नागकेसर (Nagkesar) का वृक्ष बहुत बड़ा होता है जो सदैव हरा भरा रहता है।
फूलों के रंग भेद से नागकेसर के दो प्रकार है – एक सफेद या चंपई रंग के फूलोंवाली, दूसरी नारंगी रंग के फूलोंवाली, सफेद या चंपई रंग के फूलोंवाले वृक्ष बहुत कम मिलते
है। फूल में अत्यंत मनोहर सुगंध आती है। वास्तव में नागकेसर (Nagkesar)
के पुष्प की केशर ही औषधोपयोग में ग्रहण करनी चाहिये किन्तु केशर के अभाव में उसके
पुष्प या बीज काम में लिये जा सकते है। बाजार में तो बीज ही मिलते है। इन बीजों का
भी असली होना आवश्यक है। आजकल एक नकली नागकेसर और मिलती है जो शीतलचीनी के समान
गोल होती है। यह दूसरी जाति के नागकेसर वृक्ष Ochrocarpus Longifolius (ओक्रोकार्पस लौंगिफोलियस) के फूलों की कलियाँ है। इसी
को संग्रह करके बाजार में नागकेसर के नाम से बेचते है। मद्रास के बाजारों में एक
लवंगाकार कृष्ण द्रव्य भी नागकेसर के नाम से मिलता है किन्तु वास्तव में वह है
नहीं।
रक्तस्त्राव में
और रक्तार्श (खूनी बवासीर) में गुदाद्वार की जलन को
बंद करने के लिये नागकेसर
(Nagkesar) एक उत्तम औषधि है। हाथ-पैर की जलन को दूर
करने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। अधिक कफयुक्त खांसी में इसे देते है।
बंगाल में सर्पदंश में इसके फूल और पत्ते पिलाये जाते है। इसके बीजों का तेल
संधियों के दर्द और कमर की वेदना में मालिश किया जाता है। खुजली पर भी यह लगाया
जाता है। चरक, सुश्रुत और वाग्भट्ट के मत से इसके पत्ते
और फूल दूसरी औषधियों के साथ मिलाकर साप और बिच्छू के विष पर देने से लाभ होता है।
इसके फूल
(नागकेसर) संकोचक और अग्निवर्धक होते है। बहुत से जगह पर इन्हें खांसी और कफ नाशक
दवा की तरह काम में लेते है। जब खांसी में कफ की विशेषता होती है तब यह विशेष रूप
से काम में ली जाती है। नागकेसर का चूर्ण मक्खन और शक्कर के साथ खूनी बवासीर का
खून रोकने के लिये और पैरों की जलन मिटाने के लिये सफलता पूर्वक उपयोग किया जाता
है। उत्तरी कनाडा में इसके बीजों का तेल सुगंधित और गठिया में उपयोगी माना जाता
है। खुजली की चिकित्सा में भी उपयोगी माना जाता है।
नागकेसर (Nagkesar) कषाय रस युक्त, गरम,
लघु (लघु पदार्थ पथ्य, तुरंत
पचन होनेवाला और कफ नाशक होता है)
तथा आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता
है) को पचाने वाली है। बुखार, खुजली,
प्यास, पसीना,
उल्टी, हल्लास,
दुर्गंधि, कुष्ठ,
विसर्प, कफ, पित्त और विषविकार को दूर करता है। यह
बस्तिरोग (मूत्राशय के रोग), वातरोग,
रुधिररोग, ह्रदय की पीड़ा, कंठरोग एवं शिरोरोग नाशक है। नागकेसर के सूखे फूल, जड़ और छाल तिक्त,
पौष्टिक, सुगधित और स्वेदल (पसीना लानेवाला) है।
यूनानी मत से नागकेसर (Nagkesar) रक्तशोधक, पौष्टिक,
शीतप्रकृति व्यक्तियों के ह्रदय के लिये बलदायक है। आमाशय (Stomach) के दूषित अणुओं को मस्तिष्क पर चढ़ने से रोकता है।
आमाशय, यकृत (Liver)
और आंतों को बलदायक है, रक्तस्त्राव को रोकता है और पसीने की
दुर्गंध नाशक है। कफ-पित्त नाशक, विषनाशक और अर्श (बवासीर)नाशक है। वृक्क (Kidney) शूल में लाभदायक है,
इसका इत्र मस्तिष्क को बलदायक है।
मात्रा: 3 माशा (1 माशा=0.97 ग्राम) बीजों के चूर्ण की है, केशर 1 माशा ही पर्याप्त है।
नागकेसर के कुछ
स्वतंत्र प्रयोग: नागकेसर के फायदे
/ Nagkesar Ke Fayde
Y रक्तार्श (खूनी बवासीर) में: नागकेसर को मक्खन के साथ
सेवन करने से रक्तार्श का कष्ट और रक्तस्त्राव मिटता है।
Y पुत्र प्रसव के लिये: नागकेसर का सूक्ष्म चूर्ण
ऋतुकाल में स्त्री को गाय के घी के साथ चटाकर ऊपर से गाय का दूध पिलाने से स्त्री
अवश्य पुत्र उत्पन्न करती है, किन्तु उन दिनों केवल गाय का दूध प्रयोग
करना चाहिये। यह प्रयोग उत्तम गर्भस्थापक है। ( Ref: राजमार्तंड)
Y रक्तप्रदर में: सुबह-शाम नागकेसर का चूर्ण सेवन करने
से एवं तक्र (छाछ) मात्र सेवन करने से रक्तप्रदर मिटता है।
Y रक्तातिसार में: शक्कर के साथ नागकेसर का चूर्ण पीने
से रक्तातिसर मिटता है।
Y पैरों की सूजन पर: नागकेसर के चूर्ण को मक्खन में
मिलाकर लगाने से पैरों की सूजन मिट जाती है।
Y कफ स्त्राव के लिये: नागकेसर का चूर्ण फाँकना लाभदायक
है।
Y नागकेसर का तेल (Nagkesar Oil):
खुजली मिटाता है, दुर्गंधित घावों को दूर करता है। गठिया
पर मलने से दर्द दूर होता है।
Y प्रदर पर: नागकेसर के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ
खाने से प्रदर का स्त्राव मिटता है।
Y गर्भस्त्राव के भय पर: नागकेसर (Nagkesar)
का चूर्ण मिश्री मिलाकर दूध के साथ फाँकने से गर्भस्त्राव होने से रुकता है।
और पढ़ें:
0 टिप्पणियाँ: