गुरुवार, 7 नवंबर 2019

दालचीनी के फायदे / Benefits of Cinnamon in Hindi


दालचीनी (Cinnamon) का वृक्ष तज के समान ही होता है। दालचीनी के वृक्ष की जाती में से ही तज है। इन दोनों में फर्क यह है कि मोटी छाल को तज कहते है और पतली को दालचीनी। दालचीनी तज से गुण में उत्तम है और इसमें से सुगंध भी ज्यादा आती है। साधारणतया तज और दालचीनी दोनों के स्थान पर बाजार में एक ही वस्तु मिलती है। तज और दालचीनी को एक ही मानकर अनेक स्थलों पर वर्णन हुआ है, इसलिये दालचीनी के प्रकरण में ही सबका उल्लेख है। इसको अंग्रेजी में Cinnamon कहते है।  

दालचीनी (Cinnamon) स्वादिष्ट, शीतल, वात-पित्त नाशक, सुगंधित, वीर्यवर्धक, वर्ण को उज्ज्वल करनेवाली और पिपासा, कफ, खांसी और शुक्रदोष नाशक है। भावप्रकाश ने तज को पित्त वर्धक एवं दालचीनी को पित्त्नाशक लिखा है। दालचीनी एक सुगंधित औषधि है, सुगंधित औषधि के गुणों के बारेमें हमने सौंफ के आर्टिकल में लिखा है।

दालचीनी (Cinnamon) सुगंधित तेल युक्त औषधि है। सुगंधित तेल युक्त औषधि श्वासनलिका की श्लेष्म कला (चिकनी त्वचा) से स्त्राव बढ़ाकर कफ निकालती है। यह फुफ्फुस आदि में उत्पन्न कफ को बाहर निकालकर खांसी को कम करती है।

दालचीनी (Dalchini) वायुनाशक, आक्षेपहर, सुगंधित, उष्ण, संकोचक एवं रोगोत्पादक किटाणु नाशक है। इसका प्रयोग अन्य द्रव्यों के साथ किया जाता है।

आयुर्वेदिक औषधियों में दालचीनी को मिलाने के कारण:

Y दीपन-पाचन गुण के लिये। उत्तम दीपन औषध होने से आमाशय (Stomach) के विकारों पर विशेष लाभदायक है।

Y कफ और खांसी को नष्ट करने के लिये (व्योषादि वटी, एलादि वटी)

Y वीर्यवर्धक गुण के लिये (शुक्र स्तंभन वटी, अश्वगंधारिष्ट)

Y कृमि को नष्ट करने के लिये (विडंगारिष्ट)

दालचीनी (Dalchini) का उपयोग चरक और सुश्रुत में भी बहुत स्थानों पर हुआ है। सुश्रुत ने एलादि गण (एलादि गण वात, कफ और विषनाशक है) में इसका उल्लेख किया है। क्षय रोग (TB) तथा विषमज्वर (Malaria) में दालचीनी का उपयोग किसी न किसी रूप में हुआ ही है। बुखार की सुप्रसिद्ध औषधि महा सुदर्शन चूर्ण में भी इसका उपयोग हुआ है।

दालचीनी (Dalchini) का तेल (Cinnamon Oil): दालचीनी का तेल औषधोपयोगी मात्रा में गुल्म (पेट की गांठ), जिह्वास्तंभ, ग्रहणी, आंत्रशूल, आमाशय शूल (पेट दर्द), उबकाई और उल्टी आदि में एक औषध की तरह काम करता है। कृमिघ्न (कृमिनाशक) होने के कारण सुजाक (Gonorrhoea) में इसका इंजेक्शन किया जाता है। जीवाणु नाशक रूप में मोतिझरा (Typhoid Fever) में आंतरीय प्रयोग से रोगाणु को मारता है, रक्तशोधक है, गर्भाशय के ऊपर इसका खास असर होता है, गर्भाशय से होनेवाले रक्तस्त्राव के लिये यह उत्तम औषध है। दालचीनी या तज का तेल प्रमाण से अधिक मात्रा लेने से विष (Toxin) के समान विकार उत्पन्न करता है। क्षयरोग में तज का एसिड (Cinnamic Acid) इंजेक्शन के रूप में प्रयुक्त होता है अर्थात तज क्षय के जीवाणुओं को नाश करनेवाली है।  

तज का चूर्ण 10 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की मात्रा में पेट के मरोड़ की प्रसिद्ध औषध है। नष्टार्तव (मासिक धर्म न आना) के लिये तज का तेल (Oil Cinnamon) अत्यंत उपयोगी औषधि है।

दालचीनी (Dalchini) और इलायची आधा-आधा ग्राम व सौंठ 12 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) से आधा ग्राम तक पीसकर भोजन से पूर्व सेवन करने से कब्ज दूर होकर भूख बढ़ जाती है।

मात्रा: 2.5 से 5 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg)। गर्भिणी को दालचीनी या तज का उपयोग नहीं करना चाहिये।

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