मंगलवार, 3 सितंबर 2019

यवक्षार के फायदे / Yavakshar Benefits


यवक्षार (Yavakshar) कटु (चरपरा), ऊष्ण (गरम), कफ, वात, उदररोग (पेट के रोग), आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है), शूल, अश्मरी (पथरी) और विष (जहर) को नाश करनेवाला है तथा सारक (Mild Laxative) है। यवक्षार लघु (लघु पदार्थ पथ्य, तुरंत पचन होनेवाला और कफ नाशक होता है), स्निग्ध (स्निघ वस्तु वायु का नाश करने वाली, वृष्य (पौष्टिक) और बलदायक होती है), सूक्ष्म (जो पदार्थ शरीर के सूक्ष्म स्त्रोतसों में फैल जाये उसे सूक्ष्म कहते है) और अग्नि दीपक है।

मात्रा:-२ से ८ रत्ति तक। जल मे मिलाकर या यथावश्यक अन्य औषध योगो के साथ। (१ रत्ती=१२१.५ mg)

यव (जौ) स्निग्ध तथा सहज पाचक है यही कारण है कि यव का प्रयोग रोगियों के लिए हितावह माना जाता है। यव की भांति यवक्षार (Yavakshar) भी पाचन क्रिया में सहायक और उससे अधिक वातानुलोमक (वायु की गति को नीचे की तरफ करनेवाला) है । यह मृत्रल, पाचक और आमदोष नाशक है। यवक्षार का प्रयोग अनेक रोगों में विविध अनुपानों के साथ किया जाता है यथाः

(१) यदि यवक्षार (Yavakshar) को समान भाग मिश्री मे मिलाकर पिलाया जाय तो समस्त प्रकार के मूत्रकृच्छों (पेशाब में जलन) को नष्ट करनेवाला सिद्ध होता है।

(२) सज्जीक्षार, चित्रकमूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, नीम की जड, सेंधानमक, कालानमक, बिडनमक, काचनमक और समुद्रनमक, यदि इन द्रव्यो के साथ समान मात्रा में यवक्षार मिलाकर और इस योग को घी मे मिलाकर चटाया जाय तथा ऊपर से गरम पानी पिलाया जाय तो यह योग समस्त प्रकार के उदरशूलों (पेट दर्दों) का नाश करनेवाला होता है।

(३) यवक्षार को मधु में मिलाकर चटाने से तालुपाक का नाश होता है।

(४) यवक्षार को घी में मिलाकर पिलाने से मक्कलशूल नष्ट होता है।

(५) यवक्षार और सोंठ को समान भाग मिश्रित कर प्रातः काल जल में मिलाकर चाटने से क्षुधा (भूख) की वृद्धि होती है।

(६) इसी चूर्ण को ऊष्ण जल के साथ सेवन करने से किसी स्थान के जल का दुष्ट प्रभाव नहीं होता।

(७) यवक्षार के साथ अजवायन, सेंधानमक, अम्लवेतस, हैड, वच, और घी में मुनी हुई हींग मिलाकर ऊष्ण जल के साथ सेवन करने से उदरशूल और उपद्रव युक्त गुल्म (Abdominal Lump) भी नष्ट होते है।

संक्षेप मे पाण्डु (Anaemia), अर्श (बवासीर), ग्रहणी रोग, गुल्म, आनाह (अफरा), प्लीहावृद्धि (Spleen Enlargement), यकृवृद्धि (Liver Enlargement) आदि रोगों के लिए यवक्षार वातानुलोमक और पित्तशामक होने के कारण उपयोगी सिद्ध होता है।

यवक्षार बनाने की विधि (Yavakshar Banane Ki Vidhi): जौ का पचांग लेकर स्वच्छ करें और धूप में सुखाकर सबको काटकर एक ढेर बनालें। इस ढेर को ऊपर चारों ओर से चूने और बजरी से ढक दें और नीचे की ओर एक छोटा सा गढा खोदे कि जिसका सम्बन्ध सीधे जौ के साथ हो। अब इस ढेर को तिल नाल की अग्नि से परिदहन करें। जब यह ढेर सम्पूर्ण जलकर क्षार हो जाय तब चूने और बजरी को निकाल दे और भस्म को एकत्रित कर उसे एक पात्र के अन्दर भस्म से ६ गुने जल या गोमूत्र मे मिश्रित करें। ४-६ घण्टे इस घोल को स्थिर रहने दे और फिर नितरे जल को निकाल लें और दूसरे पात्र में भरकर फिर ३-४ घण्टे इसीप्रकार स्थिर रहने दे। इस क्रिया का २१ बार आवर्तन करें। अन्तिम बार प्राप्त किए हुए जल को लोहे की कढाई में भरकर अग्नि पर चढावें, जब जलते जलते जल कुछ अंश में अवशिष्ट रहे और रक्तवर्ण एवं चिकना हो जाय तब उसे उतार लें और कपडे मे से छानें। कपडे पर के अवशिष्ट द्रव्य को फेक दे एवं जलीयांश को जो कपडे मे से छनकर नीचे बर्तन में एकत्रित हो, पुनः एक कढाई मे भरकर मन्दाग्नि पर गरम करें। पानी धीरे धीरे सुख जायगा। कढाई को उतार ले और इसमे से अवशिष्ट शुष्क पदार्थ को निकाल लें। यदि यह आवश्यक प्रमाण मे श्वेतवर्ण न हुआ हो तो इसे पुन जल या गोमूत्र मे घोलकर एवं छानकर छने हुए जल को पुनः गरम करे। शुष्क हुए द्रव्य को एकत्रित करके प्रयोगार्थ सुरक्षित रक्खे। यही यवक्षार है।

Yavakshar is useful in abdominal diseases and stone. It is digestive, mild laxative and anti-toxin.

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