हल्दी (Turmeric) मात्र मसाला अथवा औषधि ही नहीं, बल्कि धार्मिक, आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी
इसका सर्वप्रथम स्थान है। आयुर्वेद के
प्राचीनतम ग्रंथों में इसके महत्व की अपार महिमा का वर्णन उपलब्ध है। हल्दी चार
प्रकार की होती है। १. हल्दी , २. दारू हल्दी , ३. आंवा हल्दी , ४. काली हल्दी । जो दैनिक व्यवहार में हल्दी
आती है वही हल्दी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है तथा यहाँ पर भी उसके
गुणों का वर्णन है।
आयुर्वेदिक मत से
हल्दी चरपरी (कटु =Sharp Acrid Pungent), कड़वी, सौन्दर्यवर्धक, उष्ण, रूखी (रूखा पदार्थ अत्यंत कफहर (कफ का
नाश करने वाला) होता है), शोधक (शरीर को शुद्ध करने वाली) और स्त्रियों के लिये भूषण है। यह कफ, वात, रुधिर दोष (Blood Disorder), खुजली,
प्रमेह, त्वचा के दोष, घाव, सूजन,
पांडु रोग (Anaemia), कृमि,
विष (Toxin), पीनस,
अरुचि, पित्त और अपचन को दूर करने वाली होती है।
हल्दी (Turmeric) शरीर के रंग को निखारने वाली, गरम, कब्ज और वायु (गेस) निवारक, स्त्रियों को विशेष सौन्दर्य प्रदान करने वाली, कफ, वायु और रक्त की खराबियों को दूर करने
वाली, जिगर सुधारक, त्वचा रोग, फोड़ा,
फुंसी और सूजन को नष्ट करने वाली, आंखों को ज्योति प्रदान करने वाली, जवानी को सदाबहार बनाये रखने वाली, सुखपूर्वक निद्रा प्रदान करने वाली, प्रत्येक प्रकार के रोगों के कीड़ों को मारने वाली, पेशाब के प्रत्येक रोग को दूर करने वाली, असाध्य जख्मों को भरने वाली, छूत के रोगों से बचाने वाली, असाध्य रोगियों को मौत से बचा लेने वाली, किचन क्विन (रसोई की रानी) गौरी आदि उपाधियों से
विभूषित स्त्री यौनांगों के विकारों को हरने वाली सुवर्ण सुंदरी है।
विश्व के
प्रत्येक देशों की अपेक्षा यदि अपने प्राणप्रिय देश भारत में कुष्ठ रोग से पीड़ित
रोगी (कोढ़ियों) की संख्या कम है तो इसका एक मात्र श्रेय सिर्फ हल्दी को है। इसका सेवन राजा और रंक में समान रूप से
है और होगा।
डॉ. देसाई के मत
से जिन रोगों में श्लेष्म त्वचा से कफ अधिक मात्रा में निकलने लगता है जैसे गले के
द्वारा अधिक मात्रा में कफ का गिरना, नाक से श्लेष्म (सेडा) गिरना, तथा प्रमेह, प्रदर इत्यादि रोगों में हल्दी अच्छी काम देती है। हल्दी श्लेष्म त्वचा में रुक्षता (सूखापन) उत्पन्न
करके कफ का पैदा होना कम कर देती है। सरदी के अंदर जैसे वच फायदा पहुंचाती है वैसे
ही हल्दी भी पहुंचाती है। सरदी लग जाने पर
हल्दी की धूनी भी दी जाती है और हल्दी को दूध में औटा कर गुड मिला कर पिलाई भी जाती
है। इसके लेने से नाक के द्वारा सरदी बहकर मस्तक का भार हलका हो जाता है।
सुजाक रोग में जब
पेशाब गाढा, वेदनायुक्त, बार बार और थोडा थोडा होने लगता है तब हल्दी और आंवले का काढ़ा बहुत लाभ पहुंचाता है। इस काढ़े
से दस्त साफ होता है, पेशाब की जलन कम होती है, पेशाब थोडा थोडा होना बंद होकर साफ होने लग जाता है।
प्रदर रोग में हल्दी को गूगल के साथ अथवा रसोत
के साथ देते है।
आंखों के दुखने आने
पर १꠰ तोला हल्दी को १० औंस पानी में औटा
कर कपडे में छान कर आंखों में टपकाते है और उसमें कपडे को तर करके आंखों पर रखते
है। इससे आंखों में ठंडाई पैदा होती है, वेदना शांत होती है और आंखों से कीचड़ का
बहना कम हो जाता है। नेत्राभिष्यंद (आँख दुखना) रोग में हल्दी (Turmeric) एक उत्तम औषधि है। कान के बहने की हालत में हल्दी और
फिटकारी को मिला कर कान में टपकाते है।
हल्दी के अंदर
वातनाशक धर्म भी किसी कदर रहता है, इसलिए सर्दी से होनेवाली अंगो की वेदना, दस्तों की वजह से होनेवाले जोड़ों के दर्द और मस्तकशूल
(शिरदर्द) में हल्दी खाने और लगाने के काम
में आती है। बवासीर के सूजे हुए मस्सों पर हल्दी घीगुवार के गुदा में मिलाकर लगाई
जाती है। भूतोन्माद में इसकी धुनी दी जाती है।
चर्मरोगों (त्वचा
के रोग) में हल्दी एक बहुत उपयोगी वस्तु
है। इन रोगों में इसको आंवले के साथ देना बिशेष उपयोगी होता है। हल्दी को मक्खन
में मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा मुलायम होती है और बहुत से चर्मरोग नष्ट हो
जाते है। हल्दी के उबटन से शरीर का
सौंदर्य भी निखर जाता है इस लिये विवाह के समय हल्दी का उबटन इस देश में शास्त्रसम्मत माना गया है।
व्रणों (घावों) के ऊपर हल्दी को पीस कर लगाने से व्रण का संकोच होकर वह शीघ्र भर
जाता है। इधर उधर से आकस्मिक गिर जाने से अथवा और किसी दूसरी घटना से शरीर को
भीतरी चोट पहुंची हो, अथवा रक्त का जमाव हो गया हो तो हल्दी को
दानेदार शक्कर के साथ देने से रुधिर का जमाव बिखर जाता है और रक्त संचालन क्रिया
दुरुस्त हो जाती है। हल्दी का लेप चोट और मोच के ऊपर करने से लाभ पहुंचता है।
हल्दी में दीपन
और ग्राही (जो पदार्थ अग्नि को प्रदीप्त करता है,
कच्चे को पकाता है, गरम होने की वजह से गीले को सुखाता है; वह ‘ग्राही’
कहलाता है) धर्म भी रहता है इसलिए दस्त, अतिसार,
संग्रहणी इत्यादि रोगों में भी यह उपयोगी होती है। चक्कर आने की हालत में हल्दी का
लेप सिर पर करना चाहिए।
प्रसूतिकाल में
तथा बच्चा जब तक छोटा रहे तब तक प्रसूता को हल्दी देना उत्तम होता है क्योंकि इससे दूध की शुद्धि
होती है और गर्भाशय को उत्तेजना मिलती है।
हल्दी की गठानें
बाह्य और अंतर अंग दोनों ही दृष्टियों से उत्तेजक धर्म रखती है। इनका लेप करने से
ये त्वचा उत्तेजित कर वेदना को शांत करती है और इनका भीतरी प्रयोग रक्त की विकृति
को दूर करता है। इसका बाह्य प्रयोग चोट, मोच,
जोंक का डंक इत्यादि पर किया जाता है। इसलिए भारतवर्ष में हर एक लेप और पुलटिस में
हल्दी मिलाने का रिवाज है। इसका ताजा रस
कृमिनाशक होता है। इसकी गठानों का काढ़ा जुकाम और ऐसे नेत्र शूल रोग में जिसमें आंख
से पीप निकलता हो उपयोगी होता है। हल्दी के अंदर काफी तादाद में उड़नशील तेल और स्टार्च
रहता है जो की उत्तेजक, सुगंधित और पौष्टिक होता है।
हल्दी (Turmeric) की गठान को भूनकर फिर उसका चूर्ण करके ब्रोंकाइटिस
में देते है और इसका धुआँ हिस्टीरिया जनित मूर्छा को दूर करने के लिए दिया जाता
है। हल्दी का चूर्ण करके उसको चिलम में
रखकर उसका धूम्रपान करने से बिच्छू के विष की वेदना दूर होती है।
जुकाम के प्रारंभ
में रात के समय नाक के द्वारा हल्दी का
धुआँ ग्रहण करके अगर कुछ समय तक पानी न पिया जाय तो चाहे जैसा कठिन जुकाम अच्छा हो
जाता है।
हल्दी के घरेलू
नुस्खे: हल्दी के फायदे (Turmeric Benefits)
हिक्का (हिचकी)
आने पर हल्दी एक छोटा चम्मच पानी के साथ
लेने से तुरंत हिक्का बंद हो जाती है। परीक्षित है।
हल्दी, चने का आटा और दूध सबको मिलाकर इस पेस्ट को चेहरे पर
लगाये और २० मिनट के बाद चेहरे को धो डाले। इस तरह एक हफ्ते तक करने से चेहरा निखर
जाएगा। परीक्षित है।
बिच्छू दंश में हल्दी
बारीक पीसकर लेप करते रहना परम लाभकारी
एवं अनुभूत योग है।
हल्दी चूर्ण (Turmeric powder) 1 से 2 ग्राम तक शहद के साथ चाटने से
बलगमी खांसी दूर हो जाती है।
हल्दी का चूर्ण
और काले तिल बराबर मात्र में पानी में पीसकर चेहरे पर लेप करते रहने से चेहरे की
झांइयां दूर हो जाती है।
पिसी हल्दी और
नमक 1-1 ग्राम मिलाकर गरम पानी से फंकी लगाते ही 2-3 मिनट में हवा (वायु) खारिज
होकर अफरा मीट जाता है। आवश्यकतानुसार आधा-आधा घंटे पर 4-5 खुराकें ली जा सकती है।
घाव को धोकर हल्दी
चूर्ण बुरक देने से घाव के कीड़े मर जाते है।
हल्दी और अलसी मिलाकर पीसकर कुछ गरम कर फोड़े में बांधने से फोड़ा
शीघ्र फुट जाता है।
आधा से एक तोला हल्दी
दही में मिलाकर खाने से कामला (Jaundice) रोग ठीक हो जाता है।
बासी मुंह हल्दी और
काली मिर्च का चूर्ण गुनगुने जल से खाने से बुखार और जुकाम नष्ट हो जाता है।
हल्दी, आंवले का रस मधु मिलाकर खाने से प्रमेह नष्ट हो जाता
है।
हल्दी चूर्ण
फांककर भैंस का दूध पीने से आमवात (Rheumatism) दूर हो जाता है।
हल्दी, दारू हल्दी , आंवला,
बहेड़ा, कुटकी प्रत्येक 2-2 तोला (1 तोला=11.66
ग्राम), लौह भस्म 6 तोला मिलाकर रखलें। इसे 2-2
रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की मात्रा में मधु में चाटने से पांडु (Anaemia), कामला (Jaundice) और हलीमक रोग नष्ट हो जाते है।
हल्दी चूर्ण 6
रत्ती, काला नमक 6 रत्ती, ग्वारपाठे का रस 1 तोला मिलाकर सुबह-शाम खाने से यकृत
(Liver), प्लीहा (Spleen)
विकार नष्ट हो जाते है।
हल्दी और बकुची
को नींबू के रस में घोटकर बेर के समान गोलियां बनाकर सुरक्षित रखलें। 1-1 गोली जल
से खाने तथा जल में घिसकर लगाने से सफेद दाग नष्ट हो जाते है।
हल्दी, मैथी, आंवला और छोटी हरड़ को सममात्रा में लेकर
चूर्ण बनाकर रखलें। 10 ग्राम सुबह-शाम पानी से सेवन करते रहने से मधुमेह (Diabetes) रोगी का जीवन आराम से गुजर जाता है।
5-5 ग्राम हल्दी चूर्ण
दिन में तीन बार शहद के साथ चाटने से शीतपित्त रोग ठीक हो जाता है।
हल्दी का बारीक
चूर्ण दबाकर ऊपर से सख्त पट्टी बांध देने से घाव का रक्तस्त्राव बंद हो जाता है।
हल्दी, सोंठ और घी को दूध में मिलाकर काढ़ा बनालें। इसे पीने
से गुम चोट ठीक हो जाती है।
मट्ठा में 1 गांठ
पिसी हल्दी (Fresh
turmeric) मिलाकर खाने से पेट
दर्द शांत हो जाता है।
हल्दी चूर्ण में
बराबर शहद मिलाकर गोलियां बनाकर चूसने से खांसी नष्ट हो जाती है।
अकेली हल्दी की
छोटी सी गांठ (Fresh
turmeric) चूसते रहने से मुख के
छाले, खराश,
दाने, जलन और खांसी आदि विकार दूर हो जाते है।
ताजा हल्दी की 2 गांठें पीसकर सरसों के तैल में भून लें। फिर
यह तैल निथारकर शीशी में सुरक्षित रखलें। इसे चाहें तो रुई की बत्ती से कान में
लगायें या 2-2 बूंद गरम करके कानों में टपकायें। (हल्दी तैल जब भी कानों में डालें तो गरम करके गुनगुना
ही डालें ठंडा कदापि न डालें) कान बहने, मवाद आने का यह शर्तिया सस्ता इलाज है।
10-15 दिनों में घाव भरकर मवाद सुखकर कान निरोग हो जायेंगे।
भुनी हल्दी 1 ग्राम शहद में मिलाकर दिन में 4 बार चाटें
अथवा सितोपलादि चूर्ण सममात्रा में हल्दी चूर्ण मिलाकर सुरक्षित रखलें। इसे 1-1 ग्राम की
मात्रा में मिलाकर चाटते रहने से काली खांसी छू मंतर हो जाती है।
हल्दी पीसकर शहद
मिलाकर जंगली बेर (झाऊ बेर) के समान गोलियां बनाकर सुरक्षित रखलें। 2-2 गोली
सुबह-शाम चूसने से रक्त विकार नष्ट होकर खाज-खुजली नष्ट हो जाती है।
खूनी बवासीर में
बकरी के दूध की लस्सी के साथ अथवा पानी से तीन ग्राम हल्दी की फँकी सुबह-शाम 2-3
सप्ताह मारकर चमत्कार खुद देखें।
गृध्रसी रोग (Sciatica) में 10 ग्राम हल्दी पीसकर 25 ग्राम एरंड तैल में मिलाकर पीने से ऐंठन
और वायु शांत हो जाती है।
मामूली घाव में हल्दी
की गांठ पानी में रगड़कर गाढ़ा-गाढ़ा घाव के
किनारों तक लेप करें। यदि घाव गहरा हो तो पिसी हुई हल्दी छानकर तिल के तैल में धीमी आग पर भूनलें। पहले
नीम के पत्ते उबालकर नीम के पानी (क्वाथ) से (गुनगुने से ही) धोकर साफ करके हल्दी वाले तैल से रुई का फाहा तर करके घाव पर रखकर
ऊपर से पट्टी बांध दिया करें। घाव का शर्तिया इलाज है।
जिगर की खराबी
में 5 ग्राम हल्दी का चूर्ण गाय के मट्ठा
या दही के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल में निराहार मुख सेवन करने से 1 हफ्ते में आराम
मिलना शुरू हो जाता है और सवा महीने में जिगर रोगरहित हो जाता है।
दाढ़ दुखने पर हल्दी
तीन ग्राम,
लौंग तीन नंग और अमरूद के सूखे पत्ते तीन लेकर पीस कर 250 ग्राम पानी में उबालकर
10-15 मिनट कुल्ले कर डालें। तुरंत आराम होगा।
कच्ची हल्दी का रस और शहद 10-10 ग्राम बकरी के दूध के साथ
सेवन करना प्रमेह का अक्सीर उपचार है। यदि कच्ची हल्दी प्राप्त न हो तो सुखी हल्दी को पीसकर तीन ग्राम शहद के साथ चाटकर ऊपर से
बकरी का दूध पियें और यदि बकरी का दूध भी उपलब्ध न हो तो गाय का दूध पियें।
3-3 ग्राम की
मात्रा में दिन में तीन बार हल्दी चूर्ण पानी से सेवन करने से पुरानी से पुरानी
खांसी कुछ ही दिनों में भाग जाती है।
5 ग्राम हल्दी का
चूर्ण और 1 ग्राम वायविडंग का चूर्ण 1 चम्मच शहद में घोलकर चाटते रहने से 10-12
दिनों में आंतें व आमाशय (Stomach) पूर्णरुपेण साफ होकर पेट के कृमि भी नष्ट
हो जाते है।
सुबह-शाम 5-5
ग्राम हल्दी की फँकी पानी से लेने से
बार-बार मूत्र आने का रोग दूर हो जाता है।
3 ग्राम हल्दी का
बारीक चूर्ण में 12 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन चाटते रहने से मधुमेह रोग (पेशाब
में शक्कर आना) में अचूक योग साबित हुआ है।
10 ग्राम पिसी हल्दी
1 लीटर पानी में उबालकर इसे गुनगुना ही लेकर कुल्ला करने से (मात्र 4-5 बार के
प्रयोग से) मुख और तालु के छाले नष्ट हो जाते है।
सूचना: कच्ची हल्दी
के रस की मात्रा 10 से 25 ग्राम तक
(बच्चों को 5 ग्राम तक) तथा सुखी हल्दी (चूर्ण) की मात्रा अधिकतम् 10 ग्राम तक दें सकते
है। बच्चों को आधा ग्राम तक दे सकते है। एक ग्राम से अधिक कदापि न दें। भुनी हल्दी
भस्म बन जाती है, इसकी मात्रा बड़ों को भी रत्तियों (mg) में प्रयुक्त होती है। लेप में हल्दी की मात्रा अधिक रखी जा सकती है।
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