जमालगोटा (Jamalgota) के लिये
दंती बीज या द्रवन्ती बीज दो ही पर्याय मिलते है। कलकत्ते में दंती बीज पृथक आते
है जो जमालगोटा से छोटे, आधे के लगभग होते है, इसलिये इन्हें द्रवन्ती (बड़ी दंती) के बीज कह सकते
है। किन्तु वास्तव में आजकल जमालगोटा नाम से व्यवहार में आनेवाले रेचक बीज दंती या
द्रवन्ती के बीज नहीं है, प्रत्युत Croton Tiglium नामक क्षुप के बीज है। इसका क्षुप दंती द्रवन्ती की
अपेक्षा बड़ा होता है एवं सदैव हरा रहता है। जमालगोटा नाम से बीज ही ग्रहण किये
जाते है। इनका भी औषधयोजना में उपयोग शुद्ध करके ही किया जाता है।
जमालगोटा (Jamalgota) एक
तीव्र विरेचक पदार्थ है। तीव्र रेचक द्रव्यों में इसका नंबर सबसे पहिला है। अधिक
मात्रा में यह विष (Toxin) है। जमालगोटा भारी, चिकना, गरम,
कृमि नाशक, दीपन,
रेचक एवं पित्त और कफ नाशक है। कभी भी जमालगोटा या इसके तेल का स्वतंत्र प्रयोग न
करें। यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिये है।
जमालगोटा (Jamalgota) का
उपयोग बिना शुद्ध किये नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह अत्यंत उग्र रेचक है। चमड़े के
ऊपर यह बीज लगाने से चमड़ा लाल हो जाता है। जमालगोटे का तैल भी बहुत उत्तेजक है।
चमड़े के ऊपर लगाने से फफोले उठ जाते है। जमालगोटे का तैल बहुत थोड़ी मात्रा में
सेवन करने से शीघ्र ही पानी जैसे पतले बहुत से दस्त कराता है। बड़ी मात्रा में लेने
से उल्टी, अंतड़ियों में जलन, अंतड़ी की ग्रंथियों में उत्तेजना, आंत्रिक श्लैष्म कला (चिकनी त्वचा) का प्रदाह और
अंतड़ियों में मंथरगति (Peristalsis
Movements) बढ़ता है, क्षार के साथ सेवन करने से इसकी रेचन शक्ति और भी बढ़
जाती है।
जमालगोटा (Jamalgota) अपस्मार
(Epilepsy), मनोविकार,
ज्ञानहीन और शितांगयुक्त मूर्च्छा (Coma), उदावर्त (पेट में गेस उठना), पक्षाघात, सूजन और कब्ज के रोगों में व्यवहार में
आता है। यदि अंतड़ियों में प्रदाह हो या इसी प्रकार की कोई और बाधा (Organic Obstruction) हो तो इसका सेवन करना उचित नहीं। जिस
रोगी के लिये औषध की बड़ी (वजनदार) मात्रा खाना कठिन हो उसके लिये तैल दिया जाता
है। जो रोगी जुलाब की दवा खाने में आनाकानी करता हो उसकी जीभ पर तैल की एक बूंद
पहुंचा देने से ही यथेच्छ लाभ होता है। जमालगोटा के बीज और तेल का अनेक रोगों में
व्यवहार किया जाता है – जैसे बुखार, कब्ज,
कृमि, सूजन,
पेट के रोग, प्लीहा (Spleen),
यकृत वृद्धि (Liver
Enlargement), पेट का अफरा, शूल, पथरी,
रेती और अन्य रोगों में उपयोग होता है।
जमालगोटा (Jamalgota) मुंह के
द्वारा खाने से पेट और अंतड़ियों में जलन पैदा करता है। इसके तेल (Jamalgota Oil) की 1 बूंद लेने से
कुछ ही समय बाद पेट में दर्द और शूल होता है और घंटे दो घंटे के बाद खूब दस्तें
लगना शुरू होती है और दस्त अधिक पतले पतले होते जाते है। कभी कभी ये दस्त खून के
भी होने लगते है। अधिक मात्रा में खुराक पहुँचने पर उपरोक्त हालत के बाद मृत्यु तक
हो सकती है। जमालगोटे का तेल बहुत कम उपयोग में लिया जाना चाहिये। सन्यास रोग, रक्तज मूर्च्छा रोग और पागल पन के रोगियों के लिये यह
गुणकारी है। इसकी 1 बूंद को मक्खन या शक्कर में मिलाकर जबान पर रखकर तुरंत निगल
जाना चाहिये। जिससे जबान पर यह जलन पैदा न कर सके। कजमोर, बीमारों को, गर्भवती स्त्रियों को, बच्चों को, बवासीर के रोगियों को, पाक स्थली के रोगियों को और आंत्रिक प्रदाह से पीड़ित
रोगियों को यह नहीं देना चाहिये।
कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ
जिसमें जमालगोटा का योग किया गया है – जलोदरारि रस,
विरेचन चूर्ण इत्यादि।
मात्रा: कभी भी
जमालगोटा या इसके तेल का स्वतंत्र प्रयोग न करें। यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के
लिये है।
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