस्मक रोग (इस रोग में रोगी की भूख अत्यधिक बढ़ जाती है वह दिन भर खाता रहता है, और खाना हज्म भी होता चला जाता है किन्तु अकेले ही 10 व्यक्तियों का भोजन करना भी तो गंभीर व्याधि है) ठीक हो जाता है। लाभ प्रथम सप्ताह में ही देखने को मिलता है और रोगी 3-4 सप्ताह के निरंतर सेवन से रोग मुक्त हो जाता है।

यूनानी मत से अपामार्ग बवासीर, दाद, मांसपेशियों की ऐंठन, काले धब्बे, खुजली, जलंधर और फोड़ों के लिये लाभदायक है।

मात्रा: स्वरस 1 तोला; क्वाथ 1 छटांक से 2 छटांक तक। मूल चूर्ण 2 माशा से 6 माशा तक। बीज चूर्ण 4-6 आने भर तक। (1 तोला=11.66 ग्राम; 1 छटांक=58.3 ग्राम; 1 माशा=0.97 ग्राम)

अपामार्ग के कुछ स्वतंत्र प्रयोग: अपामार्ग के फायदे / Apamarg Ke Fayde

बवासीर में: अपामार्ग की जड़ का चूर्ण चावल के धोवन के साथ शहद डालकर पीने से (अधिक दिन तक प्रयोग करने से) बवासीर में लाभ होता है।

ताजे घाव से रक्त बहता हो तो: अपामार्ग के पत्तों को मसलकर रस निकालकर घाव में भर दिया जाय तो शीघ्र ही घाव पुर जाता और रक्त का बहना रुक जाता है।

गर्भधारण के लिये: अपामार्ग की जड़ दूध के साथ घिसकर ऋतुमती स्त्री पिये तो अवश्य गर्भस्थिति हो जाती है।

सर्पविष में: अपामार्ग की जड़ चावल के धोवन के साथ पीने से साँप का जहर उतरता है।

विसूचिका में: अपामार्ग की जड़ को जल के साथ पीने से हैजा रुकता है।

निद्रानाश में: अपामार्ग का क्वाथ पीने से नींद आ जाती है।

सूजन में: अपामार्ग की पुलटिस सूजन स्थान पर सेककर बांध देने से सूजन अच्छी हो जाती है।

बिच्छू के विष पर: अपामार्ग का स्वरस मलना या कल्क का लेप करना लाभदायक है। परीक्षित है। इसकी जड़ को पान में रखकर चबाना चाहिये; इससे भी विष नष्ट होता है।

बवासीर, दाद, खुजली, फोड़ा, फुंसी और छाजन में: अपामार्ग के सर्वांग का लेप करना लाभदायक है।

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