कुटकी (Kutki) क्षुप जाति की वनौषधि है जो प्रायः बरसात में होती है।
औषध उपयोग में इसकी जड़ ही ग्रहण की जाती है और बाजार में भी मिलती है।
कुटकी (Kutki) एक मूल्यवान कटुपौष्टिक (कड़वी पौष्टिक) वस्तु है। आमाशय
(Stomach) की पीड़ा,
बद हजमी, हिचकी और आंतों की शिथिलता में तथा कब्जियत
में यह लाभदायक है। यह रस क्रिया को शुद्ध करती है। इसके कटुपौष्टिक गुण की वजह से
दीपन और पाचन बहुत अच्छा होता है। इसके आनुलोमिक धर्म की वजह से दस्त साफ होता है।
ह्रदय रोगों के ऊपर इसकी जड़ों के काढ़े की क्रिया डिजीटेलिस के समान होती है।
कुटकी (Kutki) चिरगुणकारी, कटुपौष्टिक, पित्तनिस्सारक है। अजीर्ण, ग्रहणी, श्वास,
पित्तविकार, कामला (Jaundice)
आदि रोगों में व्यवहार में आती है। यकृत (Liver) के ऊपर कुटकी का प्रभाव इन्द्रायण के समान
होता है किन्तु कुछ स्निग्ध होता है। बहुत दिन से कुटकी विषम ज्वर (Malaria) में अमोघ औषध के रूप में व्यवहार में आती है। बच्चों के
कृमि पर कुटकी का प्रयोग किया जाता है।
कुटकी (Kutki) की जड़ बहुत अच्छी पाचक है। अजीर्ण के बहुत से विकारों
में तथा अंतड़ियों के विकार में बहुत उपयोगी है। मात्रा ज्वर (बुखार) में 10 से 20 रत्ती
(1 रत्ती=121.5 mg), पाचक और कटुपौष्टिक रूप में 5 से 7 रत्ती
तक दिन में 3-4 बार देनी चाहिये। कुटकी का क्वाथ दिन में 3-4 बार देने से पेट के रोग
में (जल के भरे घड़े के समान मालूम देने पर भी) शांति होती है। पेट नरम हो जाता है।
इस औषध को कई सप्ताह तक व्यवहार में लाना चाहिये। तब पूरा लाभ हो सकता है।
पर्यायिक ज्वरों में
इसकी क्रिया बहुत उत्तम और स्पष्ट होती है। दोष केवल इतना ही रहता है कि इसको बड़ी मात्रा
में देना पड़ता है। जिससे कभी कभी बहुत दस्त होते है। जिस ज्वर में कब्जियत की शिकायत
हो उसमें यह अच्छा काम करती है। पीलिया रोग (शरीर पीला पड़ जाना) के लिये भी यह एक उत्कृष्ट
औषधि है। कुटकी को 6 माशे (1 माशा=0.97 ग्राम) की मात्रा में मिश्री के साथ कुछ दिनों
तक सेवन करने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है। अजीर्ण रोग से पैदा हुए दमे में भी इसको
मिश्री के साथ देने से लाभ होता है।
यूनानी मत से कुटकी (Kutki) रुक्ष और शीतल है,
सारक (दस्तावर) है। पित्तजन्य विकारों को दूर करती है। श्वासकष्ट को दूर करती है और
सूजन, पेट के विकार और बुखार नाशक है।
कुटकी (Kutki) की सफेद जाति बहुत कड़वी, तीखे स्वाद वाली,
छाती के रोगों को नष्ट करनेवाली, मृदु विरेचक (हलकी दस्तावर), दिमाग को ताकत देने वाली और वमनकारक (उलटी कराने वाली)
होती है। यह पक्षाघात, बुखार,
यकृत (Liver) की शिकायत,
मासिक धर्म की अनियमितता, मृगी,
जोड़ो के दर्द और पित्त में उत्तम है। दाद, खुजली और चूहे तथा कुत्ते के विष में भी यह
लाभदायक है।
कुछ औषधियाँ जिसमें
कुटकी का योग हुआ है – महा योगराज गुग्गुल, योगराज गुग्गुल, चंद्रकला रस, महामंजिष्ठादि क्वाथ, पंचतिक्तधृत गुग्गुल इत्यादि।
मात्रा: सामान्यतया
3 माशा है।
कुटकी के कुछ स्वतंत्र
प्रयोग: Kutki Ke
Fayde
Y ह्रदय रोग में – कुटकी (Kutki)
और मुलेठी को समान मात्रा में लेकर खांड के साथ फाँककर
ऊपर से जल पीना चाहिये, इससे ह्रदय रोग मिटता है।
Y स्तन्य शुद्धि के लिये – कुटकी को सेवन करने से स्त्री
का दूध शुद्ध होता है।
Y कुष्ठ – कुटकी का प्रयोग अतीस और चंदन के साथ करना चाहिये।
Y कफ-पित्त ज्वर में – मिश्री के साथ कुटकी का चूर्ण फाँककर
ऊपर से गरम जल पीने से कफ-पित्त जन्य ज्वर (बुखार) नष्ट होता है।
Y पित्तज्वर में – कुटकी का चूर्ण खांड के साथ सेवन करने
से पित्तप्रधान ज्वर नष्ट नो जाता है।
Y मुख का कड़वापन दूर करने के लिये – कुटकी का क्वाथ सेवन
करने से मुख का कड़वापन मिटता है।
Y कब्ज के लिये – साढ़े सात माशे कुटकी के चूर्ण में समान
भाग मिश्री मिलाकर फाँकने से, ऊपर से गरम पानी पिलाने से एक दस्त साफ हो
जाता है।
Y बुखार के लिये – कुटकी और नीम के पत्तों का क्वाथ लाभदायक
है।
Y अपचन के लिये – कुटकी (Kutki)
और सोंठ की फंकी लगानी चाहिये।
Y प्लीहावृद्धि (Spleen
Enlargement) के लिये – कुटकी
के चूर्ण की फंकी देने से तिल्ली घटने लगती है।
Y खांसी के लिये – कुटकी (Kutki)
के क्वाथ में पीपली का चूर्ण डालकर पीने से खांसी और श्वास के विकार मिटते है।
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