गिलोय (Giloy) सर्वत्र प्रसिद्ध व सुलभ लतावर्ग की वनौषधि है।
गिलोय को आयुर्वेद में बहुत ही प्रशंसा हुई है। सुखी गिलोय की अपेक्षा हरी गिलोय
अधिक गुणकारी है। गांवो में तो यह नीम के वृक्ष पर चढ़ी हुई हर जगह पाई जाती है।इसी
तरह शंखपुष्पी, गोखरू और अतिबाला भी खेतों में अपने आप
उग निकलते है और अधिक मात्रा में पाये जाते है। लेकिन लोगों को इनके गुणों के बारे
में पता नहीं है।
गिलोय (Giloy) का शमन गुण अद्भुत है। यह बढ़े हुए दोषों को कम कर देती
है और क्षीण (कम) हुए दोषों को बढ़ा देती है। स्वास्थ्य की यही पहचान है कि त्रिदोष
(कफ, पित्त और वात) सब समान हो। अगर कोई एक या
दो या तीनों दोष बढ़ जाते है या कम हो जाते है तो शरीर में रोग पैदा करते है। गिलोय
ही सिर्फ एक ऐसी औषधि है जिसमें यह शमन गुण है और कोई औषधि में ऐसा गुण नहीं है।
गिलोय (Giloy) रसायन (वृद्धावस्था को दूर करनेवाली), आयुवर्धक, बुद्धि को हितकारी, शमन, ज्वरघ्न (बुखार नाशक), पित्त शामक, अग्निदीपक,
पौष्टिक, मूत्रल,
उष्णवीर्य, बलकारक,
त्रिदोष नाशक और शरीर को शुद्ध करनेवाली है। यह आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का
विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है),
तृषा, जलन,
मेह, खांसी,
पांडुरोग (Anaemia), कामला (Jaundice),
कुष्ठ, श्वास,
वातरक्त (Gout), बुखार,
कृमि, उल्टी,
बवासीर, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन), ह्रदयरोग और वातनाशक है।
ज्वरनाशक गुण
होने की वजह से यह हर एक जाति के ज्वरों में निःशंकता से दी जा सकती है। यद्यपि
मलेरिया के किटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति इसमें बहुत कम है और इस रोग में यह
क्वीनाइन का मुकाबला नहीं कर सकती, फिर भी शरीर की दूसरी क्रियाओं को
व्यवस्थित करने में यह बहुत सहायता पहुंचाती है,
जिसके परिणाम स्वरूप मलेरिया ज्वर पर भी इसका असर दिखाई देता है। क्वीनाइन से शरीर
में जो खराब प्रति क्रियाएँ होती है उनको भी यह रोकती है। इसलिये अगर क्वीनाइन के
साथ इसका भी उपयोग किया जाय तो मलेरिया ज्वर में विशेष फायदा हो सकता है।
पुराना बुखार और
मोतीजरा (Typhoid) में जहां कि क्वीनाइन इत्यादि औषधियाँ
कुच्छ भी काम नहीं कर सकती वहाँ भी गिलोय
(Giloy) आश्चर्यजनक फायदा करती
है। इसमें पित्त को शांत करने का गुण रहता है और पुराने बुखार और मोतीजरा में
विशेषकर पित्त का ही प्रकोप रहता है इसलिये ऐसे ज्वारों में यह बहुत अच्छा लाभ
करती है।
यकृत (Liver) और तिल्ली की खराबी की वजह से शरीर में जलोदर, कामला (Jaundice), पीलिया इत्यादि जीतने भी रोग खड़े होते है
उन सबको दूर करने के लिये गिलोय एक चमत्कारिक दवा है। गिलोय में रक्त विकार को नष्ट
करके शरीर में शुद्ध रक्त प्रवाहित करने का गुण भी विद्यमान है। इसलिए खाज, खुजली, वातरक्त (Gout)
इत्यादि रोगों में भी इसको गुग्गुल के साथ देने से अत्यंत लाभ होता है।
अमृत रसायन:
गिलोय (Giloy) चूर्ण 100 भाग, गुड और शहद 16 भाग और घी 20 भाग लेकर 2 से 3 ग्राम के
लड्डू बनाकर हररोज सुबह-शाम अग्नि के अनुसार सेवन करने से तथा पथ्य से रहने से कभी
कोई रोग नहीं होता, न वृद्धावस्था आती है और न बाल पककर
गिरते है। यह रसायन वृद्धावस्था को दूर करनेवाला,
