गोखरू (Gokhru) के पौधे वर्षाऋतु में बहुत पैदा होते है। ये जमीन के
ऊपर छत्ते की तरह फैले हुए रहते है। इनके पत्ते चनों के पत्तों की तरह मगर उनसे
कुछ बड़े होते है। गोखरू के फूल पीले रंग के और कांटे वाले होते है। इसके सारे पौधे
पर रुआं होता है। गोखरू फलों के आकार के
अनुसार छोटा और बड़ा इस प्रकार दो जाति का होता है। बड़े गोखरू के पौधे बरसात में
बहुत पैदा होते है। ये 1
फुट से 1.5 फुट तक ऊंचे
होते है। इनकी डालिया जमीन पर झुकी हुई रहती है। इनके पत्ते इमली के पत्तों से कुछ
छोटे, फूल पीले और फल 3 या 5 कांटोंवाले होते
है। बड़ा गोखरू छोटे गोखरू से अधिक गुणकारी है।
आयुर्वेदिक मत से
गोखरू (Gokhru) की जड़ और फल मीठे, शीतल, पौष्टिक,
मज्जावर्धक, कामोद्दीपक, रसायन, भूख बढ़ानेवाले तथा पथरी और मूत्र संबंधी
बीमारियों में लाभप्रद है। प्रमेह, श्वास,
खांसी, ह्रदय रोग,
बवासीर, रक्त दोष,
कुष्ठ और त्रिदोष को ये नष्ट करते है।
गोखरू (Gokhru) के पत्ते कामोद्दीपक और रक्त शोधक होते है। इसके बीज
शीतल, मूत्रल,
सूजन को नष्ट करने वाले, आयु को बढ़ानेवाले तथा शुक्र, प्रमेह और सुजाक को दूर करनेवाले होते है। इनका क्षार
मधुर, शीतल,
कामोद्दीपक, वात नाशक और रक्त शोधक होता है।
गोखरू (Gokhru) में वाजीकरण धर्म भी बहुत उत्तम है। गोखरू और तिलों
का समभाग चूर्ण शहद या बकरी के दूध के साथ देने से हस्त मैथुन की वजह से पैदा हुई
नपुंसकता दूर होती है। गर्भाशय को शुद्ध करने तथा बंध्यत्व को मिटाने के लिये भी
इनका उपयोग किया जाता है।
बड़ा गोखरू, कौंच बीज, सफेद मूसली, सफेद सेमर की कोमल जड़े,
आंवला, गिलोय का सत्व और मिश्री इन सातों चीजों
को समान भाग लेकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को वृद्धदंड चूर्ण कहते है। इस
चूर्ण को एक तोला से डेढ़ तोला तक की मात्रा में प्रतिदिन दो बार दूध के साथ सेवन
करने से हर तरह की नपुंसकता, वीर्य की कमजोरी, हस्तक्रिया के विकार,
स्वप्नदोष और अनैच्छिक वीर्यस्त्राव बंद होते है।
गोखरू मूत्र
संबंधी रोग, सुजाक,
पथरी, नपुंसकता,
अनैच्छिक वीर्य स्त्राव और संधि वात पर बहुत उपयोगी है।
मात्रा: 6 माशे
से 1.5 तोला तक। इसके अधिक सेवन से सिर, तिल्ली और गुर्दे को नुकसान पहुंचता है।
कभी कभी यह कंपकंपी भी पैदा कर देता है। (1 माशा=0.97 ग्राम, 1 तोला=11.66 ग्राम)
गोखरू के कुछ
स्वतंत्र प्रयोग:
Gokhru Ke Fayde
1) पथरी में –
गोखरू के बीजों के चूर्ण को शहद के साथ चाटकर ऊपर से भेड़ का दूध पीने से 7 दिन के
प्रयोग से पथरी टूट जाती है।
2) आमवात (Rheumatism) में – गोखरू और सोंठ का क्वाथ प्रातः काल सेवन करने
से आमवात और कटिशूल (कमर दर्द) मिटता है।
3) वाजीकरण
प्रयोग – गोखरू से सिद्ध दूध नित्यप्रति पीने से वृद्ध मनुष्य भी जवानों के समान
पराक्रमयुक्त होकर स्त्रीसंयोग करता है।
4) रक्तपित्त (नाक से या मुंह से खून निकलना) – गोखरू और
शतावर से सिद्ध दूध पीने से रक्तपित्त मिटता है।
5) शुक्रमेह
(पेशाब के साथ शुक्र धातु जाना) – हरे बड़े गोखरू का पंचांग का स्वरस या सूखे हुओं
का चूर्ण करके मिश्री मिलाकर खाने से स्वप्नदोष,
शुक्रमेह मिटता है। पेशाब करने के बाद पेशाब की बूंद-बूंद आना आदि विकार मिटते है।
6) वाजीकरण
प्रयोग – (उष्ण प्रकृतिवालों के लिये) सूखे गोखरू के चूर्ण में गोखरू के रस की 21
भावना देकर दिन-रात खुली जगह में रखें। इसको मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करे तो
बल, वीर्य और कामोत्तेजना की वृद्धि होगी।
7) बांझपन के
लिये – छोटे गोखरू के पंचांग (फल, फूल,
डालिया, मूल और पान) की फंकी से स्त्रियों का
बांझपन मिटकर गर्भधारण की क्षमता फिर उत्पन्न हो जाती है।
गोखरू की
बनावटें:
गोक्षुरादि
चूर्ण: गोखरू, शतावरी,
तालमखाना, कौंच के बीज, खिरेंटी के बीज और गंगेरन की जड़ इन छः चीजों को समान
भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिये। इस चूर्ण को 1 तोला
की मात्रा में 1 तोला मिश्री मिलाकर सवेरे, शाम गाय के दूध के साथ लेने से काम शक्ति
बढ़ती है।
गोखरू रसायन:
गोखरू के पौधे पर जब उसके फल कच्चे हो तब उसको उखाड़ कर छाया में सूखा लेना चाहिये।
उसके पश्चात उसको कूट कर उसका बारीक चूर्ण कर लेना चाहिये। उसके पश्चात उस चूर्ण
को हरे गोखरू का रस निकालकर उस रस में तर करके सुखाना चाहिये। इस प्रकार उसे सात
बार हरे गोखरू के रस में तर करके सूखा लेना चाहिये। इस चूर्ण को प्रतिदिन 2 तोले
की मात्रा में दूध और मिश्री के साथ सेवन करने से और तेल, खटाई, लाल मिर्च इत्यादि चीजों का परहेज करने
से पुरुष के धातु संबंधी सभी विकार दूर हो जाते है। पेशाब में खून का गिरना, पेशाब का रुक रुक कर कष्ट से आना, पथरी, प्रदर,
प्रमेह इत्यादि सब रोग नष्ट हो जाते है। शरीर का सौन्दर्य और बल बहुत बढ़ता है।
कामशक्ति में अत्यंत वृद्धि होती है। यह रसायन परम वाजीकरण है।
Read
more:
0 टिप्पणियाँ: