गुरुवार, 21 नवंबर 2019

जायफल के फायदे / Jaiphal Benefits


जायफल (Jaiphal) का वृक्ष बहुत सुहावना हरे रंग का सेब के समान मालूम देता है। उनमें पुष्पकोष नहीं होता, फल गोलाकार, अंडाकार अमरूद के बराबर होते है, जो पककर दो फांक में फट जाते है, उनके भीतर से एक बीज निकलता है। वही जायफल कहलाता है। इसकी गंध एक स्वतंत्र प्रकार की तीव्र और सुगंधयुक्त एवं कटु होती है।

जायफल (Jaiphal) अग्निदिपक, ग्राही (जो पदार्थ अग्नि को प्रदीप्त करता है, कच्चे को पकाता है, गरम होने की वजह से गीले को सुखाता है; वह ग्राही कहलाता है), स्वर के लिये लाभदायक, कफ, वात, मुख की विरसता, मल की दुर्गंध एवं कालापन, कृमि, खांसी, उल्टी, श्वास, पीनस और ह्रदयरोग नाशक है। जायफल रस में तिक्त (कडुआ) एवं तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, रोचक, लघु (लघु पदार्थ पथ्य, तुरंत पचन होनेवाला और कफ नाशक होता है) और कटु (तीखा) रसयुक्त भी होता है।

जावित्री: जायफल के बीजावरण को आवरित किए हुए गुच्छों के स्वरूप में उससे चिपटी रहती है। जावित्री गरम, रुचिकरक, वर्ण को उज्ज्वल करने वाली और कफ, खांसी, उल्टी, श्वास तथा विष (Toxin) को नष्ट करने वाली है।

जायफल (Jaiphal) और जावित्री पाचक, सुगंधित और उष्ण है। अल्प मात्रा में प्रयोग करने से पाचक क्रिया को बढ़ाते है। भूख लगाते है। उदराध्यमान (पेट फूलना), शूल और अतिसार आदि को मिटाते है। अधिक मात्रा में प्रयोग करने से मूढ़ता व प्रलाप पैदा करता है।

सेवन करने पर जायफल पाचक कार्य को शीघ्र स्थिर करता है, भूख बढ़ाता है, उदराध्यमान, ग्रहणी व शूल के शामक है। पाचक, वेदनानाशक और ग्राही होने से अतिसार (Diarrhoea), संग्रहणी, जी मिचलाना और उल्टी आदि विकारों में उपयोग किया जाता है। थोड़ी मात्रा में प्रयोग करने से मूत्रकृच्छ (मूत्र में जलन) और रक्तमूत्र में हितकर है। शिरदर्द, वात-व्याधि और हाथ-पैरों के संकोच में, बाह्योपचार के रूप में जायफल का प्रयोग किया जाता है अर्थात जायफल का लेप दर्द के स्थान पर करते है।

जायफल (Jaiphal) का तेल उष्ण और वायुनाशक है, इसलिये दूसरी पाचक, उत्तेजक दवाओं के साथ योजना किया जाता है। तेल बड़ी मात्रा में मादक है और अग्निमांद्य, अतिसार आदि रोगों में प्रयोग में आता है। इस तेल को सरसों के तेल में मिलाकर संधिवात, पक्षाघात, लचक आदि रोगों में मिलिश के काम में लेते है। जावित्री भी जायफल के समान गुणकारी है। 

यूनानी मत से जायफल प्रसन्नतादायक, रुचिकारक, मादक, शरीर के स्वाभाविक ताप का रक्षक है। आमाशय (Stomach), यकृत (Liver) और कामशक्ति को बलदायक है। यकृत की कठोरता, प्लीहा (Spleen) की सूजन एवं शीतजन्य अन्य सूजनों को लाभदायक है। जलंधर और गठिया में उपयोगी है। इसका अति सेवन उष्ण प्रकृतिवालों को, फेफड़े के लिये हानिकारक एवं शिरदर्द उत्पन्न करनेवाला है।

मात्रा: 4 रत्ती से 8 रत्ती तक। (1 रत्ती=121.5 mg), तेल की मात्रा: 5 से 15 बूंद तक।

जायफल की बनावटें:



जायफल के स्वतंत्र प्रयोग / जायफल के फायदे

1) दो बड़े चम्मच नारियल के तैल में 2 बूंद जायफल का तैल मिलाकर रख लें। इसे त्वचा के सुन्न वाले अंग पर मालिश करने से सुन्नता नष्ट हो जाती है।

2) जायफल को घिसकर कान की जड़ में लगाने से वहाँ की गांठ मिटती है।

3) पानी की सहायता से घिसा हुआ जायफल आधा चम्मच को एक गिलास पानी में घोलकर गरारे और कुल्ले करने से मुख के छाले ठीक हो जाते है तथा बैठा हुआ गला भी खुल जाता है।

4) जायफल को दूध में घिसकर मुख पर लेप करने से चेहरे पर काले धब्बे या मुँहासे दूर होकर चेहरे पर दिव्य निखार आ जाता है।

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