मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

गाजर के फायदे / Benefits of Carrots


एक जमाना था जब गाजर (Carrots) को खरगोशों और गदहों का खाद्य माना जाता था, पर आज उसी को खाद्य वस्तुओं की रानी कहकर पुकारा जाता है और उसे अमृत की संज्ञा दी जाती है और गाजर के रस को जीवन रस की।

हमारे देश में दो प्रकार की गाजरें (Carrots) होती है – एक देशी गाजर, जिसे काली गाजर भी कहते है और दूसरी विलायती गाजर, जिसे पीली गाजर भी कहते है। दोनों प्रकार की गाजरें अच्छी और पौष्टिक होती है। देशी गाजर में अधिक रेशे होते है।

लाल और काले रंग की गाजरें अधिक गुणकारी होती है और पीले रंग की कम। गाजर की खेती लगभग समस्त भारत में होती है।

भोजन संबंधी खोज करने पर जब से यह बात ज्ञात हुई कि गाजर में कैरोटीन विटामिन ए के पीले रंग का अंश पाया जाता है, तबसे गाजर का स्थान साग-सब्जियों में बहुत ही ऊंचा हो गया है। कैरोटीन में प्रोटीन तत्व भी पता लगा है जिससे गाजर का खाद्यमूल्य और भी बढ़ गया है।

विटामिन ए जो गाजर (Carrots) में अत्यधिक और खास तौर से पाया जाता है, नेत्रों के लिये बड़ा बढ़िया टॉनिक है। नेत्र रोगों का शिकार वही व्यक्ति होता है जिसके आहार में इस विटामिन का अभाव या कमी होती है। यहाँ तक कि ऐसा व्यक्ति पूर्ण रूप से अंधा हो सकता है। हमारे देश में जो नेत्र रोग से पीड़ित रोगियों एवं अंधों की तादाद बढ़ती जा रही है, यह स्थिति गाजर तथा अन्य हरी पत्तीदार सब्जियों के सेवन से दूर हो सकती है। दूसरे जगदव्यापी महासंग्राम के समय हवाई जहाज के चालकों को गाजर का रस पीने के लिये विवश किया जाता था, जिस कारण वे अधिक ऊंचाई पर हवाई जहाज को – विशेष कर रात के समय, उड़ा सकते थे।

गाजर (Carrots) पेट को उसी तरह साफ करती है जिस प्रकार झाड़ू गंदे फर्श को। यह आंतों को खुरचकर उसका सब मल साफ कर देती है। इसलिये इसका उपयोग आरंभ करने वालों का मल पहले पहल बहुत ही दुर्गंधपूर्ण और मटमैला या काला निकलता है।

गाजर (Gajar) का कैरोटीन सभी चर्मरोगों की अचूक दवा है। कुछ दिन केवल दूध और गाजर पर रहकर पुराने से पुराने दाद, खाज, उकवत आदि चर्मरोगों से पिंड छुड़ाया जा सकता है। स्त्री और बच्चों को गाजर खाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। इसके प्रयोग से त्वचा सुंदर एवं कांतिवान बनती है। दुबले इसका प्रयोग कर अपना वजन बढ़ा सकते है। गाजर अत्यंत लाभदायक है, विशेषकर उस अवस्था में जब बचपन में शरीर का विकास और गठन हो रहा होता है।

गाजर की पैदावार जाड़ों में खूब होती है। उन दिनों मानो प्रकृति स्वस्थ्य का भंडार दोनों हाथों से लुटाती रहती है। पूरे जाड़ें में यदि गाजर का उपयोग विधिपूर्वक किया जाय तो यह एक कुशल डाक्टर से भी अधिक हितकारी सिद्ध होती है।

गाजर (Gajar) को खाकर उसका पूरा लाभ प्राप्त करने के लिये यह जरूरी है कि उसे काटने के पहले ही धो लिया जाय। काटने के बाद धोने से पानी में घुलने वाले उसके कई उपयोगी तत्व क्षार तथा विटामिन आदि व्यर्थ ही पानी के साथ बह जाते है। इसी प्रकार उबालने या छौंकने-बधारने से भी गाजर के अनेक लाभदायक तत्व नष्ट हो जाते है अथवा जल भूनकर समाप्त हो जाते है। और गाजर का हलुआ बनाने से तो उसका हलुआ ही निकल जाता है, अर्थात उसके अधिकांश गुणों का सर्वनाश हो जाता है, जिसकी वजह से लाभ के बदले उसके गरिष्ठ और दुष्पाच्य हो जाने का खतरा अलग से पल्ले पड़ता है।

