बुधवार, 26 जून 2019

चविकासव के फायदे / Chavikasavam Benefits


चविकासव (Chavikasavam) समस्त प्रकार के गुल्म (Abdominal Lump), 20 प्रकार के प्रमेह, प्रतिश्याय (सालेखम), क्षय (TB), खांसी, अष्ठीला (A type of abdominal lamp), वातरक्त (Gout), पेट के रोग और अंत्रवृद्धि आदि को नष्ट करता है।

इस चविकासव में मुख्य औषधि पाचक, दीपक, सारक (Mild Laxative), उष्णवीर्य (गरम) और कटु रसात्मक है। आम-अजीर्ण और विष्टब्धाजीर्ण (पित्त से होनेवाला अजीर्ण) में पचन व्यापार करनेवाले अवयवसमूहो में से पाचक रस का स्त्राव योग्य नहीं होता। ऐसी परिस्थिति में चविकासव के सेवन से वायु की प्रेरणा और रक्त की पूर्ति होती है और स्त्रोतोंरोध नष्ट होकर पाचक पित्तस्त्राव की वृद्धि होती है। इस तरह इन दोनों अजीर्णों में इस आसव का उत्तम उपयोग होता है।

आमाजीर्ण में क्लेदक कफ की वृद्धि होती है। आमाशय (Stomach) में आहार जाने पर उसमें पाचक पित्त योग्य प्रमाण में मिश्रित होना चाहिये; परंतु क्लेदक कफ की अधिकता के कारण पाचक पित्त (आमाशय रस = Gastric Juice) का योग्य मात्रा में स्त्राव नहीं होता, एवं आहार के साथ अच्छी तरह मिश्र नहीं होता। इसके विपरीत क्लेदक कफ की मात्रा बढ़ जाती है; वही भोजन में मिश्र हो जाता है। प्रारंभ में ऐसी स्थिति होने पर आगे-आगे के अन्य पाचक रस (यकृत पित्त, आंत्रिक रस, आग्नेय रस) भी निर्बल हो जाते है। योग्य रूप में स्त्राव नहीं होता, एवं अन्न के साथ मिश्र भी नहीं होते। इस कारण आहार, पचन नहीं होता, फिर वह सड़ने लगता है। इसका परिणाम समस्त शरीर पर होता है। पेट और कोष्ठ के बीच का स्थान जड़ हो जाता है। आलस्य, निद्रावृद्धि, निरुत्साह, हाथ-पैर टूटना, मुखमण्डल पर निस्तेजता, मुंह में बेस्वादुपन, या मीठापन, मुंह में बार-बार जल भर जाना आदि लक्षण उपस्थित होते है। इस पर चविकासव (Chavikasavam) अति उत्तम कार्य करता है।

वायु विशेषतः समानवायु की प्रेरणा की न्यूनता होने पर पाचक पित्त का स्त्राव योग्य मात्रा में और योग्य रूप में नहीं होता। पाचक पित्त थोड़ा निकलता है और पाचन करने का गुण भी कम होता है। आमाशय और अंत्र की गति मंद होने से आहार जीतने समय में आगे बढ़ना चाहिये, उतने समय में नहीं बढ़ सकता। इस कारण पेट खींचता है, मंद-मंद दर्द चलता है, शौचशुद्धि नहीं होती, सारे शरीर में मंद-मंद वेदना होती है, तथा पेट में अफरा आ जाता है। इस प्रकार के विकार में चविकासव उत्तम उपयोगी होता है।

इसका उपयोग वातज गुल्म, कफज गुल्म और वातकफज गुल्म पर अच्छा होता है, रक्तगुल्म और पित्तज गुल्म पर नहीं होता।

प्रमेहों के विकार में हस्तिमेह, लालामेह और इक्षमेह की उत्पत्ति यकृत (Liver) और अग्न्याशय की विकृति से होती है। विशेषतः पित्त का कार्य क्षीण होने पर कोष्ठ में दोषोत्पत्ति और कफाधिक्य की प्राप्ति होती है। फिर आहार में से रस और रक्त की उत्पत्ति योग्य नहीं होती। इस कारण यह दोषदुष्टि मूत्रमार्ग से बाहर निकलती है। बार-बार विशेष मात्रा में मुत्रोत्सर्ग होता है। मूत्र की मात्रा और संख्या, दोनों बढ़ जाते है। मूत्र में मधु नहीं जाता। किसी-किसी को लालातन्तुसह मुत्रोत्पत्ति होती है, मूत्र अज्ञानावस्था में हो जाता है या अनिच्छा वश निकल जाता है। ऐसे विकारों में चविकासव देना चाहिये।

इक्षुमेह के भीतर मर्यादा में मधु हो, तथा अपचन अधिक, बार-बार दुष्ट डकार, कब्ज, भूख न लगना, चरपरे पदार्थो की अधिक इच्छा होना आदि लक्षण हो तो चविकासव उपयुक्त औषधि है।

प्रतिश्याय और प्रतिश्याय जनित खांसी, बार-बार छींके आना, नाक बिलकुल पका-सा हो जाना, श्वासोच्छवास में कुछ त्रास होना, नाक और कंठ में दर्द, समस्त शरीर में दर्द (अंगमर्द) यह एक प्रकार है। दूसरे प्रकार में नाक में से जल गिरते ही रहना, और खांसी में कफ गिरना आदि लक्षण होते है। दोनों पर यह हितकारक है।

मात्रा: 10 से 20 ml समान मात्रा में जल मिलाकर देवें।

घटक द्रव्य (Chavikasavam Ingrediets): चव्य, चित्रकमूल, हिंगुपत्री (डीकामाली), पुष्करमूल, हाऊबेर, कचूर, कड़वे परवल के मूल, हरड़, बहेड़ा, आंवला, अजवायन, कुड़े की छाल, इंद्रायण के मूल, धनिया, नागरमोथा, मजीठ, देवदारु, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, गुड, धाय के फूल, दालचीनी, तेजपात, छोटी इलायची, नागकेशर, लौंग और शीतलमिर्च।

ग्रंथ: ग.नि. (गद निग्रह)  

Chavikasavam is useful in all types of abdominal lumps, coryza, tuberculosis, coughing, gout and abdominal diseases. The main herb in this ayurvedic medicne is digestive and mild laxative, so it is useful in indigestion.

Dosage: 10 to 20 ml with equal quantity of water.  

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