जवाखार (Jawakhar) जौ के पंचांग से बनाया जाता है। जौ के क्षुप जब उसमें
बालें आ जायें काटकर सूखा दे फिर उसकी भस्म करके भस्म को जल में घोलकर उसके जल को
निथार लें। इसके बाद उस नितरे हुये जल को अग्नि पर (कढ़ाई में) चढ़ाकर शुष्क कर लें, यही शुष्क वस्तु जवाखार है। जवाखार श्वेताभ मैलापन
लिये हुये खारीपनयुक्त तीक्ष्ण होता है। इसको यवक्षार भी कहते है।
जवाखार (Jawakhar) लघु (लघु पदार्थ
पथ्य, तुरंत पचन होनेवाला और कफ नाशक होता है), स्निग्ध (स्निघ वस्तु वायु का नाश करने
वाली, वृष्य (पौष्टिक) और बलदायक होती है), अत्यंत सूक्ष्म (स्त्रोतों में सरलता से प्रवेश
करनेवाला) तथा अग्निदीपक है। शूल, वायु,
आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष है और शरीर में रोग पैदा करता है), कफ, श्वास,
कंठरोग, पांडुरोग,
बवासीर, संग्रहणी,
गुल्म (पेट की गांठ), आनाह (अफरा), प्लीहा (Spleen) और ह्रदयरोग को नष्ट करता है।
जवाखार (Jawakhar) शीतल, सारक (हल्का दस्तावर), क्षारों में श्रेष्ठ,
शर्करा, अश्मरी (पथरी), पुरुषत्व, यकृत विकार (Liver Disorder), मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और कृमिनाशक
है।
जवाखार को धनिये
के हिमकषाय में देने से पेशाब रुक रुक कर आना तथा कष्ट से होना मिटता है। प्लीहा
वृद्धि पर मूली के साथ देना लाभदायक है।
मात्रा: 1 माशा
से 3 माशा तक। (1 माशा=0.97 ग्राम)
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