शनिवार, 6 जुलाई 2019

लौंग के फायदे / Benefits of Cloves


लौंग (Cloves) के वृक्ष बहुत सुंदर और सुगंधित होते है। ये वृक्ष झंजीबार में बहुत पैदा होते है। हिंदुस्तान दक्षिणी भाग में भी कुछ दिनों से इसकी खेती होने लगी है। इसके पत्ते बहुत सुगंधित होते है। इसके फूल की कलियों को लौंग कहते है। बाजार में जो लौंग मिलते है उनमें से बहुत सों का तेल निकाला हुआ होता है। असली लौंग वही होते है जिनमें से तेल न निकाला गया हो। लालची व्यवसायी लौंग में अर्क निकाली हुई लौंग मिलाकर बाजार में बेच देते है। यदि लौंग में झुर्रियां पड़ी हों तो निश्चित समझ लें की यह अर्क निकाली हुई लौंग है। अच्छी लौंग में कभी भी झुर्रियां नहीं हुआ करती है।  

लौंग के फायदे (Benefits of Cloves): गुण, दोष और प्रभाव:

लौंग पाचन क्रिया के ऊपर सीधा प्रभाव डालता है। इससे भूख बढ़ती है, आमाशय (Stomach) की रस क्रिया को बल मिलता है, रुचि पैदा होती है और मन में प्रसन्नता होती है।

लौंग का दूसरा धर्म कृमिनाशक होता है। आमाशय और आंतों के अंदर रहने वाले सूक्ष्म जंतुओं की वजह से मनुष्य का पेट फूलता है। उन जंतुओं को यह नष्ट करता है जिसकी वजह से पेट का फूलना मिट जाता है।

लौंग का तीसरा गुण रक्त (Blood) के अंदर श्वेतकणों को बढ़ाने का होता है। इस गुण की वजह से शरीर के अंदर रहनेवाले रोगमूलक किटाणुओं का नाश होता है।

इसका चौथा धर्म चेतना शक्ति को जाग्रत करना है। इसका यह गुण ह्रदय, रक्ताभिसरण (Blood Circulation) और श्वाच्छोश्वास के ऊपर स्पस्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। इसी कारण त्रिदोष और सन्निपात में दी जानेवाली औषधियों में इसको मिलाया जाता है।

इसका पांचवां गुण शरीर के अंदर की वायु नलियों का संकोच विकास और उसकी वजह से होनेवाली पीड़ा को कम करने का है। इसीसे दमा, इत्यादि रोगों में इसका उपयोग किया जाता है।

इसका छठा गुण शरीर की दुर्गंध को नष्ट करने का है। इस गुण की वजह से कफ, लार और मुंह में आनेवाली दुर्गंध को दूर करने के लिये इसका उपयोग किया जाता है।

लौंग का सातवाँ गुण मूत्रल है। इस गुण की वजह से यह मूत्रपिंड (Kidney) के मार्ग की शुद्धि करता है। और शरीर के विजातीय द्रव्यों को मूत्र के द्वारा निकाल देता है।

लौंग का आठवाँ गुण यह है कि शरीर के किसी बाहरी भाग पर इसको लगाने से यह चेतना कारक, वेदना नाशक, व्रणशोधक और व्रणरोपक (घाव को भरने वाला) असर बतलाता है।  

आयुर्वेदीक मत: भावप्रकाश के मतानुसार लौंग चरपरी (कटु = Sharp Acrid Pungent), कड़वी, नेत्रों को हितकारी, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकरक तथा कफ, पित्त, रक्तरोग, तृषा-मूर्च्छा, अफरा, शूल, खांसी, श्वास, हिचकी और क्षयरोग को नष्ट करती है।

राजनिघंटु के मतानुसार लौंग गरम, तीक्ष्ण, पाक के समय मधुर, शीतवीर्य तथा त्रिदोष (कफ, पित्त, वायु), आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है), क्षय (Tuberculosis) और खांसी को नष्ट करती है।

लौंग का तेल (Clove Oil) अग्निवर्धक, वात नाशक तथा दंतशूल (दांतों का दर्द), कफ और गर्भिणी की उल्टी को दूर करनेवाला होता है।

उपयोग / लौंग के टोटके / लौंग के फायदे / Benefits of Cloves:

हिचकियाँ आने पर (दो लौंग मुख में डालकर इसका रस चूसें)। रस चूसते ही हिचकियाँ बंद हो जायेगी। छोटी इलायची तीन माशा, लौंग 5 नंग दोनों को थोड़े से पानी में पीसकर, छानकर एक तोला मिश्री डालकर पीने से हिचकियाँ आना शर्तिया बंद हो जाती है।

किसी भी कारण से जी मिचला रहा हो, 6 लौंग चबा जायें, तुरंत आराम मिलेगा।

श्वास, खांसी, दमा में 8-10 लौंग भूनकर खाने से लाभ होता है। लौंग बलगम को हटाती है और श्वास की शिकायत दूर करती है।

पेट फूलना: आमाशय (Stomach) में जब हवा (वायु) जमा होकर पेट फूलने लगे तो लौंग का अर्क तैयार कर सेवन करें। अत्यंत ही लाभप्रद है। लौंग का चूर्ण डेढ़ ग्राम, खौलता हुआ पानी आधा किलो में जब पूरी तरह भीग जाये तब छानकर 25-25 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार प्रयोग करें। रोग समूल नष्ट हो जाएगा।

गर्भवती की उल्टी: लौंग को पीसकर मिश्री की चाशनी में मिलाकर चटाने से गर्भवती स्त्री की उल्टी और होबड़ मिटती है।

बुखार: लौंग और चिरायता दोनों समान भाग लेकर पानी में पीसकर पिलाने से ज्वर (बुखार) छुट जाता है और ज्वर के पश्चात की निर्बलता भी मीट जाती है।

गठिया: लौंग के तेल की मालिश करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है।

दमा: लौंग, आकडे के फूल और काले नमक की गोली बनाकर मुंह में रखकर चूसने से दमा और श्वास नलिका के रोग मीटते है।

ह्रदय की जलन: लौंग को ठंडे पानी में पीसकर छानकर मिश्री मिलाकर पीने से ह्रदय की जलन मिटती है।

गले की जलन: लौंग को आग के ऊपर सेककर खाने से गले की जलन मिटती है।

अजीर्ण: लौंग और हरड़ का क्वाथ बनाकर उसमें थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर पिलाने से अजीर्ण मिटता है और विरेचन होता है।

लौंग के नुकसान: लौंग की मात्रा 1 से 4 ग्राम तक है। यह गुर्दा और आंतों के लिए हानिकारक है। दालचीनी और जावित्री इसकी पूरक है तथा बबूल का गोंद और तर वस्तुएँ इसकी दर्पनाशक है।

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