वातगजांकुश रस (Vatgajankush Ras) सब प्रकार के वातरोगों (Musculoskeletal Disorder) को दूर करता है। त्रिदोषज भयंकर वातश्लेष्मात्मक गृध्रसी (Sciatica) रोग को 7 दिन में ही दूर करता है। एवं अपबाहुक (Shoulder Pain), उरुस्तंभ (कमर के नीचे का पक्षाघात), हनुस्तंभ (Lock Jaw), मन्यास्तंभ (वात-कफात्मक कंठ की बादी), पक्षाघात (कफविकृति सहित उत्पन्न होनेवाला अर्धांगवात), इन सब के लिये यह अत्युत्तम औषधि है।
वातरोग में जब तक
कफ या आम (अपक्व अन्न रस = Toxin) सहित कफ का संबंध हो, तब नयी और पुरानी अवस्था, दोनों में यह रसायन लाभ पहुंचाता है। केवल वातविकृति
पर वातविध्वंसन रस, वातपित्तात्मक विकृति में सूतशेखर रस और
आम का अधिक संबंध हो, तो योगराज गुग्गुल उपयोगी है। किन्तु जब
कफानुबंध हो, तब इस रसायन से बहुत हित होता है।
इस वातगजांकुश रस
का उपयोग अन्य वातरोगों की अपेक्षा गृध्रसी (Sciatica)
पर अधिक होता है। तीव्र शूल (दर्द) चलता हो और पेट में भारीपन रहता हो, तो अनुपान रूप से हरड़ का क्वाथ दिया जाता है।
मात्रा: 1-1 गोली
दिन में 2 बार पीपल के चूर्ण के साथ लेकर ऊपर मजीठ या हरड़ का काढ़ा पिवें। अथवा
अनुपान रूप से रास्ना, गिलोय,
देवदारू और अरंडी की जड़ का क्वाथ थोड़ा गुग्गुल मिलाकर गुनगुना कर पिवें। (1 गोली=250
mg)
घटक द्रव्य:
रससिंदूर, लोह भस्म,
सुवर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध गंधक, शुद्ध हरताल, शुद्ध बच्छनाग, बड़ी हरड़, काकड़ासींगी, सोंठ, कालीमिर्च,
पीपल, अरणी की छाल और सोहागे का फुला सब औषध समान
भाग। भावना: गोरखमुंडी और निरगुंडी के पत्तों के रस की 1-1 भावना।
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