तुलसी (Tulsi) का क्षुप भारतवर्ष में सर्वत्र प्रसिद्ध है, प्रायः सनातनधर्मावलंबी हिन्दुओं के घरों में यह रहता
है। तुलसी के सर्वांग में रुचिकारक और प्रिय गंध आती है। तुलसी की कई जातियाँ होती
है जिनमें से सफ़ेद और काली दो ही बहुत प्रसिद्ध है। यह प्रायः सब गरम और सामान्य
प्रांतों में स्वतः ही उग आती है। कहीं-कहीं इसके वन के वन पाये जाते है। तुलसी का
सर्वांग (पत्ती, फूल,
बीज, डंठल और जड़) ही औषधोपयोगी है।
तुलसी (Tulsi) की पत्तियों में पीलापन लिए हुये हरे रंग का एक
प्रकार का तेल होता है जो हवा के साथ उड़ने वाला होता है। यह किटाणुनाशक और बड़ा ही
गुणकारी होता है। तुलसी की विचित्र गंध का कारण तुलसी की पत्तियों में पाया जाने
वाला यही तेल है। इस तेल को निकाल कर यदि कुछ देर तक पड़ा रहने दिया जाय तो यह जम
कर रवादार हो जाता है। इस जमे हुये तुलसी के तेल को तुलसी-कपूर (Basil Camphor) कहते है।
जहां तुलसी (Basil) के पौधे अधिकता से होते है वहाँ की वायु तुलसी की इस
विचित्र गंध की वजह से शुद्ध और साफ रहती है। इसी कारण भारत के प्रत्येक हिन्दू घर
में कम से कम तुलसी का एक पौधा रखना जरूरी समझा जाता है, जो एक प्रकार से धर्म का ही रूप ले चुका है।
तुलसी (Tulsi) कडुवे और चरपरे रस से युक्त, ह्रदय को लाभदायक,
गरम, जलन तथा पित्तकारक, अग्निदीपक तथा कुष्ठ,
मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन), रक्तविकार (Blood Disorder), पसली की पीड़ा, कफ और वायु को नष्ट करनेवाली है। सफ़ेद तथा काली दोनों
तुलसीयां गुणों में समान है।
तुलसी (Tulsi) स्निग्ध, कफनिस्सारक और बुखार नाशक है। फुफ्फुस
में रहनेवाले कफ और खांसी के रोगों में कालीमिर्च के साथ इसका रस व्यवहार में लाते
है। बार-बार आनेवाले ज्वर (बुखार) तथा विषमज्वर (Malaria)
में सोंठ और सफ़ेद मिर्च के साथ तुलसी के पत्तों का रस दिया जाता है। तुलसी के
पत्तों से सिद्ध किया हुआ तेल कान में डालने से दर्द, पीप आना आदि विकार मिटते है। यह तेल नाक में डालने से
प्रतिश्याय (जुकाम) और पीनस (सड़ा हुआ जुकाम) में लाभ करता है। नींबू और तुलसी का
रस मिलाकर दाद के ऊपर लगाया जाता है। तुलसी के बीजों में पौष्टिक गुण है। मूत्रल
रूप में तुलसी के बीज अल्पमूत्रता में दिये जाते है। कफ विकार में भी दिये जाते
है।
मुसलमान लेखक
कहते है कि तुलसी
(Tulsi) का रस शक्कर डालकर पीने
से छाती का दर्द और खांसी दूर हो जाती है। इसके पत्तों के रस के कुल्ले करने से या
पत्ते चबाने से मुख की दुर्गंध मिट जाती है तथा इसका रस पीने से संधियाँ दृद्ध हो
जाती है। इसके पत्तों का स्वरस सोंठ डालकर बच्चों
के शूल में दिया जाता है।
तुलसी (Tulsi) के पत्तों का फांट (औषधियों के महीन चूर्ण को किसी पात्र में गरम उबलते
हुए 16 गुने जल में डालकर ढक्कन लगा दें। आध या एक घंटे बाद छान लेने से फांट
होजाता है) बच्चों के लिए दीपन, पाचन तथा सारक रूप से बहुत अधिक व्यवहार में आता है।
तुलसी के ताजे पत्तों का रस शहद मिलाकर देने से
बच्चों की खांसी में लाभ होता है।
यूनानी मत से
तुलसी (Basil) की प्रकृति ऊषण और रुक्ष पहली श्रेणी में
है। तुलसी की पहली जाती (सफ़ेद जाती) बुखार, कफ और वायु को दूर करती है, मुंह की अरुचि को नष्ट करती है, शरीर की शक्ति, पाचनशक्ति और भूख बढ़ाती है। दूसरी जाती
(काली) पहली की अपेक्षा अधिक गुणकारक है, दुर्गंधित कफ और खांसी को दूर करती है; श्वास को आराम पहुंचाती है। तीसरी श्रेणी में उल्टी, उन्माद (Insanity) और कामला को लाभदायक है। इसके पत्ते तेज
और नींद बढ़ानेवाले है एवं शरीर का रंग निखारते है।
कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ
जिसमें तुलसी का योग किया गया है – चिंतामणि चतुर्मुख रस, कुमकुमादि तेल, लिवोमीन सिरप, मधुरांतक वटी, त्रिभुवन किर्ति रस इत्यादि।
तुलसी चिकित्सा: तुलसी
के फायदे / Tulsi Ke
Fayde / Basil in Hindi
Y मस्तिष्क की गर्मी: तुलसी (Basil) की पाँच-सात पत्तियां और तीन-चार बादामों को तीन-चार
कालीमिर्चों के साथ ठंढाई की तरह रगड़ कर एक गिलास रोज सुबह खाली पेट पीने से 21
दीनों के अंदर मस्तिष्क की गर्मी दूर हो जाती है,
साथ ही मस्तिष्क की शक्ति भी बढ़ जाती है।
Y बुद्धिहीनता: तुलसी (Tulsi)
की पत्तियों के आधी छटांक रस को संतरा आदि किसी फल-रस के साथ रोज पीने से कुछ ही
दीनों में बुद्धि बड़ी प्रखर हो जाती है।
Y चक्कर आना: तुलसी (Basil)
के रस में शुद्ध शहद मिलाकर पीने से चक्कर आना दूर हो जाता है।
Y 6 ग्राम तुलसी
(Basil) के बीज और तीन ग्राम बबुल
के गोंद को पान पर कत्था चूना लगाकर संभोग काल में खायें। इस प्रयोग से हानिरहित
स्तंभन होता है।
Y तुलसी
(Basil) के बीज आधा तोला पानी
के साथ पीसकर मासिकधर्म के समय (तीन दिन) सेवन करने से बांझ स्त्री को भी गर्भ ठहर
जाता है। (1 तोला=11.66 ग्राम)
Y अनिद्रा: रोगी जिस बिस्तर पर सोता हो उस पर के तकिये
के नीचे तुलसी की 51 पत्तियाँ गिनकर रख दें, पर इस कृत्य की खबर रोगी को न होने दें।
इससे अनिद्रा रोग दूर होकर रोगी को अच्छी नींद आने लगेगी।
Y किसी भी प्रकार का विष (Toxin) सेवन किये हुए रोगी को तुलसी (Tulsi) का रस पेटभर कर पीला देने से मरणोन्मुख व्यक्ति के भी
प्राण बच जाते है।
Y तुलसी के जड़
के चूर्ण को रात्रि में पानी डालकर रखें। प्रातःकाल इसे छानकर 7 दिन पीने से
प्रमेह रोग नष्ट हो जाता है।
Y तुलसी
(Tulsi) के पत्तों के रस में
थोड़ा सा सैंधा नमक मिलाकर नाक में डालने से
मूर्च्छा तुरंत ही दूर हो जाती है।
Y तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रस (समभाग) गरम
करके बच्चों को पिलाने से उनकी प्रत्येक प्रकार की उदर पीड़ा (पेट का दर्द) अवश्य
दूर हो जाती है।
Y तुलसीपत्र और काली मिर्च 1-1
तोला, करेला के पत्ते दो तोला, कुटकी 4 तोला लें।
मिर्च और कुटकी को पीसकर खरल में डालें, तदुपरान्त तुलसी और करेला के ताजे पत्तों
को डालकर खूब घोंटे। इसके बाद मटर के आकार की गोलियां बनालें। शीत ज्वर (Malaria) में 2-2 गोली ज्वर चढ़ने से पूर्व सुबह और शाम को ठंडे
पानी से सेवन करें। इस प्रयोग से मलेरिया ज्वर दूर हो जाता है तथा दस्त साफ होकर
रोगी स्वस्थ हो जाता है।
Y कफ जन्य खांसी में – काली तुलसी (Tulsi) का स्वरस शहद मिलाकर पीने से खांसी अच्छी हो जाती है।
कफस्त्राव और पुराना जुकाम भी अच्छा हो जाता है।
Y कुष्ठ में –