गाजर से अधिकाधिक लाभ उठाने के लिये उसे धोकर साफ करके कच्चा ही चबाकर खाना सबसे अच्छा तरीका है। ऐसा करने से गाजर खाने का लाभ शतप्रतिशत तो मिलता ही है, साथ ही दांतों का व्यायाम भी भली-भांति हो जाता है जिससे वे सुंदर, सुदृद्ध व निरोग जीवन भर बने रहते है।

गाजर (Gajar) के सेवन में थोड़ी सावधानी भी बरतनी होती है। जिन्हें पेचिश, दस्त, आंत्र-क्षय अथवा अल्सर आदि की शिकायतें हों उन्हें गाजर का सेवन थोड़ा संभाल कर करना चाहिये, क्योंकि गाजर के रेशे व फुजले उपर्युक्त रोगों में हानिकर सिद्ध हो सकते है। इसलिये इन रोगों में कच्ची गाजर को चबाकर खाने के बदले उसका रस काम में लाना चाहिये।

क्षारीय होने के कारण गाजर रक्त को साफ कर रक्त के क्षार और अम्ल का अनुपात संतुलित रखती है और ऐसा होने से शरीर की कई बीमारियाँ अपने आप बिदा होने लगती है। नारियल का पानी गाजर के रस के साथ बड़ा स्वादिष्ट लगता है और गुणकारी भी होता है।

गाजर (Carrots) का रोगनुरोधक होना उसका एक विशिष्ट गुण है। यह त्वचा को साफ करके उसे सुंदर बनाने में भी सहायक होती है। त्वचा सुंदर बनती है अथवा मनुष्य रूपवान बनता है, शरीर के रक्त में लालिमा बढ़ती है क्योंकि उसमें प्रचुर मात्रा में लोह तत्व की उपस्थिती होती है। गाजर में लोह तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलता है जो रक्त में रहने वाले लाल कण हीमोग्लोबिन का भोजन होता है। जब लोह उन्हें नहीं मिलता तो वे निर्जीव हो जाते है। फलतः मनुष्य के मुंह पर रक्ताभाव की झलक दिखाई देने लगती है और वह रोगी व बदसूरत दृष्टिगोचर होने लगता है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि गाजर की पत्तियों में गाजर की अपेक्षा 6 गुना यह लोह पाया जाता है। पर इन पत्तियों की तरफ हमारा ध्यान तक नहीं जाता। उन्हें मनुष्यों का नहीं, जानवरों का भोजन समझा जाता है।

हमारे शरीर के लिये रोज 15 मिलीग्राम लोह की जरूरत होती है जो 5-6 सेर दूध में मुश्किल से पाया जाता है। पर यही लोह 100 ग्राम गाजर में 1.5 मिलीग्राम और गाजर की पत्तियों में 8.8 मिलीग्राम पाया जाता है। हिसाब लगाकर देखा गया है कि 15 मिलीग्राम लोह की पूर्ति जो हमें रोज चाहिये, 175 ग्राम मुफ्त की गाजर की पत्तियों से आसानी से हो जा सकती है।

सुंदरता के अलावा गाजर (Carrots), ओज (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र – ये सात धातु है – इन सातों के सार यानि तेज को “ओज” कहते है, उसे ही शास्त्र के सिद्धान्त से “बल” कहते है। ओज प्राणो का उत्तम आहार है), बल और जीवनी शक्ति को बढ़ाने में भी अद्वित्य मानी जाती है। गाजर की सर्वोच्च महत्ता इसी से विदित होती है कि इसमें शरीर के निर्माणकारी 12-12 आवश्यक खनिज पदार्थों के साथ अल्प मात्रा में आयोडिन भी होता है। इसमें किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से चौगुनी मात्रा में फोस्फोरिक एसिड विद्यमान होता है। गाजर में पोटैशयम, सोडियम और मैगनीशियम की पर्याप्त मात्रा होने के कारण ही यह रक्ताल्पता तथा दुर्बल रक्तसंचार के रोगियों को लाभ पहुंचाती है, रक्त में बढ़ी हुई अम्लता को साफ करती है, और आंखों, गला, टांसिल व श्वास नली को छूत लगने से बचाती है। इसके अतिरिक्त यह स्नायु जाल को मजबूत करती है। बौद्धिक व दिमागी शक्ति को बढ़ाती है, हड्डियों एवं दांतों को अच्छी व सुंदर दशा में रखती है, और बच्चों के सूखा रोग से बचाव करती है।

दूध पिलाने वाली माताओं के दूध के गुणों को उन्नत बनाने वाली गाजर यदि गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में अर्थात सातवें महीने से दसवें महीने तक ली जाय तो प्रसव के समय संक्रमण का कोई भय नहीं रहता।

लोह के अलावा जिन व्यक्तियों के भोजन में विटामिन ए की बहुत कमी रहती है वह भी गाजर (Gajar) खाने से पूरी हो सकती है। बच्चों, जवानों और बूढ़ों – सबके लिये गाजर एक जैसा लाभदायक है।

गाजर (Carrots) में विटामिन ए की अधिकता होने के कारण इसके गुणों को कूनूर के पौष्टिक आहार संबंधी जांच विभाग ने दूध, कॉड लिवर आयल और लाल पाम के तेल आदि के गुणों के सदृश ही माना है। जो लोग कॉड लिवर आयल लेना धर्मविरुद्ध समझते हों, उन्हें उसकी जगह गाजर खाकर लाभ उठाना चाहिये।

गाजर द्वारा रोगों की चिकित्सा: गाजर के फायदे / Benefits of Carrots

रतौंधी: शरीर में विटामिन ए के अभाव के कारण आँख की बीमारियाँ, विशेषतः रतौंधी प्रकाश आता है। यदि रतौंधी का रोगी रोज 1 किलो ग्राम गाजर का सेवन करें अथवा उसका रस पान करें तो यह रोग अवश्य दूर हो जाय, क्योंकि गाजर विटामिन एक का भंडार होता है।

पेट व आंतों की खराबी: गाजर का रस (Carrot Juice), पातगोभी के रस के साथ मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से पेट व आंतों की खराबी में लाभ होता है।

कोष्ठबद्धता (कब्ज): गाजर का रस और पालक का रस दोनों एक साथ मिलाकर पीने से कोष्ठबद्धता रोग मिटता है।

मोटापा: गाजर का रस और लेटुस (सलाद) की पत्तियों का रस एक में मिला कर पीने से मोटापा कम होता है।

नाक और गले के रोग: गाजर का रस 25 तोला (1 तोला=11.66 ग्राम) व पालक का रस 25 तोला दोनों को एक में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार लेने से नाक और गले के रोगों में लाभ होता है।

प्रमेह: 25 तोला गाजर (Gajar) का रस और एक तोला आंवले का रस दोनों को मिला कर दिन में 2-3 बार लेने से प्रमेह मिटता है।

एकजीमा: नमक का परित्याग करके दीन में 3-4 बार केवल 25-25 तोला गाजर का रस पीते रहने से एकजीमा मिट जाता है।

ह्रदय रोग तथा खून की खराबी: गाजर 20 तोले रस में पालक का 10 तोला रस मिला कर दिन में तीन बार, सुबह, दोपहर व शाम, पीने से ह्रदय रोग और खून की खराबी दूर होती है।

सूजन: गाजर का रस 20 तोला व पालक का रस 15 तोला एक साथ दिन में दो बार पीने से सूजन मिट जाती है।

संधिवात: दिन में 4 बार गाजर का 20-20 तोला रस पीने से संधिवात यानी जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

दमा: गाजर के 20 तोला रस में पालक का 10 तोला रस मिला कर दिन में 3 बार पीने से दमा में उपकारी होता है।

नेत्रों की रोशनी बढ़े: गाजर का रस 20 तोला व पालक का रस 15 तोला मिला कर दिन में दो बार – सुबह-शाम पीने से नेत्रों की रोशनी तीव्र होती है।

वीर्य दौर्बल्य: नियमित रूप से गाजर की खीर या हलुआ सेवन करने से वीर्यदौर्बल्य दूर होकर वीर्य पुष्ट और गाढ़ा होता है।

कामशक्ति का ह्रास: शहद में तैयार किया हुआ गाजर का मुरब्बा सेवन करने से कामोत्तेजना बहुत बढ़ जाती है।

स्त्री के स्तन में दूध की कमी: नियमित रूप से काली गाजर का हलुआ सेवन करने तथा उसके बाद गाय का धारोष्ण दूध पीने से स्त्री के स्तनों में अधिक दूध पैदा होने लगता है।

आग से जलना: ताजी गाजर को पीसकर जले स्थान पर लेप करने से दाह (जलन) की शांति होती है।

आंतों के कृमि: नियमित रूप से कुछ दिनों तक केवल गाजर खाते रहने से आंतों के अनावश्यक कृमि नष्ट हो जाते है।

खून के दस्त: गाजर (Carrots) के 10 तोले रस में 10 तोला बकरी का दूध मिला कर दिन में दो बार पीने से खून के दस्त आने बंद हो जाते है।

बच्चों के दाँत निकलते समय के उपद्रव: दाँत निकलने के समय के उपद्रवों की शांति के लिये तथा उन उपद्रवों से बच्चों को बचाने के लिये नित्य नियमित रूप से उन्हें कच्ची गजरों का रस पिलाते रहना चाहिये। ऐसा करने से उन्हें दूध भी भली भांति हजम होता रहेगा।

खाज-खुजली: गाजर को पीसकर और सैंधा नमक मिलाकर गरम-गरम लगाने से खाज खुजली आराम हो जाती है।  

गाजर की बर्फी: अच्छी ताजी गाजर ढाई सेर लेकर उन्हें साफ कर लें और कद्दूकस पर कस लेवें। फिर समभाग धृत में तल लेवें। तत्पश्चात उससे चौगुने दूध का खोवा लें और समभाग खांड की चाशनी में भुनी हुई गाजर और खोवा मिला दें, तथा श्वेत मूसली, श्वेत जीरा, छोटी इलायची, सोंठ, मिर्च, पीपल, दोनों बहमन, प्रत्येक का चूर्ण 2-2 तोले मिला दें। फिर सबको परात में निकाल कर ठंडा होने पर बर्फी कतर लें। इस बर्फी को 4 से 8 तोला तक की मात्रा से सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और बल-वीर्य की वृद्धि होती है।

  गाजर का मोहन भोग: गाजरों को छिलकर, उनके बीच का भाग निकाल कर फेंक दें। शेष मोटे गूदे के महीन टुकड़े कर, छाया में सूखा, महीन चूर्ण कर लें। यह चूर्ण 1 सेर (1 सेर=932.8 ग्राम) हो, तो उसमें 1 सेर सिंघाड़े का चूर्ण और आधसेर दालचीनी का चूर्ण मिलाकर सुरक्षित रखें। प्रतिदिन प्रातः सायं ढाई तोले (1 तोला=11.66 ग्राम) चूर्ण को ढाई तोले घी में भूनकर 5 तोले मिश्री की चाशनी मिला हलवा जैसा बना सेवन करें। यह मोहन भोग उत्तम बल-वीर्य वर्धक है।

गाजर की खीर: आध पाव (1 पाव=233.2 ग्राम) गाजर को साफ कर सिल पर महीन पीस लें। इसके बाद उसे आध सेर दूध में डाल कर मंद-मंद आंच पर पकावें। एक उबाल आने पर उसमें थोड़ी मिश्री या शक्कर मिला नीचे उतार लें और खायें। इस खीर के खाने से नेत्र ज्योति बढ़ती है, मस्तिष्क की शक्ति में वृद्धि होती है और पाचन शक्ति प्रबल होती है।

गाजर का शरबत: एक सेर गाजर (Gajar) को छिलकर और कुचल कर उसका रस निकाल लें। फिर उस रस को धीमी आंच पर पकावें। जब आधा शेष रहे, तब उसमें एक सेर खांड या बूरा मिला शर्बत की चाशनी तैयार हो जाने पर बोतल में भर रखें। जब शर्बत पीना हो 1 तोला की मात्रा से पिवें, चित्त प्रसन्न हो जावेगा। इस शर्बत के सेवन से रक्त की शुद्धि हो जाती है।

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