सोमवार, 27 जनवरी 2020

लहसुन के फायदे / Garlic Benefits


लहसुन (Garlic) का जन्म अमृत से हुआ है, इसलिए लहसुन स्वयं अमृत है या अमृत-रसायन है, और इसलिए आयुर्वेद में कहा गया है कि संसार में शायद ही कोई ऐसा रोग हो जो लहसुन के प्रयोग से न अच्छा किया जा सके।

अमृत से उत्पन्न हुआ यह अमृत रूप लहसुन अमृत रसायन है। लहसुन (Garlic) का सेवन करने वाले व्यक्तियों के दांत, मांस, नख, दाढ़ी-मूंछ, केश, वर्ण, अवस्था एवं बल कभी क्षीण नहीं होते। लहसुन का सेवन करने वाली स्त्रियों के स्तन कभी ढीले-ढाले नहीं होते और न नीचे लटकते है। स्त्रियों के रूप, संतान बल एवं आयु क्षीण नहीं होते। उनके सौभाग्य की दिनोंदिन वृद्धि होती रहती है, तथा जीवन सुखमय और दृद्ध होता है। स्त्रियाँ लहसुन का अधिक सेवन करके भी शुद्ध रहती है तथा उन्हें मैथुन से उत्पन्न होने वाले रोग नहीं होते है।

लहसुन (Garlic) का सेवन करने से स्त्रियाँ कटि, श्रोणि तथा अन्य अंगों के रोगों के वशवर्ती नहीं होती है, अर्थात उन्हें कटि, श्रोणि एवं अन्य अंगों के रोग नहीं होते है। ऐसी स्त्री कभी बांज नहीं होती है और बदसूरत भी नहीं होती है।

लहसुन के सेवन से पुरुष भी दृद्ध, मेघावी (बुद्धिमान), दिर्धायु, सुंदर तथा संतानयुक्त होता है। मैथुन करते वक्त थकता नहीं है और शुक्र का धारण करने वाला होता है अर्थात लहसुन का सेवन करने से पुरुष के शरीर में वीर्य की वृद्धि होती है। जितनी भी स्त्रियों से लहसुन का सेवन करने वाला पुरुष मैथुन करता है, उन सभी को गर्भ स्थित हो जाता है तथा वह गर्भ नील कमल की सुगंध वाला तथा पद्म के वर्ण का होता है। इस तरह आयुर्वेद में लहसुन के अनेक अलौकिक गुण भरे पड़े है।

लहसुन (Garlic) धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, स्निग्ध (स्निघ वस्तु वायु का नाश करने वाली, वृष्य (पौष्टिक) और बलदायक होती है), उष्णवीर्य, पाचक तथा सारक (हलका दस्तावर) होता है तथा तीक्ष्ण (कफ और वात नाशक), भग्नसंधानकारक (टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाला), कंठ को हितकारी, गुरु (जो वस्तु अंगग्लानिजनक, मलवृद्धिकारी, बलदायक, तृप्तिजनक व शरीर वृद्धिकर हो उसे गुरु कहते है), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल तथा वर्ण को उत्पन्न करने वाला, मेघाशक्ति तथा नेत्रों के लिए हितकर और रसायन होता है एवं ह्रदयरोग, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), कुक्षिशूल (Belly Ache), मल तथा वातादिक की विबंधता, गुल्म (पेट की गांठ), अरुचि, खांसी, बवासीर, कुष्ठ, अग्निमांद्य, कृमि, वायु, श्वास और कफ को नष्ट करता है।  

लहसुन (Garlic) आयु को बढ़ानेवाला, दीपन, वृष्य (पौष्टिक) एवं आरोग्य को देने वाला है। स्मृति, मेघा, बल, अवस्था एवं वर्ण को बढ़ाने वाला तथा चक्षुओं के लिये हितकर है। यह मुख की दुर्गंधि को नष्ट करके उसे सुगंधित करता है, स्त्रोतों का शोधन करता है, वीर्य, रक्त एवं गर्भ को बढ़ाता है, यह सुकुमारता उत्पन्न करता है, बालों के लिये हितकर है तथा आयु को स्थिर करता है।

लहसुन (Garlic) के सेवन से शरीर मृदु एवं कंठ मधुर हो जाता है, ग्रहणी (Duodenum) के दोषों की शांति होती है तथा जठराग्नि प्रदीप्त होती है। अस्थि (हड्डी) भंग एवं अस्थिरोग, सम्पूर्ण वातरोग, आर्तव (मासिक) संबंधी रोग, वीर्य संबंधी रोग, भ्रम (चक्कर), खांसी, कुष्ठ, कृमि, गुल्म, विस्फोटक, विवर्णता (शरीर का रंग फीका होना), नेत्ररोग, श्वास, रतौंधी, अल्प भोजन, जीर्णज्वर, विदाह, तिजारी (तीसरे दिन अनेवाला ज्वर), चौथिया (चौथे दिन आने वाला ज्वर), स्त्रोतों का बंद हो जाना, शरीर की जड़ता, अश्मरी (पथरी), मूत्रकृच्छ, भगंदर, प्रदर, प्लीहा (Spleen), पंगुता (दोनों पैर हिन हो जाना), वातरक्त (Gout) इत्यादि रोगों में लहसुन लाभकर है; मेघा, अग्नि एवं बल की वृद्धि के लिये लहसुन का प्रयोग करता चाहिये। इससे रोगी शीघ्र ही रोगमुक्त हो जाता है और उसके शरीर की वृद्धि और पुष्टि होती है।

यूनानी चिकित्सा पद्धति की पुस्तक मखजनुल मुफ़रदात में लहसुन का गुण इस प्रकार वर्णित है:– “लहसुन वायु और सूजन को दूर करता है और ताकत पैदा करता है, पेट की तरलता को सुखाता है। पेशाब और स्त्रियों के मासिक धर्म को खोलता व जारी करता है। आवाज व हलक को साफ करता है। सांस, दमा और पुट्ठों की बीमारियों में लाभकारी है। लकवा में गुणकारी है और स्वास्थ्य को स्थिर रखता है।”      

लहसुन के गुणों का गान न केवल भारतीय चिकित्साशास्त्रों में ही हुआ है, बल्कि संसार के सारे देशों के वैज्ञानिक, चिकित्सक एवं शोधकर्ता भी इसके गुणों का बयान करते नहीं थकते है। विख्यात प्रगतिशील अंग्रेजी मैगजीन हियर्ज हेल्थ में लिखा है – “लहसुन अत्यंत शक्तिशाली एंटीसेप्टिक है। पायरिया, फोड़े, चर्मरोग आदि में यह बड़ा ही प्रभावकारी है। जहां कहीं सूजन हो लहसुन उसे नष्ट कर देता है। लहसुन के प्रयोग द्वारा आप प्रकृति की उपचार-क्षमता को बल प्रदान करते है।“

इसी प्रकार सायंस नामक पत्र में भी एक बार छपा था कि लहसुन ट्यूमर रोकने की एक ही दवा है, जिसका अर्थ यह होता है कि यह कैंसर की रोकथाम के लिये भी उपकारी होता है।

लहसुन में विटामिन ए, बी और सी विशेष मात्रा में पाये जाते है और अल्मूनियम, मैंगनीज, तांबा, सीसा, गंधक, लोहा, चुना तथा क्लोरीन आदि प्रकृतिक खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है।

लहसुन (Garlic) की गंध बड़ी कड़ी होती है – प्याज की गंध से भी अधिक कड़ी। कुछ लोग इसी कारण लहसुन की इस गंध को दोष या अवगुण मानते है, जो सही नहीं है। वास्तव में लहसुन के उपर्युक्त वर्णित लगभग सभी गुण लहसुन की उसके इस कड़ी गंध के कारण ही है, या यह भी कह सकते है कि लहसुन की यह कड़ी गंध उसका सबसे बड़ा अवगुण है। क्योंकि लहसुन की तीव्र और तीक्ष्ण गंध ही है जो घातक से घातक और बलिष्ट से बलिष्ट रोगाणुओं को नष्ट करके रोगी को उसके दुःसाध्य – असाध्य रोगों से मुक्ति देती है।

डाक्टर बेनेडिक ने एक जगह लिखा है कि लहसुन की गंध न केवल शरीर के रोगों को ही दूर करने में सहायता देती है अपितु वह शरीर की दुर्गंध और अस्वस्थता को भी समान रूप से दूर कर देने की क्षमता रखती है। लहसुन में रहा तैल चमड़ी, फुफ्फुस और वृक्क (Kidney) से बाहर निकलता है जिससे श्वासनलिका में श्लेष्म (कफ) ढीला होता है और सरलता से बाहर निकलता है तथा कफ की दुर्गंध कम होती है और कफ में रहे रोग किटाणुओं का नाश होता है। ज्ञानतन्तु पर लहसुन बलवान और उत्तेजक क्रिया करता है। अधिक मात्रा में लहसुन उल्टी और अतिसार पैदा करता है।

लहसुन के चिकित्सा संबंधी उपयोग: लहसुन के फायदे / Garlic Benefits

लहसुन को लगभग सभी रोगों की दवा कहा जाता है। राजयक्ष्मा और कुष्ठ जैसे भयानक और असाध्य रोगों को भी दूर करने की अद्भुत शक्ति लहसुन में होती है। प्रसिद्ध छः रसों में से पाँच लहसुन में मौजूद होते है। चरक के अनुसार लहसुन से वायु-गोला, पेट के रोग, त्वचा के सारे रोग, आंतों का क्षय, लकवा, रक्तचाप आदि अच्छे हो जाते है। सुश्रुत के अनुसार लहसुन तेज, हल्का, जोश दिलाने वाला, दस्त लाने वाला, ताकत देने वाला, रंग निखारने वाला, नेत्रों के लिये उपयोगी, टूटी हड्डी को जोड़ने वाला, दिल की बीमारियों को दूर करने वाला, पुराने ज्वर में लाभकारी तथा सूखा रोग, खांसी, दमा आदि रोगों में लाभ करता है।

आयुर्वेद में लहसुन की उत्पत्ति अमृत से मानी गई है। फलतः भारत के प्राचीन महर्षियों ने प्रयोग करके देखा तो इसे लगभग सभी रोगों में अमृत तुल्य गुणकारी पाया। इसके अतिरिक्त इसके संस्कृत नाम इसके गुणों को बताते है। वस्तुतः लहसुन आयुर्वेद की एक दिव्य औषधि है जिस पर आयुर्वेद को गर्व है।

ऊपर बताया गया है कि संसार में कुल छः रस होते है, जिनमें से एक अम्ल (खट्टा) रस को छोडकर शेष पाँच रस लहसुन में होते है। इसलिये इसे रसोन भी कहते है। लहसुन (Garlic) की जड़ में चरपरा रस होता है पत्तियों में कडुआ रस, बीज में मधुर रस, नाल में कसैला रस तथा नाल के अग्र भाग में खारा रस होता है। लहसुन में एक साथ पाँच-पाँच रस मौजूद होने के कारण ही इसे अमृत की संज्ञा आयुर्वेद में दी गयी है। सुप्रसिद्ध लशुनादिवटी में लहसुन का योग किया गया है।

नोट:- लहसुन की मात्रा 1 ग्राम से 3 ग्राम अर्थात 2-8 जवे या कलियाँ है। गर्म प्रकृति वालों को यह हानिकारक है। सिरदर्द पैदा करता है, खून जलाता है, फेफड़ों तथा गर्भवती स्त्रियों को हानिकारक है। गर्म प्रकृति वालों को आवश्यकता पड़ने पर अल्प मात्रा में सेवन करें। स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ते देखकर तुरंत इसका सेवन बंद कर दें। गरम वस्तु खाने से जिसका पित्त बढ़ जाता हो, उन्हें भी इसका सेवन नहीं करना चाहिये। लहसुन को कच्चा तथा चबाकर खायें। बाह्य प्रयोग करते समय कृपया ध्यान रखें कि यह एक तीव्र जलन करने वाली चर्मदाहक वस्तु है अतः लेप को अधिक समय तक शरीर पर रखने से छाला उठ सकता है जिसमें काफी वेदना होती है, इसलिये कोमल प्रकृति के लोगों पर इसका लेप पूर्णतः सावधानीपूर्वक करें। इसके दर्पनाशक कतीरा, धनिया, रोगन बादाम, सिकंजबीन, खट्टे मीठे अनार का रस और नमक पानी में पका लेना है।

मांस तथा अम्ल (खट्टा) रस युक्त खाद्य पदार्थ लहसुन खानेवाले को हितकारी है। व्यायाम, धूप (में फिरना, बैठना), क्रोध करना, अत्यंत जल पीना, दूध और गुड (अति सेवन और लहसुन के साथ ही खाना) लहसुन खानेवाले के लिये अहितकर है।

लहसुनवर्जित व्यक्ति: अतिसार (Diarrhoea), प्रमेह, पांडु, बवासीर, अरोचक, मूर्च्छा, मद (नशा), रक्तपित्त, उल्टी रोग से पीड़ित व्यक्ति को तथा गर्भिणी को इसका सेवन नहीं करना चाहिये (आहार में भी लहसुन का उपयोग नहीं करना चाहिये)।

