चित्रक (Chitrak) का क्षुप
एक हाथ से डेढ़ गज तक ऊंचा होता है। आयुर्वेद में खासकर चित्रक मूल की छाल का उपयोग
होता है। चित्रक मूल के चूर्ण का भी उपयोग होता है।
चित्रक (Chitrak) अग्निवर्धक, त्रिदोष नाशक, रसायन,
पाचक, लघुपाकी (शीघ्र पचनेवाला), रुक्ष और उष्णवीर्य है। यह संग्रहणी, कुष्ठ, सूजन,
कृमि तथा कास (खांसी) नाशक होता है तथा वात को दूर करनेवाला और ग्राही (जो पदार्थ
अग्नि को प्रदीप्त करता है, कच्चे को पकाता है, गरम होने की वजह से गीले को सुखाता है; वह ‘ग्राही’
कहलाता है) है। चित्रक, वायविडंग और नागरमोथा इन तीनों औषधियों
के समूह को ‘त्रिमद’
कहते है। इसका उपयोग अनेक औषधों में भूख बढ़ाने,
शरीर में स्फूर्ति लाने और अजीर्ण को नष्ट करने के लिये होता है। चित्रक की प्रमाण
से अधिक मात्रा लेने से यह विष (Toxin) की तरह शरीर में विकार पैदा करता है, इसलिये इसकी प्रमाण से अधिक मात्रा कभी भी नहीं लेनी
चाहिये। गर्भवती को भी इसका उपयोग नहीं करना चाहिये,
क्योंकि गर्भाशय पर इसकी संकोचक क्रिया बहुत तेज होती है।
आयुर्वेदिक
औषधियों में चित्रक को मिलाने के कारण:
Y दीपन-पाचन गुण के लिये (अग्नि को प्रदीप्त करता है और
आम=अपक्व अन्न रस को पचाता है)
Y त्रिदोष नाशक
Y चित्रक पचन-नलिका की श्लेष्म त्वचा (चिकनी त्वचा) को
उत्तेजना देता है
Y आमाशय (Stomach) को शक्ति देने के लिये
Y यकृत (Liver) पित्त का स्त्राव करने के लिये। यकृत
पित्त का योग्य स्त्राव होने से पचनशक्ति सुधरती है
Y रसायन गुण के लिये
Y पेट के रोगों का नाश करने के लिये
Y लेखन गुण के लिये (लेखन औषध रस आदि धातु और वात आदि
दोषों को सूखाकर शरीर को शुद्ध करता है)
Y भेदन रूप से (भेदन औषध बंधे या बिना बंधे मल को भेदन
कर मलद्वार से बाहर निकाल देता है)
आयुर्वेदिक
औषधियों में चित्रक का बहुत उपयोग हुआ है। सुप्रसिद्ध ‘चित्रकादि वटी’ में इसका योग किया गया है। लगभग सभी
रोगों में कम-अधिक मात्रा में इसका उपयोग होता है।
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