बुद्धि वर्धक, त्रिदोष नाशक होने से इसके सेवन से पुरुष
100 वर्ष तक जीता है और दैत्य जैसा बलवान होता है। इस रसायन के आगे अन्य रसायन
तुच्छ है। इसके ऊपर कोई रसायन नहीं। (Ref:
आर्यभिषक, जंगल नी जड़ीबुट्टी,
भावप्रकाश निघंटु)
गिलोय को
आयुर्वेदिक औषधियों में मिलाने के कारण:
Y कफ, पित्त और वात तीनों दोषों को समान करने
के लिये
Y पचन-शक्ति को सुधारने के लिये और पेट के रोगों को
नष्ट करने के लिये
Y उत्तम ज्वरघ्न होने से बुखार को नष्ट करने के लिये (योग: महासुदर्शन चूर्ण, सुदर्शन घनवटी, अमृतारिष्ट )
Y मूत्रल होने से मूत्रकृच्छ और मूत्राशय की
सूजन को दूर करने के लिये (सुजाक, प्रमेह,
पेशाब की जलन इत्यादि मूत्र रोगों को दूर करने के लिये) योग: चंद्रप्रभा वटी
Y रसायन गुण के लिये (वृद्धावस्था को दूर
करने के लिये) योग: रसायन चूर्ण
Y वाजीकरण औषधों में (कामेश्वर मोदक)
Y यकृत (Liver) के कार्य को सुधारने के लिये
Y रक्त को शुद्ध करने के लिये (खाज, खुजली, वातरक्त इत्यादि रोगों को दूर करने के
लिये) योग: अमृतादि गुग्गुल
Y पूरे शरीर को शुद्ध करने के लिये
मंदाग्नि की ऐसी
पुरानी शिकायतों में भी जिनको दूर करने के लिये हजारों रुपये की बहू मूल्य औषधियाँ
भी बेकार साबित हो चुकी थी, गिलोय ने आश्चर्यजनक लाभ बतलाये है। इस
बात की सिफारिश की जा सकती है कि जो लोग पेट के रोगों से ग्रसित हों, जिनकी तिल्ली और यकृत बिगड़ रहे हों, जिनको भूख न लगती हों,
शरीर पीला पड़ गया हो, वजन कम हो गया हो, और जो बड़ी-बड़ी औषधियों से निराश हो गये हो वे भी इस
आश्चर्य जनक औषधि का सेवन करके लाभ उठा सकते है। ऐसे रोगों में गिलोय के प्रयोग की
विधि इस प्रकार है। नीम के ऊपर चढ़ी हुई ताजी गिलोय 1.5 तोला (1 तोला=11.66 ग्राम), अजमोद 2 माशे (1 माशा=0.97 ग्राम), छोटी पीपर 2 दाने,
नीम के पत्तों की सलाइयाँ 7, इन सब चीजों को कुचल कर रात को पाव भर
पानी में मिट्टी के बर्तन में भिगों दें। सवेरे इन चीजों को ठंडाई की तरह सिल पर
पीसकर उसी पानी में छानकर पिलें। इस प्रकार 15 से लेकर 30 दिनों तक पीने से पेट के
सब रोग दूर होते है।
गिलोय सत्व (Giloy Satva): दीपन,
नेत्रों के लिये हितकारी, धातुवर्धक,
मेघाजनक, अवस्थास्थापक (आयु को स्थिर करनेवाला), वातरक्त (Gout), त्रिदोष,
पांडुरोग (Anaemia), तीव्र बुखार, उल्टी, पुराना बुखार, पित्त, कामला (Jaundice),
प्रमेह, अरुचि,
श्वास, खांसी,
हिचकी, बवासीर,
क्षय (TB), जलन,
मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन), प्रदर,
सोमरोग, पित्तप्रमेह और शर्करा-रोग नाशक है।
गिलोय के घरेलू
नुस्खे: Giloy Ke
Fayde
1) विषमज्वर (Malaria) में – गिलोय का रस पीना लाभदायक है।
2) कामला (Jaundice) में – गिलोय का रस शहद डालकर सुबह ही पीने से कामला
मिटता है।
3) प्रत्येक
प्रकार के प्रमेह में – गिलोय का रस शहद डालकर पीना चाहिये।
4) पुराने बुखार
में – गिलोय का क्वाथ पीपल के साथ सेवन करने से पुराना बुखार और कफविकार नष्ट होते
है।
5) कुष्ठ में –
बलानुसार गिलोय का स्वरस पीकर पचने पर मूंग का यूष,
घी और भात खाना चाहिये। इस प्रकार सेवन करनेवाला व्यक्ति कुष्ठ रहित होकर उत्तम
शरीरवाला हो जाता है।
Read
more:
0 टिप्पणियाँ: