रविवार, 7 जुलाई 2019

सालम मिश्री के फायदे / Salam Mishri Benefits


सालम मिश्री (Salam Mishri) एक क्षुद्र जाति की वनस्पति होती है। यह नैपाल, कश्मीर, अफगानिस्तान और ईरान में पैदा होती है। इस वनस्पति का कंद सालम मिश्री कहलाता है। इसकी चार पाँच जातियाँ होती है। 1. सालम पंजा (Orchis Latifolia) इसका कंद आदमी के पंजे के आकार का होता है। 2. सालम लहसनिया या अबुशाहरी (Orchis Lexiflora) इसके कंद का आकार लहसन की गठान की तरह होता है। 3. सालम बादशाही उर्फ बसरा (Orchis Mascula) इसके चपटे टुकडे होते है। 4. सालम लाहौरी (Eulophia Campestris) और 5. सालम मद्रासी, यह नीलगिरी पहाड पर पैदा होती है और उटक मण्ड में बिकती है। इसका कंद छोटा होता है और इसका आकार भी दूसरे प्रकार का होता है। लहसनिया सालम का कंद 1 से 1.5 इंच तक लंबा, गुगला, गोंद की तरह तथा बहुत मीठा होता है।

बाजार में नकली सालम मिश्री भी बहुत बिकती है जो आलू के आटे तथा गोंद को मिलाकर बनाई जाती है। असली सालम बहुत सख्त होता है। यह बहुत कठिनाई से कूटने में आता है। इनमें किसी प्रकार की गंध और स्वाद नहीं होता।  

सालम मिश्री के फायदे / Salam Mishri ke fayde / Salam Mishri Benefis:

सालम मिश्री (Salam Mishri) यह एक अत्यंत पौष्टिक वस्तु होती है। इसका सिर्फ एक तोला (11.66 ग्राम) चूर्ण प्रौढ मनुष्य के लिये चौबीस घंटे तक पूरी खुराक का काम दे सकता है। इतनी थोडी मात्रा में मनुष्य की जीवन रक्षा करनेवाला कोई दूसरा अन्न नहीं होता। इसी से कई लोग अष्टवर्ग में वर्णित जीवक इसी को मानते है। इस औषधि में मस्तिष्क और मज्जातंतुओं के लिये उत्तेजक, संग्राहक और स्तंभक धर्म भी रहते है। मतलब यह के सालम मिश्री जीवनी शक्ति वर्धक, कामोद्दीपक और अवस्था स्थापक (जवानी को बनाए रखने वाला) होता है। ऊपर वर्णित की हुई सालम मिश्री की सभी जातियों में ये गुण कम-अधिक मात्रा में रहते है मगर इन सब में सालम पंजा सर्वोत्कृष्ट होती है और मद्रासी तथा लहसनिया सालम कनिष्ठ (नीचे) दर्जे की होती है।

पाचननलिका के दाह (जलन) युक्त रोगों में सालम मिश्री बहुत लाभदायक होती है। इससे कफ की कमी होती है और दुर्बलता दूर होती है। सालम मिश्री पचने में हल्की होती है और इसका संग्राहक धर्म उत्तम और स्पष्ट होता है। अतिसार (Diarrhoea), आँव, गर्भावस्था में लगने वाले दस्त और अपचन रोग में यह उत्तम वस्तु है। इन रोगों में इसको द्राक्ष के साथ देते है। कफ रोगों में सालम मिश्री को बकरी के दूध के साथ देने से कफ की कमी हो जाती है।

मस्तिष्क और मज्जातंतुओं में अधिक दिमागी काम करने की वजह से कभी कभी बहुत थकावट आ जाती है और उसकी क्रिया में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाति है। ऐसे समय में सालम का उपयोग करने से मस्तिष्क की क्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है। कोमल प्रकृति की स्त्रियों में प्रसूतिकाल के पश्चात अथवा अतिशय अभ्यास और अतिशय मैथुन से जो थकावट पैदा हो जाती है उसमें भी सालम मिश्री बहुत अच्छा काम करती है।

आयुर्वेदिक मत से सालम मिश्री अग्निदीपक, शुक्रजनक, बलकारक, रक्तशोधक (Blood Purifier), क्षय में हितकारी, कामोद्दीपक, रसायन, अत्यंत वीर्यवर्धक, अवस्था स्थापक और पौष्टिक होती है।

रासायनिक विश्लेषण: सालम मिश्री के अंदर 48 प्रतिशत एक प्रकार का गोंद रहता है। पुराने और अधिक समय के कंद में यह नहीं मिलता, मगर बाजू के छोटे और कोमल कंदों में यह काफी तादाद में रहता है। इसको खारे पानी में डालने से पानी का खारापन नष्ट हो जाता है। इसमें कुछ आटा, शक्कर, मासवर्धक द्रव्य और ताजी हालत में एक प्रकार का उड़नशील तेल रहता है। इसकी राख 2 प्रतिशत पडती है और उस राख में यवक्षार, फास्फेट्स, क्लोराइड आफ पोटासियम और केल्सियम पाये जाते है।

बनावटें: Salam Mishri Products:

कामोद्दीपक चूर्ण: सालम मिश्री (Salam Mishri), तोदरी सफेद, कौंच के बीजों की मगज, इमली के बीजों की मगज, तालमखाना, सरवाली के बीज, सफेद मूसली, काली मूसली, सेमर मूसली, बहमन सफेद, बहमन लाल, शतावरी, बबूल का गोंद, बबूल की कच्ची या सुखी फली, ढाक की नर्म कली, इन सब चीजों को समान भाग लेकर बारीक पीस लेना चाहिए, फिर सारे चूर्ण का जितना वजन हो उतनी ही मिश्री मिलाकर बोतल में भर लेना चाहिए।

इस चूर्ण को एक तोले (11.66 ग्राम) की मात्रा में सबेरे शाम मिश्री मिले हुए गाय के दूध के साथ सेवन करना चाहिए। कुछ दिनों तक लगातार इसका सेवन करने से नये और पुराने प्रमेह, कामशक्ति की कमजोरी, शीघ्रपतन, सिर का दर्द, कमर का दर्द इत्यादि रोग नष्ट होते है। पुरुष की स्त्रियों के साथ रमण करने की शक्ति बढ़ती है। इस चूर्ण को कम से कम चालीस दिन तक सेवन करना चाहिए और सेवन करते समय स्त्री प्रसंग, खटाई तथा तेल इत्यादि गर्म वस्तुओं से परहेज करना चाहिए।


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