लहसुन के चिकित्सा संबंधी कुछ विशिष्ट प्रयोग / लहसुन के फायदे / Garlic Benefits

अत्यंत वाजीकरण: लहसुन को छीलकर और कुचलकर अच्छी तरह पीस लें, फिर उसमें तीन गुना मधु मिलाकर ढक्कनदार शीशी में 21 दिन तक गेहूं के ढेर में दबा दें। उसके बाद प्रातः-सायं 1 तोला की मात्रा से दूध के अनुपान से सेवन करें। (1 तोला=11.66 ग्राम)

दूसरी विधि यह है कि लहसुन की छिली हुई गाँठो को गाय के दूध में उबालकर पीस लें और दूना मधु मिलाकर सेवन करें। मात्रा 1 तोला प्रातः-सायं दूध से।

सर्दियों में 2-3 मास उपर्युक्त योग को सेवन करने से भूख खूब खुलकर लगने लगती है। इससे शरीर पर रसायन का प्रभाव होता है। इससे नपुंसकता में भी लाभ होता है और यह अत्यंत वाजीकरण तो है ही।

टॉनिक: जाड़ों में दूध, घी, दही, मक्खन के साथ लहसुन की कच्ची कलियों का सेवन करने से वह एक जबर्दस्त टॉनिक का काम करता है। साथ ही उस वक्त वह नपुंसकता और बांझपन तक को मिटाने के लिये अक्सीर बन जाता है तथा वीर्य को शरीर में बढ़ाकर उसे काफी गाढ़ा कर देता है। अफगानिस्तान के जवान पठानों के लाल भभूका बने रहने का रहस्य यही है कि उनमें से अधिकांश लहसुन का नियमित रूप से सेवन करते है। वे लहसुन की कलियों को पीसकर और उसमें बराबर का घी मिलाकर, उसके चौगुने वजन के दूध में खीर की तरह पकाकर खाते है।

लंबी आयु: आधपाव लहसुन की कलियों को छीलकर पीस लें। उसके बाद उसे पाव भर शुद्ध गाय के घी में मिलाकर भून लें और रख लें। रोज प्रातः इसमें से थोड़ा सा लेकर और शहद मिलाकर खायें। ऊपर से 1 या 1.5 पाव गाय का धारोष्ण दूध पीवें। इस नियम को पूरे साल भर तक निभायें तो सौ साल की आयु पाना कोई मुश्किल न हो। इन दिनों आपका पथ्य होना चाहिये गेहूं या जौ की दलिया और दूध या दूध और भात। इस प्रयोग से न केवल लंबी उम्र पायी जा सकती है अपितु शरीर निरोग भी रहेगा।

पेशाब द्वारा चीनी जाना: लहसुन की 2-3 कच्ची कलियों को त्रिफला के साथ प्रतिदिन खाने से पेशाब द्वारा चीनी जाने में लाभ होता है।

माता के स्तनों में दूध की कमी या विकृत दूध: रोज भोजन करते वक्त यदि बच्चे की माता 2-3 लहसुन की कच्ची कलियाँ खा लिया करें तो उसके स्तनों में उसके बच्चे के लिये काफी दूध उत्पन्न होने लगता है और यदि दूध अशुद्ध हुआ तो वह शुद्ध हो जाता है।

अपस्मार (Epilepsy): लहसुन की कुछ कलियों को दूध में पकाकर नित्यप्रति सेवन करने से कुछ ही दिनों में इस रोग से निजात मिल जाती है। जब इस रोग में रोगी को बेहोशी के दौरे आयें तो उस वक्त लहसुन को कुचलकर उसे रोगी को सूंघाने से तथा उसके रस की कुछ बुँदे रोगी की नाक में टपकाने से बेहोशी तुरंत दूर हो जाती है।

गठिया वात: दो छटांक लहसुन की कलियों के साथ एक-एक छटांक हरड़, सोंठ तथा दो-दो छटांक दालचीनी और छोटी इलायची एक सेर दूध में पकावें और गठिया वात के रोगी को नियमपूर्वक खिलावें तो रोग आराम हो। असली घी में 3-4 लहसुन की कलियों को भूनकर खाना भी इस रोग में उपकारी होता है।  

लहसुन का रस भैंस के दूध के साथ सेवन करने से भूख बढ़ जाती है तथा गठिया और टी.बी. के रोगी के लिये तो अत्यंत लाभप्रद और शक्तिवर्धक है।

