बच (Vach) का क्षुप 2-3 हाथ ऊंचा होता है। इसकी जड़ नीचे बहुत सी
शाखा-प्रशाखाओं से युक्त फैली होती है। बच का कंद पृथ्वी में अदरक के समान फैलता
है। बच (वच) का क्षुप सर्वांग गंधयुक्त होता है।
विशेषतः जड़ अत्यंत सुगंधित होती है। बच
(Vach) की जड़ (कंद) ही व्यवहार में आती है किन्तु बेचनेवाले बच की
डालियां भी उसमें मिला देते है।
बच (Vach) अपने प्राणप्रिय भारतदेश में सर्वत्र पाई जाती है।
एशिया खंड का मध्य भाग ही इसकी उत्पत्ति का मुख्य स्थान माना जाता है। श्वेत रंग
की बच ईरान में उत्पन्न होती है जो खुरासानी बच के नाम से मशहूर है। इसके गुण तो
हिंदुस्तानी वच के अनुसार ही है किन्तु मुख्यतः वातरोगों में खुरासानी बच अधिक
लाभप्रद है। इसमें गंध भी अधिक उग्र आती है। वैसे आयुर्वेदिक मतानुसार वच की अनेक जातियाँ
है जैसे – खुरासानी वच, घुड़बच,
श्वेत वच, महाभरी बच,
कुलीजन और अकरकरा इत्यादि। किन्तु औषधीय योगों में मुख्यतः श्वेत बच का ही उपयोग
किया जाता है।
बच (वच / Vach) में एक ऐसा
अद्भुत गुण विद्यमान है कि, इसके चूर्ण को पानी अथवा दूध के साथ एक मास
तक सेवन करने से मनुष्य बुद्धिमान और ज्ञानी होता है। चंद्रग्रहण के समय या
सूर्यग्रहण के समय 4 तोले (1 तोला=11.66 ग्राम) दूध के साथ सेवन करने से (उसके पच
जाने पर) उसी समय मनुष्य अत्यंत बुद्धियुक्त हो जाता है।
बच (Vach) उग्रगंध युक्त, उष्णवीर्य,
वमनकारक (उल्टी करनेवाली), अग्निजनक,
वाणीदायक, कंठ को हितकारी, अवस्थास्थापक, वात-कफ नाशक, स्मरणशक्ति वर्धक,
विबन्ध (कब्ज), अफरा एवं शूलनाशक, मल-मूत्र शोधक एवं मृगी, उन्माद, भूतबाधा,
कृमि तथा वायु नाशक है।
सफेद बच अधिक
गुणदायक, बुद्धि,
मेघा, आयु,
स्मृतिदायक, वीर्यवर्धक और बल वर्धक है। वच (Vach) मरोड और खांसी में बहुत उपयोगी प्रतीत होती है। साँप
को बच की गंध अनुकूल नहीं पड़ती है इससे साँप पर नारकोटिक के समान असर होता है।
इसलिये अपने घर के आस-पास इसका घेरा लगाते है एवं गारुडी (सर्पविष चिकित्सक) इसको
अपने पास रखते है।
वच (Vach) का कपड़छान चूर्ण 5 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करने से सर्दी के
कारण उत्पन्न कंठशोथ (गले में सूजन), गले के कांटे आदि विकार नष्ट हो जाते है।
(सर्जन देवेन्द्रनाथ राय)
बच 35 ग्रेन से
अधिक मात्रा में उपयोग नहीं की जाती है। 20 रत्ती की मात्रा में देने से अत्यंत
तीव्र उल्टी होती है जिसका रोकना अत्यंत कठिन है। श्वास-शांति के लिये यह औषध
उत्तम है, उसकी विधि – पहली मात्रा 15-20 ग्रेन की
देनी चाहिये, बाद में प्रत्येक तीन घंटे बाद 10 ग्रेन
की मात्रा कफनाशक रूप में देने से श्वास का वेग शांत हो जाता है।
वच (Vach) का प्रभाव नाड़ीमंडल और ज्ञानतंतु पर भी पड़ता है, इसी कारण देशी चिकित्सक बच का प्रयोग नाड़ीमंडल और
मस्तिष्क से संबंध रखनेवाले रोगों पर भी करते है। बच के प्रयोग से कंठ शुद्ध होकर
स्वरभंग (गला बैठना) अच्छा होता है और स्वर सुधरता है।
बच भूखवर्धक, स्नायुरोग शामक, चेतनाकर,
कामोद्दीपक, जननेन्द्रियोंत्तेजक है। यह श्वास नलिका
और कंठ के विकारों का शमन करती है। जिह्वा के जड़त्व का हरण करती है और स्मरण शक्ति
बढ़ाती है। यह सूजन और वातज्वर नाशक भी है। आयु को बढ़ाने का गुण भी इसमें मौजूद है।
यह शुक्रजनक भी है। एक साधारण सी जड़ी में कुदरत ने कई गुण भर दिये है। यह शरीर तथा
भूमि के दृश्य और अदृश्य सभी प्रकार के किट-किटाणुओं को विध्वंस करने की अपूर्व
क्षमता रखती है।
कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ
जिसमें वच का योग किया गया है – मदनानंद मोदक,
संजीवनी वटी, महामंजिष्ठादि क्वाथ, स्मृतिसागर रस, महायोगराज गुग्गुल इत्यादि।
मात्रा: 3 रत्ती से
1 माशा तक है। (1 रत्ती=121.5 mg; 1 माशा=0.97 ग्राम)
वच के कुछ
स्वतंत्र प्रयोग: Vach
Benefits
1) अपस्मार (Epilepsy): वच का चूर्ण शहद के
साथ सेवन करके केवल दूध मात्र का आहार करने से (कुछ दिनों के लंबे प्रयोग से)
पुराना अपस्मार भी अच्छा हो जाता है।
2) अम्लपित्त: बच
को गुड और शहद के साथ चाटने से अम्लपित्त मिटता है।
3) मुखरोग:
दिन-रात वच का टुकड़ा मुख में धारण किये रहना चाहिये इससे मुखरोग मिटकर सुख होता
है।
4) स्मरणशक्ति
बढ़ाने के लिये: 1 रत्ती स्वर्ण भस्म, 4 रत्ती बच का चूर्ण,
6 माशा (1 माशा=0.97 ग्राम) शहद में मिलाकर चटाना चमत्कारिकपूर्ण लाभ करता है।
5) गले के कफ
स्त्राव के लिये: पाँच रत्ती चूर्ण गर्म दूध में डालकर पिलाने से कफ ढीला होकर
निकल जाता है।
6) जमालगोटे के विष पर: वच के कोयले की राख 10 रत्ती को पानी
में घोलकर पीने से जमालगोटे का ज़हर उतर जाता है।
7) यदि पेट में
किसी अशुद्ध पदार्थ चले जाने अथवा विष सेवन कर लेने पर जी मिचलाता हो तो तुरंत बच
का चूर्ण दो माशा की मात्रा में नमक और गरम जल के साथ पिलाये। तुरंत उल्टी होकर
शांति मिलेगी।
8) पेट में दर्द
हो तो: वच का महीन चूर्ण 4 रत्ती 1 छटांक छाछ (तक्र) के साथ थोड़ा सा नमक डालकर
सेवन करें। अत्यधिक लाभप्रद योग है।
9) छोटे बच्चों
के पेट में कृमि होने पर 2 रत्ती बच का चूर्ण दूध के साथ दिन में 3-4 बार सेवन
कराने से कृमि नष्ट हो जाते है।
10) सूर्यावर्त
(अर्ध मस्तक शूल) में केवल बच चूर्ण का नस्य देने से अथवा बच और पीपल का समभाग चूर्ण लेकर महीन कपड़े में पोटली बांधकर
बार-बार सूंघने से यह रोग नष्ट हो जाता है।
11) छोटे बालकों
को एक प्रकार का अपस्मार हो जाता है जिसको बालकापस्मार के नाम से जाना जाता है। इस
रोग में बालक को दिन भर में कई बार दौरा आता है,
वह अकस्मात मूर्च्छित हो जाता है, मुख से फेन आने लगता है तथा उसके अंगों
में ऐठन शुरू हो जाती है। इस रोग में बच (Vach) अत्यधिक लाभप्रद है। 1 या 2 वर्ष आयु के
बालक को केवल 2 रत्ती बच का चूर्ण माता या गाय के दूध के साथ (दूध के अभाव में शहद
के साथ) दें तथा इसके चूर्ण की धूनी (चूर्ण आग पर डालकर उठते हुये धुए को नाक में
सुंघाना) दें।
12) वच चूर्ण 3
माशा, ब्राह्मीपत्र
चूर्ण 1 माशा दोनों को मिलाकर मिश्री, मक्खन के साथ प्रातःकाल सेवन करने से
सिरदर्द तो नष्ट होता ही है, साथ ही वीर्य पुष्ट होता है और स्मरण
शक्ति तीव्र होती है।
13) शीत अथवा ठंड
के कारण गला बैठ जाना, गले में खुजली या शुष्क खांसी होना, कंठ के विकार उत्पन्न होना जैसा कि धार्मिक प्रवचन
करने वाले संतो को अथवा भाषण करने वाले नेताओं को अथवा गायकों और अभिनेताओं के गले
में हो जाता है। उनका गला रूंध जाता है आवाज बैठ जाती है। नित्य शुष्क खांसी आती
है – इन समस्त विकारों में मात्र वच
(Vach) का टुकड़ा मुख में रखकर
चूसने से जो लार निकले उसे धीरे-धीरे गले के नीचे उतारने से गले की खुजलाहट मिटकर
आवाज साफ हो जाती है। खांसी नष्ट हो जाती है। यह गले को साफ करके कंठ को मधुर
बनाती है आजकल फिल्मों के प्लेबैक सिंगर अथवा बड़े नेतागण अथवा वक्तागण गले को साफ करने के लिये विदेशी गोलियां “जीनतान”
इत्यादि खाते है उनसे अनुरोध है कि वह जरा बच के टुकड़ों का व्यवहार करके तो देखें।
14) वच चूर्ण 3
माशा, ब्राह्मी पत्र चूर्ण 1 माशा दोनों को
मक्खन मिश्री के साथ प्रातःकाल सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है तथा स्मरणशक्ति
तीव्र होती है।
15) बच चूर्ण, वंशलोचन चूर्ण,
रूमीमस्तगी, छोटी इलायची के
दाने प्रत्येक 1-1 तोला, प्रवाल पिष्टी 3 माशा, कूजा मिश्री
ढाई तोला लें। समस्त औषधियों को कूट-पीस छानकर सुरक्षित रखें। इसे प्रातःकाल 3
माशा की मात्रा में शहद से चाटकर ऊपर से 250 ग्राम गोदुग्ध (गरम) पीने से बल-वीर्य
की वृद्धि होकर शरीर की पुष्टि होती है तथा शीघ्रपतन हेतु यह योग रामबाण है।
(प्रयोगकाल में पूर्ण ब्रह्मचर्य पूर्वक रहें तथा शारीरिक श्रम द्वारा कब्ज को दूर
रखें। )
16) जख्म या व्रण होने पर वच में बड़े
जख्मों को भर देने की अपार शक्ति है। जख्म पुराना हो गया हो, कीड़े पड़ गए हों या दुर्गंध आती हो तो वच का महीन किया हुआ चूर्ण और कर्पूर समभाग लेकर जख्म में भरें।
17) शरीर के किसी भी भाग में सूजन होने पर
वच चूर्ण अथवा वच को जलाकर इसकी राख को रैडी के तैल में खरल करके सूजन युक्त भाग
पर मालिश करने से अवश्य लाभ होता है। यहाँ तक कि इस प्रयोग से संधिवात की सूजन भी
नष्ट हो जाती है।
18) यदि किसी कारण से मूत्र साफ न होता हो
तो दो रत्ती भर बच चूर्ण दूध तथा शक्कर के साथ पीने से मूत्र की रुकावट दूर हो
जाती है।
19) जिस शीत ज्वर (ठंड देकर आने वाला
बुखार) अथवा विषम ज्वर (Malaria) पर सिनकोना तथा कुनैन से
कुछ भी लाभ नहीं होता है वहाँ पर ऐलोपथिक डाक्टर बच को सिनकोना के साथ अथवा केवल
वच (Vach) के चूर्ण को ही जल में घोलकर देने की सिफारिश करते
है और इससे शर्तिया लाभ होता है।
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