अनार (Anar) एक रसदार फल है जो हमारे देश में सर्वत्र पाया जाता
है। यह फल भरतेतर देशों जैसे अरब, ईरान,
अफघानिस्तान, जापान,
दक्षिणी यूरोप और अफ्रीका में भी कसरत से पाया जाता है, कहीं छोटे और कहीं बड़े आकार में।
स्वाद की दृष्टि से
अनार (Anar) तीन प्रकार का होता है – मीठा, खट्टा व खटमीठा। उत्पत्ति की दृष्टि से इसके दो भेद
है – जंगली और बागी। एक प्रकार का अनार और होता है – गुलनार, जिसमें केवल फूल ही उगते है, फल नहीं। इसको नर अनार भी कहते है।
मीठा अनार (Anar): काबुल, कंधार और अरब के पास मरु प्रदेशों में
पाया जाने वाला अनार उत्तम किस्म का, आकार में बड़ा, सुस्वादु, अत्यंत मीठा, काफी रसीला तथा मुलायम बीजों वाला होता है। इस मीठे
अनार की एक किस्म को बेदाना कहते है।
मीठा अनार
त्रिदोष (कफ-पित्त-वात) नाशक, वीर्यवर्धक, तृप्तिकारक, हल्का,
मलावरोधक, बुद्धिवर्धक, स्मरणशक्ति वर्धक,
बलवर्धक, ग्राही (जो पदार्थ अग्नि को प्रदीप्त
करता है, कच्चे को पकाता है, गरम होने की वजह से गीले को सुखाता है; वह ‘ग्राही’
कहलाता है), दीपन,
स्निग्ध (स्निग्ध वस्तु वायु का नाश करने वाली,
वृष्य (पौष्टिक) और बलदायक होती है) तथा प्यास,
जलन, बुखार,
ह्रदयरोग, मुख की दुर्गंध, कंठ रोग एवं मुख रोग नाशक है। यह सौन्दर्यकारक, रक्तवर्धक, पाचक,
मूत्रल, रुचिकरक,
पौष्टिक, पित्तनाशक,
संकोचक तथा कृमिनाशक भी होता है। मीठा अनार खून को पैदा करने वाला, रस क्रिया को दुरुस्त करने वाला, मूत्र निस्सारक, पेट को मुलायम करने वाला, यकृत (Liver) को शक्ति देने वाला, कामोद्दीपक तथा कामेन्द्रियों को बल प्रदान करने वाला
है।
मीठे अनार का रस
रुचिकारक, पाचक,
दीपक, बलकारक एवं तरल होता है। बुखार, क्षय (Tuberculosis), अतिसार (Diarrhoea),
मियादी बुखार, खूनी बवासीर के रोगियों के लिये बड़ा
लाभकारी होता है। बच्चों को मीठे अनार का रस देने से वे पुष्ट होते है।
खट्टा अनार:
रुक्ष (रुक्ष पदार्थ वायु करने वाला और अत्यंत कफहर (कफ का नाश करने वाला) होता
है), हल्का,
अग्नि को दीपन करने वाला, रुचिकारी,
रक्तपित्तकारक तथा वात-कफ नाशक है। खट्टा अनार छाती की जलन तथा आमाशय (Stomach) और यकृत (Liver) की गर्मी को शांत करने वाला तथा खून के
प्रकोप, बुखार जन्य अतिसार और उल्टी में लाभदायक
है। इस स्वाद का अनार अपने देश में बहुत होता है।
खट-मीठा अनार: यह
दीपन, रुचिकारक,
वात-पित्त नाशक तथा हल्का होता है। यह अग्नि को दीपन करने वाला, पैत्तिक उल्टी, अतिसार और खुजली में लाभ पहुंचाने वाला, आमाशय को बल प्रदान करने वाला व हिचकी को नष्ट करने
वाला है।
सब प्रकार के
अनार (Anar): मूर्च्छा में लाभ पहुंचाने वाले, ह्रदय को बल देने वाले और खांसी को दूर करने वाले
होते है। बेदाना अनार सब अनारों में उत्तम होता है।
उपरोक्त वर्णन से
मालूम होता है कि अनार के अंदर ह्रदय को बल देने की और कृमियों को नष्ट करने की
अच्छी शक्ति है। विशेषकर पेट के अंदर चपटी जाति (Tape Worm)
के कीड़े पड़ते है, उनको नष्ट करने में अनार बहुत अक्सीर
वस्तु है। अनार की जड़ की छाल के समान चपटे कृमियों को नष्ट करने वाली दूसरी कोई
दवा नहीं है। इसका उपयोग करने की तरकीब यह है –
अनार (Anar) की जड़ की छाल 5 तोला लेकर 2.5 सेर पानी में 24 घंटे
तक भिगोना चाहिये। उसके बाद मल-छानकर उबालना चाहिये,
जब सवा सेर पानी बाकी रह जाय तब उसके तीन भाग करके दो-दो घंटे में एक-एक भाग रोगी
को भूखे पेट पिलाना चाहिये, उस रोज रोगी को कुछ भी खाने के लिये नहीं
देना चाहिये। दूसरे दिन प्रातः काल एरंडी के तेल का जुलाब देना चाहिये। जिससे तमाम
टेप वर्म्स मरी हुई हालत में सही सलामत ढंग से निकल जाते है। इन कृमियों को नष्ट
करने में जहां अन्य औषधियाँ निष्फल जाती है, वहाँ यह औषधि कभी निष्फल नहीं जाती।
हर प्रकार के
रोगियों के लिये अनार (Anar) का रस बहुत ही उपयोगी होता है। इससे क्षीण हुये रोगी पुनः
शक्ति जल्दी प्राप्त करते है तथा उनके शरीर के दोषों को दूर करने में उचित औषधियों
को अनार-रस द्वारा बड़ी सहायता मिलती है। अनार के सेवन से गुर्दे, छोटी व बड़ी आंत, आमाशय,
यकृत और कंठ के रोग जल्दी नहीं होने पाते। ह्रदय को शक्ति प्रदान करने के लिये
अनार जगत प्रसिद्ध है।
अनार से रोगों का
इलाज / अनार के फायदे
/ Anar Ke Fayde
Y अजीर्ण: खूब पके अनार के 1 तोला (1 तोला=11.66 ग्राम)
रस में समभाग भुना हुआ जीरा और गुड मिलाकर दिन में 2 या 3 बार लेने से हर प्रकार का अजीर्ण शीघ्र नष्ट हो जाता है।
Y खांसी: अनार का छिलका 4 तोला, काली मिर्च 1 तोला,
पीपल और जवाखार 6-6 माशे (1 माशा=0.97 ग्राम) लें। अब 8 तोले गुड की चाशनी कर और
उसमें सबका महीन चूर्ण मिला 4-4 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की गोलियां बना लें और 2-2 गोली दिन में 3 या 4 बार
गर्म जल से सेवन करें। इससे श्वास में भी लाभ होता है। केवल अनार फल के छिलके को
मुख में रखकर चूसने से भी खांसी में लाभ होता है।
Y पीलिया: 1 पाव मीठे अनार के रस में 3 पाव देशी चीनी
मिलाकर चाशनी बना लें और दिन में 3-4 बार सेवन करें,
पीलिया रोग धीरे-धीरे दूर हो जायेगा।
Y सिर दर्द: छाया में सुखाये अनार के आध सेर पत्तों में
समभाग सुखी धनियाँ मिला महीन पीस लें। फिर उसमें 1 सेर गेहूं का आटा दो सेर गो धृत
में भूनकर और ठंडा होने पर 4 सेर खांड मिला लें। इसे 3 से 5 तोले की मात्रा में
रोज प्रातः सायं गरम दूध के साथ खाये, सिर दर्द व सिर चकराना आदि सब दूर हो
जायेगा।
Y गंजापन: अनार
(Anar) के पत्तों के 1 सेर रस
में 10 तोले पत्तों की लुगदी और आध सेर सरसों का तेल मिलाकर पकावे। जब सब चीजें जल
जाये और केवल तेल रह जाय तो उसे छानकर रख लें और गंजे सिर पर लगावें, बाल उग आवेंगे। केवल अनार के पत्तों को पानी में
पीसकर दिन में दो बार मालिश करने से भी गंज दूर होती है।
Y बहिरापन: अनार के पत्तों का रस 1 सेर, बिल्व पत्रों का रस 1 सेर, गाय का घी 1 सेर तीनों वस्तुओं को मिलाकर हलकी आंच पर
पकाना चाहिये। जब घी मात्र शेष रह जाय तब उतार कर ठंडा कर लेना चाहिये। इसमें से 2
तोला घी, पावभर गाय के दूध के साथ मिश्री मिलाकर
पीने से कानों का बहिरापन दूर होता है।
Y बृहत दाडिमाष्टक चूर्ण: अनार दाना 32 तोले, मिश्री 32 तोले, पीपर 4 तोले, पिपलामूल 4 तोले,
अजमोद 4 तोले, काली मिर्च 4 तोले, धनियाँ 4 तोले, जीरा 4 तोले, सोंठ 4 तोले, वंशलोचन 1 तोला, दालचीनी 8 माशा, तेजपात 8 माशा, इलायची के बीज 8 माशे,
नागकेसर 8 माशे, इन सब वस्तुओं को कूट पीसकर चूर्ण कर
लेना चाहिये। इस चूर्ण की 3 माशे की खुराक दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार, क्षय, गोला,
संग्रहणी, मंदाग्नि,
खांसी, गले के रोग इत्यादि में लाभ पहुंचता है।
Y शर्बत अनार: पानी के अंदर एक सेर चीनी डालकर उसकी
चाशनी करलें, उसके बाद उसमें आध सेर अनार का रस डालकर
उसकी एक तार की चाशनी करके बोतलों में भर दें। इस शर्बत को 2 तोले से ढाई तोले तक
की मात्रा में लेने से दिल की जलन, आमाशय की जलन, घबराहट, मूर्च्छा,
प्यास इत्यादि शिकायतें दूर होती है। यह शर्बत ह्रदय को बलकारी है।
Y अनारदाना 50 ग्राम,
सोंठ, जीरा सफेद,
काला नमक प्रत्येक 10-10 ग्राम को कूटपीसकर चूर्ण बनालें। भोजनोपरांत 6-6 माशा
सेवन करने से खाना हज्म होता है और भूख बढ़ती है।
Y अनार
(Anar) के फूल छाया में सुखाकर
बारीक पीसकर मंजन करने से मसूढ़ो से खून आना बंद हो जाता है और दांत मजबूत हो जाते
है।
Y मीठे अनार का छिलका 2 तोला, लाहौरी नमक (सैंधा नमक) 3 माशा को बारीक करके पानी की
सहायता से 1-1 माशा की गोलियाँ बनाकर दिन में तीन बार 2-2 गोलियाँ चूसने से खांसी
नष्ट हो जाती है।
Y अनार का छिलका थोड़े दूध में उबालकर पीने से काली
खांसी मिट जाती है।
Y अनार का छिलका बारीक पीसकर 4 माशे की मात्रा में दिन
में 2 बार पानी से खाने से मात्र 10 दिनों में मसाने की गर्मी शांत होकर पेशाब
(मूत्र) बार-बार आना ठीक हो जाता है।
Y अनार
(Anar) का छिलका बारीक पीसकर 3
माशा की मात्रा में प्रातःकाल ताजे पानी के साथ 10 दिन तक खाने से स्वप्नदोष रोग
में लाभ हो जाता है।
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