गरीबों के लिये सबसे अधिक सस्ता एंटीबायोटिक और हानि रहित औषधि मात्र लहसुन है। यह पैर के अंगूठे से सिर के बाल तक शरीर के प्रत्येक भाग व अवयवों पर अपना रोगनाशक व स्वस्थ्य रक्षक प्रभाव डालता है। जिन लोगों को दिल का एकाध दौरा पड़ चुका हो, वे यदि लहसुन का इतेमाल न करते हों तो तुरंत ही लहसुन का इस्तेमाल प्रारंभ कर निश्चिंत हो जायें।

लहसुन के अंदर रोम-छिद्रों के द्वारा शरीर में शोषित होने का गुण विद्यमान है। अतः न्यूमोनिया में इसका प्रयोग छाती पर बतौर पुल्टिस के करने से लाभ होता है। न्यूमोनिया में बच्चों को लहसुन की चंद कलियाँ छिलकर धागे में पिरोकर हार की भांति गले में पहनाना लाभप्रद है।

गाय के 100 ग्राम घी में लहसुन की तीन कलियाँ जलाये, जब खूब जल जाए तो लहसुन को निकालकर फेंक दें तथा घी को शीशी में सुरक्षित रखलें। आवश्यकता के समय कानों में 2-3 बूंदें डालें। इस योग से कान का दर्द तुरंत मिट जाता है, कान से पीप बहना भी रुक जाता है।

रात्रि में 250 ग्राम दूध में लहसुन की 5 कलियाँ छोटी-छोटी काटकर, धीमी-धीमी आग पर उबालकर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से दुर्बलता, गठिया, जोड़ों के दर्द एवं कंपन जैसे वृद्धावस्था के रोग नष्ट होकर शरीर में पुनः नये सिरे से बल का विकास होने लग जाता है।

लहसुन की 5 कलियाँ छीलकर 50 मि.ग्रा. जल में पीसलें। इसके बाद इसे छानकर 10 ग्राम शहद घोलकर पीने से पलित रोग (सिर के बालों का पकना) नष्ट हो जाता है। यह योग बालों को काला रखता है तथा अत्यंत शक्तिवर्धक पौष्टिक रसायन है।

लहसुन की छिली हुई 1 से 2 तोला (1 तोला=11.66 ग्राम) कलियाँ गोधृत में थोड़ा पकाकर धारोष्ण गोदुग्ध के साथ नित्य सुबह-शाम सेवन करने से निःसंदेह ही नपुंसकता दूर होकर पुंसत्वशक्ति बढ़ जाती है।

20 ग्राम घी में लहसुन के छिले हुये 5 जवे (कलियाँ) पीसकर भून लें तथा इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर कफजनित श्वास रोगी को चटायें। अत्यंत लाभप्रद योग है। इसके सेवन से श्वास-खांसी नष्ट हो जाता है।

लहसुन का स्वरस 20 से 30 बूंद तक शहद के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से फुफ्फुस के विभिन्न रोग जैसे – श्वास, खांसी, श्वासनलिका प्रदाह, श्वास कृच्छता, फुफ्फुस की सूजन, वात-श्लेष्मिक बुखार, फुफ्फुस पाक आदि नष्ट हो जाते है।

लहसुन स्वरस 10 ग्राम को सरसों का तैल 250 ग्राम में मिलाकर रखलें। इस तैल की प्रतिदिन मालिश करके एक घंटा धूप में बैठने के बाद उष्ण जल से स्नान करने से खाज खुजली नष्ट हो जाती है।

लहसुन को शहद के साथ पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम लेप लगाने से चंबल (सोरायसिस) और दाद (रिंगवार्म) शर्तिया दूर हो जाता है।

लहसुन को बारीक पीसकर व्रण पर लगाने से घाव भर जाता है तथा पका हुआ व्रण चाहें वह कृमियुक्त ही क्यों न हो, इस लेप से अवश्य ठीक हो जाता है।

लहसुन और दूध क्रमशः 250 और 500 ग्राम को मंद अग्नि पर पाक करें। जब लहसुन और दूध मिलकर एकजान हो जायें तो खूब भली प्रकार मलकर छानकर पुनः छने हुए दूध को आग पर पकाकर खोवा बनालें। तदुपरांत इस खोवा में 500 ग्राम खांड मिलाकर 10-10 ग्राम के पेड़े बनाकर रखलें। इनमें से सुबह-शाम 1 से 2 पेड़े तक खिलाने से अर्धांग, वातरोग एवं अर्दित (Facial Paralysis) इत्यादि रोग नष्ट हो जाते है।

वायुविकार में: लहसुन को पीसकर घी के साथ खाना चाहिये। खुराक में घी की मात्रा अधिक लेनी चाहिये।

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