शनिवार, 7 दिसंबर 2019

कपूर के फायदे / Kapoor Ke Fayde


कपूर (Kapoor) का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊंचा होता है। इसका वृक्ष तज के वर्ग में गिना जाता है। इस वृक्ष का गोंद ही कपूर है। कपूर स्वच्छ, सुगंधित, स्निग्ध, श्वेत वर्ण का द्रव्य है।

शिर, मध्य और तल इस प्रकार तीन भेद कपूर (Kapoor) के माने गये है, स्तम्भ के अग्र भाग में होनेवाला कपूर शिरसंज्ञक प्रकाशवान, स्वच्छ, फुला हुआ होता है यह उत्तम है। स्तम्भ के मध्य में होनेवाला मध्यसंज्ञक, साधारण फुला हुआ और स्वच्छ होता है यह मध्यम है। पत्तों के समीप होनेवाला कपूर चूर्णवत, भारी है यह अधम है।

बाजार में तीन प्रकार का कपूर (Kapoor) मिलता है। एक कपूर चौकोर स्फटिकों (Rectangular Crystals) या स्थूल विषमखंड (Big Irregular Masses or Flowers of Camphor) के रूप में मिलता है। यह दोनों प्रकार के सस्ते है और चीन या जापान से आते है। इन्हे चीनी कपूर कह सकते है। यह Cinnamomum Camphora नामक वृक्ष से प्राप्त होता है। यह अपक्व या अविशुद्ध कपूर है जिसमें जलीय अंश अधिक होता है तथा रंग में इतना श्वेत नहीं होता, ऊर्ध्वपातन (Sublimation) द्वारा शुद्ध किया जाता है। इसके जापान में कारखाने है, दूसरा कपूर क्षुद्र श्वेत स्फटिकों (Small White Crystals) के रूप में मिलता है, यह जापानी कपूर की अपेक्षा काफी महंगा है। मद्रासी वैद्य भीमसेनी कपूर कहते है। तीसरा कपूर यूरोप से आता है यह छोटी-छोटी टिकियाओं के रूप में होता है। यह कृत्रिम कपूर है जो ऐंद्रियक रसायन (Organic Chemistry) द्वारा बनाया जाता है।

चीन, जापान, सुमात्रा, बोर्नियो देशों में कपूर (Kapur) के वृक्ष अधिकता से है वहीं से बनकर आता है। भारतवर्ष में भी कहीं-कहीं वृक्ष पाये जाते है किन्तु उनसे कपूर निकालने का व्यवसाय नहीं होता है।

कपूर (Kapur) शीतल, वीर्यवर्धक, नेत्रों को हितकारक, लेखन, सुगंधित, कफ-पित्त, विष (Toxin), जलन, प्यास, मुख की विरसता, मेदोरोग (Obesity) तथा दुर्गंध नाशक है। कपूर आक्षेप नाशक, निद्राजनक, स्वेद (पसीना) वर्धक, वेदना शमन करनेवाला, कामवेग शांत करनेवाला तथा शुक्रमेह नाशक है। पक्व और अपक्व इस प्रकार कपूर दो प्रकार का है। पक्व की अपेक्षा अपक्व कपूर अधिक गुणकारी है।

कपूर (Kapur) का बाह्य प्रयोग त्वचा को स्वच्छ और रक्तवर्ण करता है। सूजन, अर्बुद (रसौली) आदि को शमन करता है, उचित मात्रा में सेवन किया हुआ कपूर ह्रदय की कार्यतत्परता, श्वासोच्छवास और रक्तसंवहन क्रिया को बढ़ाता है, कपूर कामेच्छा भी बढ़ाता है किन्तु अधिक दिन तक सेवन करने से जननेन्द्रियों की शक्ति को शिथिल करता है, इसके सेवन से गर्भाशय उत्तेजित होता है जिससे रजःस्त्राव (मासिक धर्म) अधिक होता है। कपूर वेदनाहर है। चर्म, मूत्रपिंड और श्वास नली के ऊपर प्रभाव डालकर स्वेद (पसीना), मूत्र और कफ की प्रवृति करता है।

अधिक मात्रा में (1-2 माशा) में कपूर खाने से आंतों में जलन आदि विषवत् (Toxic) लक्षण प्रगट हो जाते है। अति मात्रा से ह्रदय-अवसाद (ह्रदय की शिथिलता), शरीर की उष्णता कम होकर हाथ-पैरों का ठंडा होना, मूर्च्छा, आक्षेप होकर मृत्यु तक हो जाती है।

कपूर (Kapur) कफ निःसारक –छेदन औषधि है, कफ निःसारक छेदन औषधि श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ आदि में लगे, मल को बलपूर्वक निकाल देती है। कुछ और भी इस प्रकार की औषधियाँ है जैसे हल्दी, क्षार, कालीमिर्च, शिलाजीत, मुलेठी, अड़ूसा, तुलसी, बहेड़ा इत्यादि।

कपूर (Kapoor) कफ स्त्रावी औषधि भी है, कफ स्त्रावी औषधि श्वासनलिका की श्लेष्म कला (चिकनी त्वचा) से स्त्राव बढ़ाकर कफ को निकालती है। कुछ और भी इस प्रकार की औषधियाँ है जैसे अभ्रक भस्म, शृंग भस्म, प्याज इत्यादि।

यूनानी मत से कपूर (Kapoor) दिल और दिमाग को कूवत देने वाला तथा क्षय, पुराना बुखार, निमोनिया, अतिसार (Diarrhoea) और फेफड़े के ज़ख़म को लाभ पहुंचाने वाला होता है। यह जिगर, गुर्दे और पेशाब की सोजिश में लाभ पहुंचाता है। चर्म रोगों के ऊपर भी इसकी क्रिया लाभदायक होती है। जहरीले और फैलने वाले फोड़े-फुंसियों को इसके इस्तेमाल से बड़ा लाभ पहुंचता है। नकसीर का खून बंद करने के लिये यह बड़ा लाभदायक है। कपूर के अंदर कृमिनाशक गुण भी बहुत अच्छी तादाद में मोजूद है। इसकी खुसबु से रोगोत्पादक कीड़े मर जाते है और खराब हवा साफ हो जाती है। हैजे की बीमारी को नष्ट करने के लिये यह औषधि अपना प्रधान अस्तित्व रखती है।

इसका पहिला असर फैलने वाला और फुर्ती पैदा करने वाला होता है। दूसरा असर यह होता है कि यह खून में मिलकर सब अंगो की बढ़ी और घटी हुई कुबत को सुव्यवस्थित कर देता है। धनुर्वात अर्थात टेटीनस रोग में भी यह बड़ा लाभदायक होता है। इसकी ज्यादा मात्रा बेहोश करने वाले तेज जहर की तरह होती है। इसके अतिरिक्त बुखार, सूजन, दमा, कुक्कुरखांसी, दिल की धड़कन, दिल का फूल जाना, पेशाब की रुकावट नहीं रहना, औरतों का भूतोन्माद, गठिया, जोड़ों का दर्द, बदन का सड़ना इत्यादि में भी यह बड़ा लाभ पहुंचाता है।

कई यूनानी हकीमों का यह मत है कि अधिक मात्रा में कपूर (Kapoor) का सेवन करने से मनुष्य की पुरुषार्थ-शक्ति नष्ट हो जाती है और वह नपुंसक हो जाता है।


मात्रा: 1 रत्ती से 3 रत्ती तक की मात्रा देनी चाहिये। अधिक मात्रा में विषवत् लक्षण प्रकट करके मृत्यु तक कर देता है।

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