शनिवार, 7 दिसंबर 2019

अकरकरा के फायदे / Akarkara Benefits


अकरकरा (Akarkara) अरब और भारतवर्ष की प्रसिद्ध जड़ी बूटी है। पूर्वकालीन चरक, सुश्रुत, वाग्भट आदि प्रामाणिक ग्रंथों में अकरकरा का उल्लेख नहीं मिलता। मगर मध्यकालीन भावप्रकाश, शार्गंधर आदि ग्रंथों में इसका उल्लेख पाया जाता है। इससे ऐसा अनुमान होता है कि भारतवर्ष में इस औषधि का ज्ञान यूनानी हकीमों के द्वारा ही प्रचारित हुआ है।

अकरकरा (Akarkara) क्षुप जाति की औषधि है, वर्षाऋतु की पहिली वर्षा होते ही इसके छोटे-छोटे पौधे निकलना प्रारंभ होते है। इसकी डाली रुएदार होती है। यह औषधि 7 वर्ष तक खराब नहीं होती। असली अकरकरा अरबस्तान आदि देशों से यहां आता है। हमारे देश भारत में जो अकरकरा होता है वह नकली अथवा बहुत कम गुण वाला होता है।

अकरकरा (Akarkara) के अंदर उत्तेजक गुण बहुत काफी प्रमाण में विद्यमान है। इसलिये आयुर्वेद के अंदर कामोत्तेजक औषधियों में यह बहुत प्रधान माना जाता है। सुप्रसिद्ध वीर्यवर्धक योग मदनमंजरी वटी में इसका योग किया गया है। अकरकरा भिन्न-भिन्न औषधियों के साथ देने से वीर्यवर्धन, कामोत्तेजन व स्तंभन में अद्भुत फायदा दिखलता है। मगर इसका लाभ ठंडी प्रकृति वालों को ही अधिक मिलता है।

ज्ञानतंतु के ऊपर अकरकरा (Akarkara) का अच्छा असर होता है। जिसके फलस्वरूप यह औषधि पक्षाघात, अर्दित (मुंह का लकवा=Facial Paralysis) इत्यादि स्नायुजाल से संबंध रखनेवाली व्याधियों पर अच्छा लाभ पहुंचाती है। रूमी मस्तगी के साथ इस औषधि को चबाने से दूषित दोषों से पैदा हुई मिर्गी (Epilepsy) मिटती है। इस औषधि में वातनाशक गुण भी काफी मात्रा में मोजूद है। जिसके परिणाम स्वरूप गृध्रसी (Sciatica), संधिवात, शून्यवात, वातजनित मस्तक रोग, पुट्ठे का दर्द, कुबड़ापन, गर्दन की अकड़न, जोड़ों के दर्द इत्यादि वातव्याधियाँ पर जैतून के तेल के साथ पीसकर मालिश करने से अच्छा लाभ पहुंचता है।

अकरकरा (Akarkara) में पसीना लाने का भी गुण है। जैतून के तेल के साथ इसको पकाकर मालिश करने से पसीना देकर बुखार उतर जाता है। इसके गरम काढ़े को सिर पर लेप करने से और उसे तालू पर मलने से सरदी और नजला दूर होता है।

दाँतो की व्याधियों पर भी अकरकरा बहुत लाभ पहुंचाता है। इसके क्वाथ (काढ़े) को मुंह में रखने से हिलते हुए दांत मजबूत होते है। इसी प्रकार इसकी जड़ को सिरके में भिगोकर दांत के नीचे दबाने से दंतशूल (दांत का दर्द) नष्ट होता है। इसके चूर्ण को जीभ पर मलने से जीभ की जड़ता दूर होती है और तोतलापन मिटता है। अकरकरा में एक अद्भुत गुण यह है कि इसकी जड़ चबा लेने से अन्य औषधियों का स्वाद बिलकुल मालूम नहीं पड़ता, इसलिये बुरे स्वाद वाली औषधि देने से पहिले इसकी जड़ चबाने को दी जाती है।

खांसी के ऊपर भी यह औषधि अच्छा फायदा करती है। इसका क्वाथ बनाकर पिलाने से पुरानी सुखी खांसी मिटती है। इस प्रकार इसके बारीक चूर्ण को सूंघने से नाक बंधजाने से पैदा हुआ श्वासावरोध दूर होता है।

आमाशय (Stomach) के रोगों पर भी यह औषधि अपना असर दिखलाती है। इस औषधि के प्रयोग से बालकों के अतिसार (Diarrhoea), दांत निकलने के समय उपद्रव, पेट दर्द इत्यादि रोगों में फायदा होता है। सोंठ के साथ इसके चूर्ण की फंकी लेने से मंदाग्नि और अफरा मिटता है। जलोदर (Ascites) में भी इसका प्रयोग गुण दिखलता है। इसकी चौदह रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की खुराक घोटकर देने से यह बल पूर्वक कफ को जुलाब के द्वारा निकाल देता है। इस औषधि के लेने से बच्चों का और गायको का कंठ स्वर सुरीला हो जाता है।

अकरकरादि चूर्ण – अकरकरा, सेंधा नमक, चित्रक, आंवला, अजवायन और हरड़ ये सब एक-एक तोला और सोंठ दो तोला (1 तोला=11.66 ग्राम), इन सबों का कपड़छान चूर्ण करके उसमें बीजोरा या नींबू के रस की भावना देना चाहिये। यह चूर्ण सुबह-शाम तीन-तीन माशे (1 माशा=0.97 ग्राम) लेने से पीनस (सड़ा हुआ जुकाम), मृगी, उन्माद, ख्नसी, श्वास, मंदाग्नि, अरुचि इत्यादि व्याधियाँ में लाभ पहुंचता है।

योग्य मात्रा में देने से जहां यह औषधि अनेक प्रकार के दिव्य लाभ पहुंचाती है, वहाँ अधिक मात्रा में देने से आंतों के श्लेष्मावरण (चिकनी त्वचा) में जलन करके खूनी दस्त इत्यादि उपद्रवों को पैदा करती है। इसलिये इसका उचित प्रमाण में ही समझ-बूझकर प्रयोग करना चाहिये। इसके नुकसान को दूर करने वाली औषधियों में मुनक्का और कतीरा गोंद प्रधान है।  

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