सोमवार, 27 जनवरी 2020

दारुहल्दी के फायदे / Daru Haldi Benefits


दारुहल्दी (Daru Haldi) का काँटेदार झाड 10-12 फीट ऊंचा होता है और वह सदा हरा भरा रहता है। मूल से ही अनेक शाखायें निकलती है जो सब भूमि की ओर झुकी रहती है। इस वृक्ष की जड़ और शाखाओं के टुकड़े दारुहल्दी के नाम से व्यवहार में आते है।

दारुहल्दी (Daru Haldi) भूखवर्धक, बुखार नाशक, मृदु रेचक है। प्रदर और व्रण (घाव) नाशक भी है। इसके क्वाथ से बना हुआ रसांजन बहुत उपयोगी है, जिसका वर्णन आगे करेंगे।

दारुहल्दी (Daru Haldi) नेत्ररोग, कर्णरोग, मुखरोग, प्रमेह, खुजली, विसर्प, त्वचा के विकार, व्रण और विषनाशक है। स्वेदजनक (पसीना लानेवाली), पित्त, कफ तथा सूजन नाशक है। दारुहल्दी विशेषतः कफाभिषयंद (कफ के कोप से नेत्र दुखना) नाशक है।

यूनानी मत से दारुहल्दी रक्त के उबाल और सूजन को शांत करती है। आँख, कान और मुंह के रोगों को शमन करती है। कामला, प्रमेहनाशक और मुख की विरसता को दूर करती है। नासूर, सुजाक, चर्मरोग, पेट के कृमि को लाभदायक है।

दारुहल्दी की मात्रा: 1 माशा से 3 माशा तक। (1 माशा=0.97 ग्राम)

रसांजन (रसौत) बनाने की विधि:

दारुहल्दी का काढ़ा बनाकर उसीके बराबर उसमें दूध डालकर औटावे, बाद को जब चौथाई भाग शेष रह जाय तब उतारकर उसमें जो गाढ़ा भाग हो उसे अलग कर लेवे, उसी को रसौत कहते है। यह नेत्र-रोगों को परम हितकारी है।

रसौत (रसांजन) के गुण: रसौत चरपरा, कड़वा रस युक्त, गरम, रसायन, छेदन (जो पदार्थ आपस में मिले हुये कफ आदि दोषों को, अपनी शक्ति से फोड़कर अलग-अलग कर देवे, उसको छेदन पदार्थ कहते है) एवं कफ, विष, नेत्ररोग और व्रणनाशक है। यह तीक्ष्ण (कफ और वात नाशक), वीर्यजनक, रक्तपित्त, उल्टी, श्वास, मुखरोग, हिचकी, बवासीर और कर्णरोग नाशक है।

3 माशा की मात्रा में रसौत को जल में उबालकर ज्वरघ्न (बुखार नाशक) औषध के रूप में दिन में 3-4 बार व्यवहार में लिया जाता है, इसका सेवन जठर के ऊपर के प्रदेशों (Epigastrium) पर गर्म प्रभाव रखता है, भूख लगती है, भोजन पचता है और साफ दस्त होता है। इसके प्रयोग के समय (पसीने के कारण) त्वचा आर्द्र सी रहती है। 30 तिजारी ज्वर के रोगियों का केवल तीन दिन में ज्वर रुक गया, चौथिया ज्वर के आठ रोगियों में से 6 को इसी रसौत ने अच्छा किया। विषम ज्वर के कितने ही रोगियों को अच्छा किया किन्तु एक भी रोगी को मलावरोध (कब्ज) और शिरःशूल नहीं हुआ।

दुखते हुए मस्सों के लिये 3 से 8 रत्ती तक की मात्रा में माखन के साथ रसौत ले सकते है। आधा पाव पानी में 4 माशा रसौत घोलकर उस पानी से मस्सों को धोना चाहिये, कपूर और माखन के साथ रसौत का मलहम बनाकर, गलगंड आदि फोड़ा, फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।

शुद्ध रसांजन की मात्रा 4 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) से 1.5 माशा (1 माशा=0.97 ग्राम) तक की है।

दारुहल्दी के कुछ स्वतंत्र प्रयोग: Daru Haldi Benefits

वीर्यस्तंभन के लिये: दारुहल्दी (Daru Haldi) का चूर्ण खांड के साथ फाँकने से स्त्रीप्रसंग में रुकावट बढ़ती है।

प्रमेह में: दारुहल्दी का चूर्ण मधु के साथ पीने से प्रमेह नष्ट होता है।

अस्थि (हड्डी) भंग पर: अंडे की सफेदी के साथ पीसकर लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है तथा चोट लगे हुये स्थान पर शीघ्र ही लेप करने से रुधिर नहीं जमता है, एवं चोट की कसक भी मिटती है।

श्वेतप्रदर: दारुहल्दी का चूर्ण चावल के धोवन के साथ सेवन करने से प्रदर मिटता है।

कामला में: दारुहल्दी का क्वाथ शहद डालकर प्रातःकाल पीने से कामला मिटता है।

सब प्रकार के नेत्राभिषयंद (आँख दुखना) में: दारुहल्दी को सोलहगुने जल में पकाकर आठवाँ भाग शेष रहने पर छानकर शहद मिलाकर आँख में बूंद-बूंद टपकानी चाहिये या छींटे देने चाहिये इससे आँख दुखना मिटता है।

व्रणरोपण (घाव भरने) के लिये: दारुहल्दी (Daru Haldi) का कल्क (आर्द्र औषध को शीला पर पीस देवे अथवा शुष्क औषध को जल देकर अच्छी तरह पीस देवे तो उसे कल्क कहते है) विशेषरूप से घाव को पुरनेवाला है।  

बुखार के बाद की निर्बलता के लिये: दारुहल्दी की जड़ की छाल का चूर्ण शहद में मिलाकर चटाना चाहिये।

वातजन्य पेट दर्द पर: दारुहल्दी की जड़ की छाल को गुड के साथ औटाकर पिलाने से पेट का वायु-दर्द मिटता है।

बुखार पर: इसकी जड़ या लकड़ी का क्वाथ प्रयोग करने से शोथयुक्त (सूजनयुक्त) बुखार, सदैव चढ़ा रहनेवाला बुखार दूर हो जाता है। जो बुखार कुनैन और संखिया के प्रयोग से भी नष्ट नहीं होता, वह इसके प्रयोग से नष्ट हो जाता है।

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