चव्य (Chavya) लता जाती की वनस्पति है। यह बहुत दृद्ध होती है, इस पर किसी प्रकार के रोम इत्यादि नहीं होते है। पत्ते
5 से 7 इंच लंबे तथा 2 से 2.5 इंच चौड़े अंडाकार अनीदार और थोड़े नुकीले होते है।
सूखने पर फीके या पीलापन लिये हुए सफ़ेद रंग के होते है। उनके ऊपर का भाग चमकदार
होता है। सामान्यतया बाजार में जो चव्य आता है वह इस लता की जड़ और शाखाओं के टुकड़े
है। यही व्यवहार में आते है।
चव्य (Chavya) गरम, हलकी,
रोचक, जठराग्नि प्रदीपक, कृमि, श्वास,
खांसी और शूलनाशक है। चव्य में पिपलामूल के समान ही गुण है, किन्तु विशेषता यह है कि गुदा के रोगों (अर्श आदि) को
नाश करनेवाली है।
चव्य (Chavya) गर्म, पाचक,
भूखवर्धक, उत्तेजक,
आमाशय (Stomach) को बलदायक,
अजीर्ण और मंदाग्नि में उपयोगी है। अनेक औषधों में चव्य का उपयोग होता है।
सुप्रसिद्ध अग्निटुंडी वटी में भी चव्य का योग किया गया है।
यूनानी मत से
चव्य आमाशय और यकृत (Liver) को बलदायक है, मैथुनशक्ति बढ़ानेवाली और स्तंभनकारक है, पाचक है, अर्श (बवासीर) और पेट दर्द को लाभदायक है, विशेषतः पिपलामूल के समान गुण होते है।
कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ
जिसमें चव्य का योग किया गया है – योगराज गुग्गुल,
चित्रकादि वटी, चंद्रप्रभा वटी, शुक्रमातृका वटी,
हिंगवादि चूर्ण, क्रव्याद रस, त्रिमूर्ति रस, सप्तविंशति गुग्गुल, कांकायन वटी, धनंजय वटी,
महायोगराज गुग्गुल, अग्निसंदीपन रस, अभयारिष्ट इत्यादि।
मात्रा: आयुर्वेद
विज्ञान ने एक माशा (1 माशा=0.97 ग्राम) लिख है। किन्तु आवश्यकतानुसार 3 माशा तक
दी जा सकती है।
चव्य के कुछ
स्वतंत्र प्रयोग: चव्य के फायदे /
Chavya Benefits
Y अफरा पर – चव्य के चूर्ण को सोंठ के क्वाथ में भुनी
हींग डालकर पिलाना चाहिये तथा पेट पर भी चव्य,
सोंठ और हींग का गुनगुना लेप करना चाहिये इससे अफरा,
पेट का भारीपन तथा गुडगुड़ाहटयुक्त मंद शूल (दर्द) शांत होता है।
Y बवासीर पर – चव्य को पुराने गुड के साथ मिलाकर
सुबह-शाम खाना चाहिये और ताजा गाय के दूध की बनी मट्ठा का सेवन करना चाहिये। यह
प्रयोग कम से कम चालीस दिन करना चाहिये। भोजन में गाय की छाछ के सेवाय अन्न और जल
का बिलकुल त्याग है।
Y प्लीहावृद्धि में – चव्य (Chavya)
का चूर्ण, ग्वारपाठा (धृतकुमारी) के गूदे के साथ
प्रातः सायं सेवन करने से प्लीहावृद्धि रुक जाती है और धीरे धीरे कम हो जाती है।
Y गुल्म रोग (पेट की गांठ) में – चव्य का चूर्ण
ग्वारपाठे के रस में जवाखार डालकर पीना चाहिये। आहार में लघु भोजन विशेषतः दूध और
फल सेवन करना चाहिये।
Y कफ रोगों में – चव्य का चूर्ण अदरख के रस में मिलाकर
चाटने से कफजन्य विकार शांत होते है।
Y वात रोगों में – चव्य (Chavya)
का चूर्ण अंडी के स्वरस के साथ सेवन करने से वायुदोष शांत होते है।
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