वंशलोचन (Vanshlochan) को बंशलोचन भी कहते है। वंशलोचन की
उत्पत्ति बांसों के अंदर हुवा करती है। ये बांस मोटे, बड़े, पीली जाति के पर्वतीय प्रदेशों में पाये
जाते है। इनके रसों का संगठन ही वंशलोचन है। ये बांस स्त्री जाति के होते है।
वंशलोचन (Vanshlochan) शरीर के धातुओं को बढ़ाने वाला, वीर्यवर्धक, स्वादिष्ट,
शीतल, प्यास,
खांसी, बुखार,
क्षय (Tuberculosis), पित्त,
रुधिरविकार (Blood
Disorder), कामला (Jaundice), कोढ़, व्रण (घाव), पांडुरोग (Anaemia) तथा वायु के रोगों और मूत्रकृच्छ को दूर
करने वाला है। वंशलोचन जलन नाशक, ग्राही (जो पदार्थ अग्नि को प्रदीप्त
करता है, कच्चे को पकाता है, गरम होने की वजह से गीले को सुखाता है; वह ‘ग्राही’
कहलाता है) और रूखा है। सुप्रसिद्ध त्रिदोषनाशक तालीसादि चूर्ण में भी इसका योग किया
गया है। वीर्यवर्धक कौंच पाक में भी वंशलोचन का योग
है।
वंशलोचन (Vanshlochan) का प्रयोग खांसी (विशेषतया खुश्क और
पुरानी) के लिये किया जाता है, प्रसिद्ध योग सितोपलादिचूर्ण में इसका योग किया गया है। घबराहट और प्यास के लिये भी वंशलोचन
लाभदायक सिद्ध हुआ है। क्षयजन्य खांसी और श्वास विकार में एवं कफज रोगों में
उपयोगी है। वंशलोचन उत्तेजक, शीतल,
बल्य एवं उरोगत श्लैष्म (छाती में कफ) रोगों में हितकर है।
वंशलोचन प्रायः
खांसी, स्वरभेद (गला बैठना), श्वास, रक्तपित्त (नाक या मुंह से खून निकलना), यक्ष्मा आदि रोगों के प्रयोगों में अन्य औषधों के साथ
काम में लिया जाता है।
वंशलोचन (Vanshlochan) के कुछ स्वतंत्र प्रयोग: वंशलोचन के फायदे
1) वंशलोचन को
मैदा सा महीन घोट पीसकर दाँतो पर मलने से दाँत दृद्ध और चमकदार हो जाते है।
2) आग से जले
हुये स्थान पर वंशलोचन को पीसकर बुरकना लाभदायक है। इससे जलन मिटती है, व्रण (घाव) पुरता है।
3) भ्रम (चक्कर), मूर्च्छा और घबराहट के लिये वंशलोचन का चूर्ण शहद और मक्खन के साथ निरंतर सेवन करना चाहिये।
4) वंशलोचन के
चूर्ण को बड़ के दूध के साथ सेवन करने से वीर्यस्त्राव रुकता है, वीर्य पुष्ट होता है।
5) वंशलोचन का
चूर्ण ठंडे पानी के साथ लेने से अंतड़ियों में होनेवाली जलन मिटती है।
6) वंशलोचन का चूर्ण
शहद, मिश्री या मलाई में मिलाकर चटाने से सुखी
खांसी मिट जाती है।
7) वंशलोचन को
शहद में मिलाकर लगाने से मुंह की फुंसियाँ व छाले अच्छे हो जाते है।
8) मूत्रकृच्छ में वंशलोचन गोखरू
का चूर्ण और मिश्री की फंकी देकर ऊपर से कच्चे दूध की लस्सी पिलाने से पेशाब का
रुक रुक कर आना और मूत्रनलिका की जलन मिट जाती है।
9) बच्चों की
खांसी और श्वास के लिये – वंशलोचन का चूर्ण शहद के साथ चटाने से बच्चों के
श्वास-खांसी विकारों में लाभ पहुंचता है।
10) वंशलोचन के
चूर्ण को वासास्वरस और शहद के साथ पिलाने से मुंह के मार्ग से आनेवाला रक्त बंद
होता है।
मात्रा: 4 रत्ती से
1.5 माशा तक। (1 रत्ती=121.5 mg; 1 माशा=0.97 ग्राम)
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