तुलसी की जड़ का स्वरस प्रातःकाल पीने से कुष्ठ,
दाद, चकते आदि अच्छे हो जाते है।
Y बच्चों के यकृत (Liver)
संबंधी विकार में – तुलसी
(Basil) का क्वाथ पिलाना
लाभदायक है। इससे बच्चों की जिगर की खराबी दूर होकर स्वस्थ होते है। यह क्वाथ
बच्चों के पेट की खराबी को दूर करता है। सूखे और कड़े मल को ढीला करता है। इसके
प्रयोग से 1-2 दस्त भी आ जाते है।
Y वातरोग में – तुलसी और अदरख का रस मिलाकर पीने से
वातविकार शांत हो जाता है।
Y वीर्यपुष्टि के लिये – तुलसी (Tulsi) के बीजों का चूर्ण मिश्री और दूध के साथ सेवन करना
लाभदायक है।
Y सूजन दूर करने के लिये – तुलसी के पत्तों और एरंड के
पत्तों की कोपलों को पीसकर तथा नमक मिलाकर सुजन की जगह पर लेप करने से लाभ होता
है। केवल तुलसी का रस सूजन पर लगाने से भी सूजन दूर हो जाती है। परीक्षित है।
Y अपचन: तुलसी की पत्तियों को पीसकर पीने से मनुष्य की पाचन-शक्ति
तीव्र होती है।
Y अजीर्ण और मंदाग्नि: 1 तोला तुलसी (Tulsi) का रस, 1 तोला सोंठ, दो तोला पुराना गुड,
सबको एक में मिलाकर बेर के बराबर गोलियां बानवें तथा सुबह, दोपहर और शाम एक-एक गोली जल के साथ खावे तो अजीर्ण और
मंदाग्नि जाय। अजीर्ण में तुलसी के ताजे पत्तों का एक तोला रस पीना भी लाभ करता
है। तुलसी के पत्तों के रस में 5 काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से
भी मंदाग्नि दूर होती है। तुलसी की पत्तियों के रस में केवल शहद मिलाकर पीने से भी
वही लाभ होता है।
Y बवासीर: इसमें तुलसी की पत्तियों को खाने तथा उसके रस
को मस्सों पर लगाने से लाभ होता है। तुलसी के बीजों को दिन में दो बार खाने से भी
बवासीर अच्छी हो जाती है।
Y साधारण चर्म-रोग: नींबू के रस के साथ तुलसी (Tulsi) की पत्तियों का सेवन रोज सुबह-शाम करने से साधारण
चर्म-रोग मंत्रवत दूर हो जाते है। तुसली की जड़ की मिट्टी को समूचे शरीर पर मलकर
थोड़ी देर तक रहने देने के बाद नहा लेने से भी चर्म रोग दूर हो जाते है।
Y दाद: तुलसी के रस में सैंधा नमक और थोड़ा-सा नींबू का
रस घोलकर लगाने से दाद अच्छा हो जाता है। तुलसी के दो तोले पत्तों के साथ एक कली
लहसुन पीसकर लगाने से भी दाद दूर हो जाते है। केवल तुलसी की पत्तियों को दाद पर
रगड़ने से भी लाभ होता है। तुलसी की पत्तियों को नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से
भी दाद आराम होता है।
Y खुजली: इस रोग में तुलसी के पत्तों के रस की मालिश
तथा उसके पीने से अत्यंत लाभ होता है। तुलसी के तेल की मालिश से भी लाभ होता है।
तुलसी और नींबू का रस मिलाकर लगाने से भी खुजली अच्छी हो जाती है। साथ-ही-साथ
तुलसी की कुछ पत्तियाँ और माजूफल रोज खाना भी चाहिए।
Y सब प्रकार के फोड़े: फोड़ों पर तुलसी के पत्तों को
पीसकर लगाने से वे शीघ्र अच्छे हो जाते है। तुलसी का तेल लगाने से सभी प्रकार के
फोड़े जैसे पीपवाले, कारबंकल तथा गर्मी (उपदंश) के घाव
साथ-साथ अच्छे हो जाते है।
Y घाव: घाव पर तुलसी (Tulsi)
के बीजों को पीसकर बांधे या तुलसी की पत्तियों का ताजा रस लगावे, या सुखी तुलसी की पत्तियों का चूर्ण घाव में भर दे, या यदि घाव से रक्त भी बहता हो तो, तुलसी की पत्तियों को पीसकर उसपर लेप करें। तुलसी की
सुखी-सुखी पत्तियों की बुकनी घाव पर छिड़कने से भी वह शीघ्र भर जाता है।
Y घाव में कीड़ा पड़ना: तुलसी की सुखी पत्तियों का चूर्ण
घाव में भर देने से कीड़े साफ हो जाते है।
Y मुख के छाले: तुलसी और चमेली या केवल तुलसी की
पत्तियों को चबाने से मुख के छाले अच्छे हो जाते है। इससे ओठ, जीभ आदि पर पड़े हुये छाले भी अच्छे हो जाते है।
Y मलेरिया: मलेरिया ज्वर की तुलसी (Tulsi) खास लाभदायक औषधि है। जिस स्थान पर मलेरिया का प्रकोप
अधिक हो उस स्थान के रहने वाले यदि तुलसी की पाँच-सात पत्तियाँ रोज नियमित रूप से
चबा लिया करें तो उन्हें मलेरिया ज्वर अथवा किसी प्रकार के ज्वर का आक्रमण कभी
नहीं हो सकता। तुलसी की पत्तियों का रस एक तोला और अदरक का रस 6 माशा (1 माशा=0.97
ग्राम) एक साथ मिलाकर पीने से भी मलेरिया ज्वर चला जाता है। तुलसी की जड़ का काढ़ा
पीने से मलेरिया और विषम ज्वर दूर होता है।
Y रोज आने वाला ज्वर: तुलसी और पोदीना की पत्तियों का
काढ़ा पीने से रोज आने वाला ज्वर चला जाता है।
Y पुराना ज्वर: तुलसी की पत्तियों के साथ काली मिर्च और
सोंठ का सेवन करने से पुराना ज्वर अच्छा हो जाता है। तुलसी की पत्तियों का रस
मिश्री मिलाकर लेने से भी वही लाभ होता है।
Y साधारण ज्वर: तुलसी पत्र 6 माशा, कली मिर्च 4 नंग, पीपर 1 नंग। सबको
पानी में पीसकर और शहद मिलाकर पीने से साधारण ज्वर दूर हो जाता है। तीन माशा तुलसी
की पत्तियों का केवल रस प्रातः, दोपहर और सायं काल पीने से भी साधारण
ज्वर शीघ्र चला जाता है। तुलसी की जड़ का काढ़ा पिलाने से भी साधारण ज्वर चला जाता
है।
Y जुकाम से उत्पन्न ज्वर: तुलसी पत्र (Basil Leaf) का रस मधु के साथ चाटने से जुकाम से
उत्पन्न ज्वर में विशेष लाभ होता है। पुरुषों और स्त्रियों को तीन चम्मच भर और
बच्चों को एक चम्मच भर रस देना चाहिये।
Y इंफ्लुएञ्जा ज्वर: 1 तोला तुलसी की पत्तियों को पाव
भर जल में उबालें। जब आधा पाव रह जाय तो उसमें जरा-सा सैंधा नमक डालकर चाय की तरह
गरम-गरम पीने से इंफ्लुएञ्जा ज्वर दूर हो जाता है।
Y सब प्रकार के ज्वर: एक तोला तुलसी की पत्तियों के
ताजे रस में एक माशा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर प्रातःकाल पी लेने से सभी प्रकार
के ज्वरों में लाभ होता है। काली मिर्च के चूर्ण को तुलसी की पत्तियों के रस में
भिगोकर छाया में सुखावे। सुख जाने पर पुनः भिगोवे और सुखावे। ऐसे ही सात बार करें।
अंत में चने के बराबर गोलियां बना लेवें और ज्वर आने से 3 घंटा पहले घंटे-घंटे पर
1-1 गोली गरम पानी से दें, तो सब प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
Y खांसी: तुलसीदल के काढ़े में शहद और गाय का दूध मिलाकर
पीने से खांसी दूर हो जाती है। काली तुलसी का रस शहद के साथ चाटने से कफजनित खांसी
में लाभ होता है। तुलसी की पत्तियों के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चाटने
से भी कफसहित खांसी दूर होती है। 6 माशा तुलसी के रस में 4 दाना बड़ी इलायची का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से कफ की खांसी
दूर हो जाती है। अड़ूसा और तुलसी की पत्तियों का रस बराबर-बराबर मिलाकर पीने से
