निसोथ (Nisoth) की बेल होती है जो बारहों महीने मिलती है, किन्तु वर्षा ऋतु में विशेषतया हरीभरी और फैली हुई
देखी जाती है। इस का मूल ही औषधि के काम में आता है। इस पर तीन धारी रेखा या
सलवटें सी होती है। इसमें मिलावट आती है, इसलिये पहिचान करके लेनी चाहिये। निसोथ
तीन प्रकार की होती है, काले फूल वाली, लाल फूल वाली और सफेद फूल वाली।
सफेद निसोथ (Nisoth) रेचक, मधुर,
उष्णवीर्य, वात एवं पित्तज्वर, कफ, पित्त,
सूजन और पेट के रोगों की नाशक है। यह आमाशय (Stomach)
के पित्त को आंतों में भेज देती है, जिससे अम्लपित्त (Acidity) में खास फायदा होता है। अविपत्तिकर चूर्ण में इसका
योग किया गया है।
काली निसोथ (Nisoth) सफेद निसोथ की अपेक्षा हीन गुणवाली तथा तीव्र रेचक है
एवं मूर्च्छा, जलन,
मद और भ्रांति को उत्पन्न करनेवाली है। क्रूर कोष्ठ वालों (जिनको सफेद निसोथ से
रेच नहीं होता) को ही काली निसोथ का उपयोग करना चाहिये।
निसोथ (Nisoth) का उपयोग सुगम विरेचन के लिये बहुत अच्छा है। साधारण
से 2-3 दस्त लाकर पेट को हलका कर देती है, कब्ज,
बुखार, पेट का दर्द, अफरा आदि विकार दूर होते है। स्त्री, बालक, सुकुमार प्रकृति के व्यक्तियों के लिये
निसोथ का विरेचन अच्छा है, क्योंकि इससे जी मिचलाना, उल्टी आदि नहीं होते। रात को इसके चूर्ण की फंकी
शक्कर या नमक मिलाकर सोते समय जल या दूध के साथ लेने से सुबह 2-3 दस्त हो जाते है।
बुखार, पेट के विकार, बवासीर,
पांडु, सूजन,
पेट की गांठ, पित्तविकार आदि रोगों में मलनिःसारण के
लिये स्वतंत्र या अन्य द्रव्यों के साथ निसोथ का उपयोग भी बहुत किया गया है। छोटे
बच्चों को अगर कब्ज की सिकायत हो तो थोड़ा अविपत्तिकर चूर्ण (जिसका मुख्य घटक
द्रव्य निसोथ है) देने से कब्ज दूर हो जाता है।
मात्रा: 3 माशे
से 6 माशे तक। (1 माशा=0.97 ग्राम)
Read more:
0 टिप्पणियाँ: