मंगलवार, 19 नवंबर 2019

पीपर के फायदे / Pipar Ke Fayde


पीपर (पीपल, पीपर, छोटी पीपर) आयुर्वेद का प्रभावशाली और मानव हितकारी द्रव्य है। आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। बहुत से प्रयोगो में गिरती है। इसकी एक प्रकार की लता होती है इसमें ही फल लगा करते है जिसको पीपर या पीपल के नाम से जाना जाता है। यह दो प्रकार की होती है, छोटी और बड़ी। इसमें छोटी पीपर अधिक गुणवाली होती है। सुप्रसिद्ध योग त्रिकटु चूर्ण (सोंठ, काली मिर्च और पीपर) का यह एक अंग है।

पीपर अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली, वीर्यवर्धक, रसायन, थोड़ी गरम, वात और कफ को नष्ट करनेवाली, मृदु रेचक (हल्की दस्तावर) तथा श्वास, खांसी, पेट के रोग, बुखार, कुष्ठ, प्रमेह, प्लीहा (Spleen), बवासीर, क्षय, पेट की गांठ, शूल और आमवात (Rheumatism) को नष्ट करनेवाली होती है।

शहद के साथ पीपर का सेवन करने से मेद रोग (Obesity), कफ, श्वास, खांसी और बुखार नष्ट होते है तथा वीर्य, बुद्धि और जठराग्नि प्रदीप्त होती है। गुड के साथ पीपर (पीपल, पीपर) का सेवन करने से पुराना बुखार, ह्रदय रोग, मंदाग्नि, खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, पांडु (Anaemia) और कृमि रोग नष्ट होते है। गुड पीपर से दूना लेना चाहिये।  


पीपर के चूर्ण को सोंठ के चूर्ण और गुड के साथ मिलाकर खाने से, आम (Toxin), शूल, अजीर्ण और सूजन दूर होती है। पीपल (पीपर) के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से वातज्वर (वायुजन्य बुखार) और कफज्वर दूर होता है। शहद में पीपर का चूर्ण मिलाकर चाटने से मूर्च्छा रोग दूर होता है।

छोटी पीपर (पीपल) गरम, पाचक और पुराने बुखार के लिये व्यवहार में आती है। इसका प्रभाव आमाशय (Stomach) और पक्वशय (Duodenum) पर अच्छा प्रगत होता है। भूख को जगाने के लिये, सर्दी के दिनों में गर्मी लाने के लिये, पाचनशक्ति को बढ़ाने के लिये बहुत उपयोगी है। इसके गर्म होने के कारण ही अधिक मात्रा में गर्भिणी को सेवन करने से गर्भ को हानि पहुँचती है।

पीपर ऊर्ध्व भाग दोषहर है, इसका मतलब यह शरीर के ऊपर के भाग से दोषो का नाश करती है, जैसे वमन (उल्टी) और दूसरा यह शिरोविरेचन भी करती है। शिरोविरेचन से शिर में जमे कफ निकल जाते है और शिर हल्का हो जाता है। जो द्रव्य शिरो विरेचन करता है वह बुद्धि को भी बढ़ाता है, क्योंकि शिर में से कफ निकल जाने से दिमाग तेज होता है।

पिपलामूल – जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला, गरम, पाचक, पित्तकारक, भेदक (मल की बंधी गांठ को तोड़ फोड़ कर बाहर निकालने वाला), कफ और वात को नष्ट करने वाला, क्षय रोग नाशक तथा गुल्म (पेट की गांठ), कृमि, प्लीहा और श्वास को नष्ट करनेवाला होता है।


आयुर्वेद की औषधियों में पीपर का खूब उपयोग होता है, इसका कारण यह है की यह रसायन है, इस लिये वृद्धावस्था को दूर करती है, वीर्यवर्धक होने से शरीर का पोषण करती है और वात-कफ नाशक होने से यह 100 रोगों (वात से 80 और कफ से 20) को नष्ट करने में सहायक होती है। दूसरा यह अग्नि को प्रदीप्त करती है और आम (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है) का पाचन करती है। जिससे पाचन सुधारता है और विष (Toxin) का नाश होता है।

पीपर पेट और आंतों में उतपन्न गेस का नाश करती है जिससे इसका उपयोग विरेचक औषधियों के साथ उग्रता कम करने के लिये, पाचन की वृद्धि के लिये और भोजन के देर से पचने व पेट फूलने व अफरा में होता है। पीपर रक्तपित्त शामक, जलन नाशक और मेदोहर (मोटापे का नाश करनेवाली) है।

जिस प्रकार काली मिर्च की क्रिया पाचन इंद्रिय पर विशेष रूप से होती है उसी प्रकार पीपर की क्रिया फेफड़े और गर्भाशय पर होती है। इसके सेवन से कफ प्रधान और शीत प्रधान रोगों में बड़ा लाभ होता है।

सूतिका ज्वर (प्रसूता को होनेवाला बुखार), मलेरिया बुखार, आमवात और कफ ज्वर में पीपर को शहद के साथ दिया जाता है। इससे सूतिका ज्वर में गर्भाशय के अंदर रहा हुआ सब मैला निकलकर साफ हो जाता है और स्त्री को उत्तेजन मिलता है। मलेरिया ज्वर में इसको देने से यकृत (Liver) की वृद्धि कम होती है और कफ ज्वर में इसको देने से आवाज सुधरती है और कफ छूटने लगता है। पुरानी खांसी में पीपल को बड़ी मात्रा में देने से लाभ होता है।

मज्जातन्तु के रोग अर्थात वात रोगों में पीपर (पीपर) को खिलाते भी है और उसको शरीर पर मलते भी है। गृध्रसी रोग (Sciatica) में भी इसका उपयोग किया जाता है। अजीर्ण और बवासीर रोग में भी यह उपयोगी है। सुजाक की वजह से होने वाली कामेन्द्रिय की शिथिलता में इसको बड़ी मात्रा में देने से लाभ होता है।

पीपर के कुच्छ स्वतंत्र प्रयोग: पीपर के फायदे

पीपल (पीपर), पिपलामूल, चव्य, चित्रक, सौंठ, कालीमिर्च, यवक्षार, सज्जीखार, पांचों नमक (सैंधा, सौंचर, बीड, समुद्र और औदिद), घी में भुनी हींग, अजमोद इन 15 द्रव्यों को अलग-अलग में कपड़छन चूर्ण बनाकर (सममात्रा में) मिलाकर बिजौरे नींबू और खट्टे अनार के रस से भावित कर 6 रत्ती (729 mg) वजन की गोलियां बनाकर सुरक्षित रखलें। इसके सेवन से आमदोष (अपक्व अन्न रस जो एक प्रकार का विष है) का पाचन होता है, जठराग्नि शीघ्र ही प्रदीप्त होती है। इसका सेवन भोजनोपरांत गरम जल या मट्ठा से करें।  

वातरक्त (Gout) में – पीपर को जल या दूध में पीसकर नित्य 5 या 10 पीपर बढ़ाता हुआ सेवन करे। अर्थात एक से बढ़ाकर 5 या 10 पर पहुंचा दे, फिर घटाकर एक पर ले आवे। आहार में केवल दूध-भात देना चाहिये। इस वर्धमान पीपर के प्रयोग से वातरक्त, मलेरिया, अरुचि, पांडुरोग (Anaemia), बवासीर, खांसी, श्वास, सूजन, क्षय, अग्निमांद्य और पेट के रोग नष्ट होते है।

खांसी में – पीपर (पीपर) को तेल में सेंककर शकर मिलाकर कुलथी के क्वाथ के साथ पीने से कफजन्य खांसी नष्ट होती है।

अतिसार में – पीपर का बारीक चूर्ण कालीमिर्च और शहद के साथ चाटने से पुराना अतिसार दूर होता है।

श्लेष्मज्वर (कफ ज्वर) – पीपर (Pippli) का चूर्ण शहद के साथ चाटने से श्लेष्मज्वर मिटता है।

रक्तपित्त में – अड़ूसा के रस की सात भावना दिया हुआ पीपर का चूर्ण रक्तपित्त को नष्ट करता है।

सूजन में – पीपर को दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 

अम्लपित्त (Acidity) में – शहद के साथ पीपर का चूर्ण अम्लपित्त नाशक है।

परिणाम शूल में – पीपर के क्वाथ या कल्क से सिद्ध धृत शहद के साथ सेवन किया जाय तथा ऊपर से दूध पिया जाय तो अवश्य परिणाम शूल शांत होता है।

पुराने बुखार में – छोटी पीपर को न घिसनेवाले खरल में 64 पहर लगातार घोटता रहे। घोटनेवाले बदलते रहे, किन्तु हाथ न रुके। अर्थात निरंतर घुटे। यह चौसठपहरी पिप्पल 2 रत्ती (250 mg) से 8 रत्ती तक की मात्रा में जीर्णज्वर (पुराना बुखार) नाशक है।  

Read more:





Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: