गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

ब्राह्मी के फायदे / Brahmi Benefits


ब्राह्मी (Brahmi) के क्षुप गीली और तर जमीनों में पैदा होते है। यह वनस्पति वैसे तो सारे भारतवर्ष में जलाशयों के किनारों पर पैदा होती है मगर हरिद्वार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग पर यह बहुत बड़ी तादाद में पाई जाती है और वहां की ब्राह्मी उत्तम होती है। ब्राह्मी की पहिचान करते समय अक्सर भ्रम हो जाया करता हा। क्योंकि इसी के समान आकार प्रकार वाली मंडूकपर्णी या ब्रह्म मंडुकी नामक एक वनस्पति और होती है। कुछ निघंटुकारों ने दोनों को एक बतलाया है और उनके गुण भी समान बतलाये है।

ब्राह्मी (Brahmi) शीतवीर्य (ठंडी), सारक (दस्तावर), कड़वी, कसैली, मधुर रस युक्त, मेदा के लिये लाभदायक, आयु को बढ़ानेवाली, रसायन, स्वर को उत्तम करनेवाली एवं स्मरण शक्ति को बढ़ानेवाली है। ब्राह्मी कुष्ठ, पांडुरोग (Anaemia), प्रमेह, रक्तविकार, खांसी, विष (Toxin), सूजन तथा बुखार नाशक है।

ब्राह्मी (Brahmi) ह्रदय को लाभदायक, मलनिःसारक (कब्ज को दूर करनेवाली), अरुचि, श्वास नाशक तथा उन्मादनाशक, अवस्था स्थापक एवं कफ नाशक है।

ब्राह्मी (Brahmi) की मुख्य क्रिया मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं के ऊपर होती है। यह मस्तिष्क को शांति देती है और उसके लिये एक पौष्टिक वस्तु का काम करती है। इस गुण की वजह से ब्राह्मी मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं के रोगों में विशेष रूप से दी जाती है। मस्तिष्क को बहुत अधिक श्रम पड़ने पर जब वह थक कर ऊटपटाँग काम करने लगता है तब उसको इस वनस्पति का कोई प्रयोग देने से आराम और पौष्टिक तत्व मिल जाते है। तब वह अपनी क्रिया ठीक करने लग जाता है। उन्माद और अपस्मार के रोगों में भी यही बात होती है। इसलिये इनमें भी ब्राह्मी का प्रयोग होता है। सिर्फ नवीन और जोरदार रोगों में ब्राह्मी नहीं देनी चाहिये। क्योंकि ब्राह्मी के अंदर कुछ मस्तिष्क को उत्तेजित करने का धर्म रहता है और तीव्र रोगों में उत्तजक औषधि देने से रोग का बल बढ़ जाता है।

उन्माद (Insanity) और अपस्मार (Epilepsy) के पुराने होने पर उनमें एक ओर तो मस्तिष्क को पुष्ट करने वाली औषधियों की जरूरत होती है और दूसरी ओर कुछ उत्तेजक औषधि की भी आवश्यकता होती है। ब्राह्मी में ये दोनों ही गुण पर्याप्त मात्रा में रहे है और इसलिये ऐसे रोगों में ब्राह्मी देने से अच्छा लाभ होता है।

ब्राह्मी (Brahmi) रसायन, पौष्टिक, मूत्रल और साधारण आमपाचक है। इसका विशेष प्रभाव मूत्राशय से संबंधीत अंग पर पड़ता है। विशेषतः यह मूत्रेन्द्रिय और जननेन्द्रिय में क्षोभ (प्रदाह) और कंडु के लिये हितकारी है।

ब्राह्मी (Brahmi) त्वचा के बहुत से विकारों में, रुधिराभिसरण को सतेज करनेवाली बहुमूल्य औषधि होने के कारण व्यवहार में आती है। यह वातरक्त (Gout) और उपदंश (Syphilis) में अति प्रभाव तो नहीं उत्पन्न करती, किन्तु अपने गुणों के कारण इन रोगों में लाभ अवश्य करती है। डाक्टर शार्ट इस दवा को सब प्रकार के वातरक्त में उपयोगी बतलाकर इसकी प्रशंसा करते है, किन्तु पीछे के विद्वान इसे उक्त रोगों की प्रारम्भिक दशा मात्र में उपयोगी मानते है। डाक्टर लोलियट, केज्रेनोव और बर्टन कहते है कि – वातरक्त की बढ़ी हुई दशा में तो उपयोगी है नहीं, परंतु पुरानी दुश्चिकित्स्य (जिसकी चिकित्सा करना कठिन हो) खुजली में बहुत प्रशंसापूर्ण लाभ करती है। पिछले विद्वानों ने खुजली के बहुत से गंभीर केसों में इसका प्रयोग करके थोड़े समय में ही प्रत्येक केस में लाभ पाया है। चांदा (गर्मी के चकते) और प्रमेह के साथ उपदंश की दूसरी और तीसरी स्थिति में यह औषध अच्छा प्रभाव करती है।

अतिसार (Diarrhoea) और पीनस (सड़ा हुआ जुकाम) की बीमारी में आनेवाले दूषित स्त्राव को शुद्ध करती है एवं शक्तिवर्धक है। कंठमाला (Goitre), फोड़ा, गांठ, सूजन और पुराने संधिवात में अच्छा असर करती है। कितने ही रोगों में यह औषध मूत्रल रूप में अच्छा प्रभाव करती है। पीड़ितार्तव रोग (मासिक धर्म के समय पीड़ा होना) में इसमें ऋतु-उत्पादक गुण भी है। शरीर के किसी भाग में घाव, फोड़ा आदि हो तो इस दवा के पीने से तथा इसके चूर्ण की पुलटिस बनाकर लेप करने से लाभ होता है। गर्भस्थापन द्रव्यों में ब्राह्मी का नाम है एवं सुप्ति, कुष्ठ, खांसी और रसायन में भी ब्राह्मी का उल्लेख है।

कुछ वर्षों से इस क्षुप ने दुनिया के बहुत से भागों में बहुत लाभ दिखाया है, अतः इसका प्रचार दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है। अगर किसिकों मन में बुरे विचार आते रहते हो और मन बिलकुल अशांत हो तो शंखपुष्पी, ब्राह्मी और जटामांसी तीनों के चूर्ण को समभाग लेकर सुरक्षित रखलें। इसमें से एक छोटा चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लेने से कुछ ही महीनों में मन बिलकुल शांत हो जायेगा और विचार आना बंद हो जायेगे। परीक्षित है।

ब्राह्मी की बनावटें: Brahmi Benefits

ब्राह्मी रसायन – ब्राह्मी चूर्ण 5 तोला (1 तोला=11.66 ग्राम), मुलेठी का चूर्ण 5 तोला, शंखपुष्पी का चूर्ण 5 तोला, गिलोय का चूर्ण 5 तोला और सोने की भस्म आधा तोला। इन सब चीजों को पीसकर चूर्ण कर लेना चाहिये। इस चूर्ण को 1 माशे (1 माशा=0.97 ग्राम) से लेकर 3 माशे तक की मात्रा में शहद और घी विषम मात्रा में लेकर इसके साथ खाने से स्मरण शक्ति के अंदर बहुत वृद्धि होती है।




     

मात्रा: ब्राह्मी चूर्ण 3 माशा से लेकर 5 माशे तक।

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