खांसी चली जाती है। तुलसी के फूल और सोंठ का चूर्ण समभाग लेकर उसमें प्याज का रस और शहद मिलाकर चाटने
से सुखी खांसी दूर होती है। शहद और काली तुलसी का रस एक साथ मिलाकर खाने से तर
खांसी दूर होती है।
Y सर्दी-जुकाम: तुलसी दल के रस में अदरक का रस मिलाकर
चाटने से सर्दी-जुकाम दूर होता है। तुलसी के बीज,
गिलोय, सोंठ और कटेली की जड़ बराबर-बराबर लेकर
पीस लें और कपड़छान करलें। 4 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg)
की मात्रा से इसे सेवन करने से खांसी, कफ और छाती में कफ का जमना सब दूर हो
जाते है।
Y प्रमेह: तुलसी की जड़ के चूर्ण को रात को जल में भिगो
दें। प्रातःकाल छानकर पीवे तो सात दिनों के भीतर प्रमेह दूर हो।
Y सभी मूत्र-संबंधी रोग: तुलसी के रस के साथ नींबू का
रस मिलाकर पीने से मूत्र के लगभग सभी रोगों में लाभ होता है।
Y नया सुजाक (Gonorrhoea): तुलसी की पत्तियों के रस में शहद मिलाकर पीने से नया
सुजाक दूर हो जाता है।
Y पुराना सुजाक: तुलसी की पत्ती, गिलोय और गुड एक साथ 7 दिनों तक खाय और ऊपर से गाय का
ताजा दूध काफी मात्र में पीवे तो पुराना सुजाक जाय। तुलसी के बीजों को शाम को जल
में भिगो दे। प्रातःकाल उन्हें पीसकर और छानकर कुछ दिनों तक सेवन करे तो प्रमेह, सुजाक, मूत्रकृछ तथा मूत्र-नली की जलन सभी दूर
हो जाये।
Y नपुंसकता: तुलसी के बीजों में नपुंसकता-निवारण की
अद्भुत शक्ति होती है। उनके सेवन से धातु का पतलापन दूर होकर वह गाढ़ा हो जाता है
और बढ़ता भी है। इसके लिए तुलसी के बीजों या जड़ के चूर्ण को समान भाग पुराने गुड के
साथ तीन माशा की मात्रा में 40 दिन तक सुबह-शाम गाय के धारोष्ण दूध के साथ सेवन
करना चाहिये। इस प्रयोग से नपुंसकता तो दूर हो ही जाएगी, साथ ही मनुष्य अकाल में ही अनेवाली वृद्धावस्था से भी
बहुत काल तक बचा रह सकता है।
Y स्वप्नदोष: रात को सोते समय काली तुलसी का एक तोला
बीज जल के योग से फांक लेने से या तुलसी की जड़ को घोटकर पीने से स्वप्नदोष की
बीमारी दूर हो जाती है। काली तुलसी की जड़ और एक माशा काली मिर्च, दो-तीन दिनों तक सेवन करने से स्वप्नदोष-जनित
शुक्रक्षय और दुबलेपन में बड़ा लाभ होता है।
Y वीर्यदोष: तुलसी के बीज 4 माशा पाव भर जल में भिगो
दे। लुआब बन जाने पर मिश्री मिलाकर पीवे तो 40 दिन में सभी प्रकार का वीर्य दोष
दूर हो जायेगा।
Y मूत्र बंद: यदि किसी का पेशाब होना बंद हो जाय तो उसे
तुलसी के बीजों का शरबत पिलाने से वह खुल जायेगा।
Y धातुक्षीणता: तुलसी की जड़ के चूर्ण को रात को पानी
में डालकर रख दें। सुबह उसी पानी को छानकर पीवे तो धातुक्षीणता दूर हो।
Y बहरापन: तुलसी
(Basil) की पत्तियों के रस को
सुबह-शाम कान में छोडते रहने से कुछ ही दिनों में बहरापन दूर हो जाता है।
Y रक्त स्त्राव: तुलसी के रस में शहद मिलाकर पीने से
बहता हुआ रक्त रुक जाता है।
Y कोई भी रोग हो: प्रतिदिन तीन रत्ती तुलसी (Tulsi) की पत्ती और तीन नंग काली मिर्च सेवन करने से उसमें
बड़ा सुधार होता है। अगर स्वस्थ मनुष्य इसका सेवन प्रतिदिन किया करे तो उसे किसी भी
रोग के होने की संभावना नहीं रहेगी।
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