शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

हींग के फायदे / Hing Ke Fayde


हींग (Hing) एक वृक्ष का गोंद है। चार वर्ष के वृक्ष से ही हींग ली जाती है। हींग के वृक्ष की जड़ के समीप ऊपर को चाकू से तिरछेरूप में छेदते है। इस तरह कई जगह छेदने के बाद पत्थर से मूल को ढक देते है कि हींगुनिर्यास सूख न जाय, खराब न हो जाय। दो दिन बाद सूखी हुई (किन्तु कोमल) हींग को चाकू से खुर्च लेते है, फिर दो दिन बाद जड़ को तराशकर छोड़ देते है और दो दिन बाद हींग को ग्रहण कर लेते है। इसी प्रकार करते रहते है। जब वृक्ष में बिलकुल हींग नहीं रहती तो छोड़ देते है। हींग निकालने का कार्य प्रायः वसंत ऋतु में होता है।

हींग (Hing) के दो भेद है। एक इसका रंग सफेद ललाई लिये हुये होता है, सुगंध उत्तम होती है, इसे हीरा हींग कहते है। इसका वृक्ष मादा है। दूसरे प्रकार की हींग अत्यंत दुर्गंधित और तीव्र होती है, यह नर जाति की है, इसे हींगड़ा कहते है। इसे खाने के काम में न लेकर इसको औषधव्यवहार में लाते है। इसका पौधा आबादी से दूर होता है। यह हींग बहुत सस्ती होती है और गरीब आदमी इसे खाते है। यह अत्यंत पौष्टिक और उष्ण है। पहली जाति की ही हींग अच्छी है।

हींग (Hing) गरम, पाचक, रुचिकारक, तीक्ष्ण, वात-कफ नाशक, ह्रदय और नेत्रों को हितकारी, शूल, गुल्म (पेट की गांठ), पेट के विकार, अफरा, अजीर्ण, कब्ज एवं कृमिनाशक है तथा पित्त को बढ़ानेवाली है।  

हींग (Hing) मलस्तम्भकारक (मल के पतले अंश को गाढ़ा करनेवाली) है। श्वास, खांसी, कफ और वायुनाशक है एवं भूतबाधा दूर करती है। हींग को नाड़ीतंतुओं के विकार, हिस्टीरिया, अपस्मार (Epilepsy) एवं विमर्शात्मक मनोविकार आदि में व्यवहार करते है। कफविकार (स्वाभाविक रूप से कफ आना), पुरानी सर्दी, श्वासावरोध, श्वास में श्लेष्मनाशक (कफ नाशक) रूप में इसका व्यवहार करते है। वातनाशक रूप में, अजीर्णातिसार, शूल, पेट का अफरा और कृमिनाश के लिये व्यवहार करते है। जिन प्रांतों में मलेरिया चल रहा हो वहाँ भोजन के साथ हींग का थोड़ा अधिक व्यवहार करने से मलेरिया का आक्रमण रुक जाता है। पेट फूलने में भी हींग सेवन करने से वातानुलोमन (वायु की गति नीचे की तरफ होकर वायु नाश होना) होकर लाभ होता है। पुराने कब्ज (जिन्हें स्वाभाविक हो गया है) में भी लाभदायक है। जिन स्त्रियों को बार-बार गर्भस्त्राव हुआ करता है उनके लिये हींग एक विश्वसनीय औषधि है।

हींग (Hing) वातघ्न, बलकारक, रेचक, मूत्रल, आर्तव जनक (मासिक धर्म को चालू करनेवाली), कृमिघ्न और वाजीकरण है। बहुत थोड़ी मात्रा में सदैव सेवन करने से शरीर में उषणता बढ़ती है किन्तु टेम्परेचर नहीं बढ़ता। सदैव सेवन करने से पाचनशक्ति की दुर्बलता, डकार, गले का खट्टापन, पेट का अफरा, अतिसार (Diarrhoea) और पेशाब में तेजी उत्पन्न करती है। अधिक मात्रा में हींग का सेवन करने से धातु और मल का स्त्राव (Secretion and excretion) एवं स्त्रीसंभोग की इच्छा बढ़ती है, हींग में रहनेवाला उड़नशील तेल (Volatile Oil); पेशाब, स्त्रीदूध, स्वेद (पसीना) को बाहर निकालता है तथा आर्तव की वृद्धि करता है। सुप्रसिद्ध हिंग्वाष्टक चूर्ण में हींग प्रधान औषध है।  

डा. देसाई के मत से हींग (Hing) दीपन, पाचन, आमाशय (Stomach) और आंतों के लिये उत्तेजक, वायुनाशक, आनुलोमिक, कृमिघ्न, भेदक (भेदक औषध मल की गांठ को तोड़-फोड़ कर बाहर निकाल देता है), कफ नाशक, कफ की दुर्गंध को दूर करनेवाली, मज्जातंतुओं के लिये तथा गर्भाशय के लिये जोरदार उत्तेजक, संकोच विकास प्रतिबंधक और विषम ज्वर (Malaria) को नष्ट करनेवाली होती है। इसके अंदर रहनेवाला उड़नशील तेल, श्वासनलिका, त्वचा और मूत्रपिंड के द्वारा बाहर मिकलता है। बाहर निकलते समय जिस मार्ग से यह बाहर निकलता है उस मार्ग को उत्तेजना देता है। इसका कफ निस्सारक गुण प्याज के समान होता है। इसको लेने से श्वासनलिका में जमा हुआ कफ पतला होता है, उसकी दुर्गंध नष्ट होती है और उसमें रहनेवाले रोगजंतुओं का नाश होता है। श्वासोच्छ्वास के केंद्र स्थान की क्रिया कुछ धीमी हो जाती है जिससे बिना कारण आनेवाली खांसी कम हो जाती है।

सूचना: हींग (Hing) अल्प मात्रा में ही सेवन करें। इसकी मात्रा चौथाई से पौन ग्राम तक है। प्रतिदिन लंबे समय तक सेवन न करें। स्त्रियों को मासिक धर्म (रजःस्त्राव) अधिक होता हो तो हींग का सेवन बंद कर दें। गर्भवती महिलायें इसका अल्प मात्रा में ही सेवन करें। पित्त प्रकृति के लोग हींग का औषधि के रूप में ही प्रयोग करें। शिशु को गरमी का विकार हो तो दुग्धपान करानेवाली माता हींग का सेवन न करें। अधिक समय हींग का सेवन करते रहने से कमजोरी आ जाती है। छाती और मूत्रमार्ग में जलन होती है। अफरा हो जाता है, हाजमा बिगड़ जाता है। मूत्र और पसीना दुर्गंधित हो जाता है। हींग दिमाग को तथा यकृत को हानि पहुंचाती है।

यूनानी मत से हींग (Hing) दूसरे दर्जे में गर्म और तीसरे दर्जे में खुश्क है। उष्ण प्रकृतिवालों के मस्तिष्क और यकृत (Liver) के लिये हानिकारक है।

मस्तिष्क और नाड़ीतन्तु के विकार, अपस्मार (Epilepsy), पक्षाघात, मूर्च्छा, शून्यता एवं नेत्ररोग को लाभदायक है। सूजन नाशक, पाचक, भूखवर्धक और वातानुलोमक है। यकृत, आमाशय और प्लीहा (Spleen) के विकारों को लाभदायक है। उष्णता उत्पादक, कंठशोधक है। इसका लेप तेल के साथ मिलाकर करने से चोट और वायु के दर्द के लिये लाभदायक है। कान में डालने से बहरेपन और कान के बजने (कर्णनाद) के लिये लाभदायक है।

हींग के कुछ गुणकारी प्रयोग: हींग के फायदे / Hing Ke Fayde

हींग (Hing) को व्यवहार में लाने से पहले घी में भून लेना चाहिये। इससे हींग की रुक्षता और उग्रता नष्ट हो जाती है। इसे हींग की शुद्धि कहते है। यदि हींग उत्तम न मिले तो साधारण हींग को आठ गुने जल में घोलकर छान लेने से पाषाण आदि अपद्रव दूर हो जाते है। फिर उस दूधिया घोल को चपटे लोहपात्र में घी डालकर मंद-मंद अग्नि से पकाना चाहिये ताकि जलीय अंश जल जाय, इसे व्यवहार में लाना चाहिये।

हींग का लेप – उदरशूल (पेट दर्द) में पेट पर, खांसी-श्वास में छाती पर, ध्वजभंग (कामोत्तेजना की कमी) में शिश्न पर करना लाभदायक है।

दाद पर – हींग को अंजीर और सिरके में लगाने से दाद को लाभ पहुंचता है।

कामोत्तेजना के लिये – हींग को जैतून के तेल में डुबाकर बहुत दिन तक रखे, बाद में शहद में डालकर बहुत दिन तक धूप में रखे, पीसकर इसमें से थोड़ा सा स्त्रीसंभोग से पूर्व इंद्रिय पर मले, उससे दोनों के लिये संभोग में अत्यंत आनंद प्राप्त होगा।

बिच्छू, भिड़, कुत्ते आदि के विष पर – हींग को जैतून के तेल में मिलाकर दंशस्थान पर रखने से विष नहीं चढ़ता है।

पेट के कृमि पर – अरंड के पत्तों में हींग डालकर पिलाने से पेट के कृमि मर जाते है जो विरेचन द्वारा निकाल दिये जाते है।

आधाशीशी पर – कनपटी पर हींग का लेप करने से आधाशीशी का दर्द मिट जाता है, इसे जल में घोलकर सुंघाना भी अच्छा है।

अफीम के विष पर – अफीम के खाने पर हींग जल में घोटकर पिलाने से उलतियाँ होकर विष निकल जाता है।

रजःस्त्राव के लिये – एलुवा कसीस और हींग की गोलियां बनाकर देने से मासिक स्त्राव के समय में अच्छी तरह रजःस्त्राव होता है।

कृमिदंत में – हींग को गरम करके दाढ़ के नीचे दबा लेने से कृमि (कीड़ा) के कारण होनेवाला दर्द शीघ्र शांत हो जाता है।

हस्तमैथुन क्रिया आदि करने के कारण लिंग में विकार आ जाने पर रात्रि को सोते समय तीन ग्राम हींग को पानी में पीसकर लिंग पर 15-20 दिनों तक लेप करते रहने से तथा प्रातःकाल को गरम पानी से लिंग धो डालने से अत्यंत लाभ होता है। हानिरहित अमूल्य योग है।

हींग को पानी में पीसकर घुटनों पर लेप करने से घुटनों का दर्द रफू चक्कर हो जाता है।

हींग को गरम पानी में घोलकर नाभि के आस-पास लेपकर तथा थोड़ी सी हींग भूनकर शहद के साथ चाट लेने से डकारें आना बंद हो जाती है तथा भूख बढ़ जाती है।

अपतंत्रक (हिस्टीरिया) रोग में कच्ची हींग और एलुआ समभाग मिलाकर जल के साथ खरलकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनाकर सुरक्षित रखलें। 1-1 गोली दिन में 2-3 बार सेवन करते रहने से थोड़े ही दिनों में हिस्टीरिया रोग पीछा छोड़ देता है। (1 रत्ती=121.5 mg)
भुनी हुई हीरा हींग 1 ग्राम, नीम की छाया शुष्क अथवा ताजी पत्तियाँ 15 ग्राम, भुना जीरा और कपूर 1-1 ग्राम को पानी के साथ खूब बारीक घोट लें तदुपरांत चने के आकार की गोलियां बनालें। रात्रि को सोते समय 1 से 4 गोलियां तक सेवन करने से पेट के रोग दूर होकर बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है।

अफीम और हीरा हींग 5-5 ग्राम लेकर 50 ग्राम तिल के तेल में खूब पीसकर मिलालें। इस तेल को शौच क्रिया करने से पूर्व तथा रात्रि को सोते समय बवासीर के मस्सों पर लगाते रहने से मस्से गिर जाते है।

पेट दर्द में पेट में गैस भर गई हो, पाखाना नहीं हुआ हो, पेट में असहनीय पीड़ा हो तो हींग (Hing) को पानी में घोटकर थोड़ा सा गरम करके नाभि प्रदेश पर लेप करें तथा हींग को घी में भूनकर (245 मि.ग्रा.) सेवन कराने से दर्द शांत हो जाता है। मलत्याग होकर अपानवायु छूट जाता है।

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