दंती (Jatropha Curcas) जमालगोटे के वर्ग की एक औषधि है। दंती दो
प्रकार की होती है। छोटी दंती और बड़ी दंती। छोटी दंती की झड़ी सी होती है जो लगभग
4-5 फीट ऊंची होती है। बड़ी दंती की आकृति बहुत कुछ छोटी दंती से मिलती है, किन्तु आकार कुछ बड़ा होता है और जड़ भी लंबी तथा मोती
होती है। दंती नाम से इसका मूल ही ग्रहण करना चाहिये।
दोनों प्रकार की
दंती (Jatropha
Curcas) तीव्र विरेचक, अग्निदीपक, तीक्ष्ण (कफ और वात नाशक),
गरम एवं बवासीर, पथरी,
शूल, खुजली,
कोढ़, जलन,
पित्तविकार, रक्तविकार,
कफ, सूजन,
पेट के रोग और कृमिनाशक है। दोनों प्रकार की दंती गुण में समान ही है।
दंती (Jatropha Curcas) की जड़
विरेचन करनेवाली है। गुल्म (पेट की गांठ), कब्जियत,
सूजन और कामला में अन्य सुगंधित औषधों के साथ इसका प्रयोग किया जाता है। सुगंधित
औषधियों के गुणों के बारेमें हमने सौंफ के आर्टिकल में विस्तार से लिखा है।
यूनानी मत से
दंती की प्रकृति अत्यंत उष्ण है। कफ और वायुविकारों को नष्ट करती है। सूजन का
अनुलोम करती है। कफ-पित्त जन्य उदरशोथ नाशक, पेट के कीड़े निकालनेवाली एवं दस्तावर है।
दस्त लाकर कामला (Jaundice) को भी लाभ पहुंचाती है, खून की खराबी, घाव,
चकतों को अच्छा करती है।
कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ
जिसमें दंती का योग किया गया है – कैशोर गुग्गुल,
चंद्रप्रभा वटी, नारायण चूर्ण, नित्यानंद रस, अर्शकुठार रस, पथ्यादि गुग्गुल,
अभयादि मोदक, मदनानंद मोदक इत्यादि।
और पढ़ें:
0 टिप्पणियाँ: