कामदेव धृत (Kamdev Ghrita) उत्तम पौष्टिक और वाजीकरण है। वीर्यक्षय, शरीर की कृशता (दुबलापन), मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन), उरःक्षत (छाती का मांस फटना) और नपुंसकता में इसका
प्रयोग करें। कामदेव धृत में असगंध, गोखरू,
बरियारा (खरेटी), शतावरी,
ऋद्धि, वृद्धि,
गंभारी के फल और विदारीकंद यह औषधियाँ वीर्यवर्धक,
बलदायक और वातनाशक है। मेदा, महामेदा,
जीवक, ऋषभक,
काकोली, क्षीरककोली यह औषधियाँ जीवनीय गण की है।
जीवनीय गण वीर्यवर्धक, आयुष्यप्रद और जीवन शक्ति को पोषण देने
वाला है और रक्तपित्त और रक्तदोष नाशक है। गाय का घी शीतल, अग्निदीपक, त्रिदोषनाशक, रसायन, कांतिकारक,
पौष्टिक, बुद्धिवर्धक, शुक्रवर्धक, ह्रदय को बल देनेवाला और मनुष्य के लिये
हितकारी है। इस कामदेव धृत
(Kamdev Ghrita) के सेवन से बल, वीर्य बढ़ता है और शरीर का वर्ण उज्ज्वल होता है।
मात्रा: 5 से 20
ग्राम तक, उतना ही मिश्री का चूर्ण मिलाकर देवे, ऊपर से दूध पिलावे।
कामदेव धृत बनाने
की विधि (Kamdev Ghrita
Ingredients): असगंध 400 तोला, गोखरू 200 तोला, बरियारा,
गिलोय, सरिवन,
विदारीकंद, शतवार,
सोंठ, गदहपूरना,
पीपल की कोपल, गंभारी के फल, कमलगट्टा और उड़द प्रत्येक 20-20 तोला लें। सबको
जौकुटा कर 4016 तोले जल में पकावे। चौथाई जल बाकी रहने पर कपडे से छान, उसमें गाय का घी 256 तोला, गन्ने का रस 256 तोला तथा मेदा, महामेदा, जीवक,
ऋषभक, काकोली,
क्षीरकाकोली, ऋद्धि,
वृद्धि, कूठ,
पद्माख, लाल चंदन,
तेजपात, छोटी पीपल,
मुनक्का, कौंच,
नीलकमल, नागकेशर,
अनंतमूल, बरियारा और कंधी प्रत्येक 1-1 तोला तथा
मिश्री 8 तोला, इनके कपड़छन चूर्ण को जल में पीसकर कल्क
बनावे और धृत में मिलाकर धृतपाक विधि से पकावें। धृत तैयार होने पर कपडे में छानकर
शीशी में भर लेवें।
Ref: सिद्ध योग संग्रह
कामदेव धृत घटक
द्रव्यों के गुण:
असगंध: उष्णवीर्य, बलकारक, अत्यंत वीर्यवर्धक, रसायन एवं वात-कफ,
सूजन और क्षय नाशक है।
गोखरू: शीतवीर्य, बलकारक, मूत्राशयशोधक, रसायन, अग्निदीपक,
वीर्यवर्धक एवं पुष्टिकारक है। बलकारक, मूत्रल और कामोत्तेजक है।
बरियारा (खरेटी):
शीतल, बल और कान्तिकारक, वात-रक्तपित्त और रुधिरविकार नाशक है।
गिलोय: रसायन, उष्णवीर्य, बलकारक,
अग्निदीपक तथा त्रिदोष, आम, जलन,
मेह, खांसी,
पांडुरोग, कामला,
कुष्ठ, बुखार,
कृमि और वमन (उल्टी) नाशक है। प्रमेह, श्वास,
कास, बवासीर,
मूत्रकृच्छ, ह्रदय रोग और वातनाशक है। गिलोय आयुवर्धक, बुद्धि को हितकारी,
कफ-वात नाशक, पित्त,
मेद-शोषक, कंडु और विसर्प नाशक है।
सरिवन
(शालपर्णी): त्रिदोषनाशक, बृहण (धातुवर्धक), रसायन, विष,
क्षत, खांसी तथा कृमिनाशक है।
विदारी कंद:
पुष्टिकारक, दुग्धवर्धक, वीर्यवर्धक, शीतल,
मूत्र को बढ़ानेवाला, जीवनरूप,
बल तथा वर्ण को देनेवाला, रसायन और पित्त, रुधिरविकार, वात तथा जलन को नाश करता है।
शतावरी: शीतवीर्य, रसायन, मेघा (धारणाशक्ति) कारक, जठराग्निवर्धक, पुष्टिकारक, नेत्रों के लिये लाभदायक, वीर्यवर्धक, स्तानों में दूध बढ़ानेवाली, बलदायक एवं गुल्म,
अतिसार, वात,
पित्त, रक्त जनित सूजन की नाशक है।
सोंठ: वीर्यवर्धक,रुचिकारक, आम (अपक्व अन्न रस =Toxin) नाशक, पाचक,
कफ-वात तथा मल के बंध (गांठ) को तोड़नेवाली, गरम,
स्वर को उत्तम करनेवाली एवं उल्टी, श्वास,
शूल, खांसी,
ह्रदय रोग, सूजन,
अफरा, बवासीर,
पेट के रोग और वातरोगों को नष्ट करनेवाली है।
गदहपूरना (सफेद
पुनर्नवा): अत्यंत अग्निदीपक और पांडुरोग, सूजन,
वायु, विष तथा पेट के रोगों की नाशक है।
पीपल की कोपल:
रेचक और पौष्टिक है।
गंभारी के फल:
धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, बालों के लिये हितकारी और रसायन है तथा यह वात, पित्त, रक्तक्षय (खून की कमी) और मूत्रावरोध
नाशक है।
कमलगट्टा: पित्त
की ऊष्मा को कम करता है, रक्तविकार और सूजन को लाभदायक, चेहरे की रंगत को उज्ज्वल करनेवाला है।
उड़द: पोषक, उष्ण, पौष्टिक,
मलभेदक, बलकर, मूत्रल, शुक्रल,
मांसवर्धक और मेदवर्धक है।
गन्ने का रस:
मूत्रल, शीतल,
पौष्टिक तथा बलकर है। कांति को बढ़ानेवाला और सारक (Mild Laxative)
है तथा वायु, रक्तविकार और पित्तनाशक है।
ऋद्धि: बलदायक, त्रिदोषनाशक, वीर्यवर्धक, प्राणप्रद, ऐश्वर्यजनक तथा मूर्च्छा और रक्तपित्त को
नाश करनेवाली होती है।
वृद्धि: गर्भजनक, शीतल, बृहण (धातुवर्धक), वीर्यवर्धक, रक्तपित्त,
क्षत, खांसी तथा क्षय नाशक है।
कुठ: उष्णवीर्य, शुक्रजनक, शुक्रशोधक,
रसायन, विषनाशक और कांतिकारक है।
पद्माख: शीतवीर्य, तिक्त पौष्टिक, जलन,
विस्फोटक, कुष्ठ,
कफ और रक्त-पित्तनाशक है तथा गर्भस्थापक, रुचिकरक एवं वमन, व्रण तथा तृषानाशक है।
लाल चंदन:
शीतवीर्य, धातुवर्धक,
नेत्रों के लिये हितकारी, विषनाशक,
उल्टी, पिपासा और रक्तपित्त को दूर करनेवाला है।
नीलकमल: ठंडा, कफ-पित्तनाशक तथा जलन,
रक्तविकार, विष,
विस्फोटक (शरीर में छोटी-छोटी फुंसियाँ) और विसर्प को दूर कर्ता है तथा शरीर के
रंग को उज्ज्वल करता है।
तेजपात:
उष्णवीर्य, कफ, वात,
बवासीर, अरुचि तथा पीनस को दूर करता है। तेजपात
विष, बस्तीरोग,
खुजली और त्रिदोष नाशक है एवं मुख और मस्तक शोधक है।
पीपल: अग्निदीपक, वीर्यवर्धक, रसायन,
थोड़ी गरम, वात और कफ नाशक और रेचक है एवं श्वास, खांसी, पेट के रोग, बुखार, कुष्ठ,
प्रमेह, गुल्म,
बवासीर, प्लीहा,
शूल और आमवात को नाश करनेवाली है।
नागकेशर: तिक्त पौष्टिक, सुगंधित और स्वेदल एवं रेचक है। आमपाचक और विषनाशक है।
कौच: अत्यंत पौष्टिक, वीर्यवर्धक, वातनाशक,
बलकारक, कफ, पित्त एवं रक्तदोषनाशक है।
मुनक्का: श्रमहर, शीतल व मृदु रेचक (हल्की दस्तावर) है।
अनंतमूल: वीर्यकर्ता, भारी और अग्नि मंदता,
अरुचि, खांसी,
आम, विष,
तीनों दोष, तथा रक्तविकार को नष्ट करनेवाली है।
कंधी: शीतल, बल और कांतिकारक,
वात-रक्तपित्त और रुधिरविकार नाशक है।
Kamdev
Ghrita is aphrodisiac and tonic. It is used in impotency, urine irritation and
general debility.
Read
more:
0 टिप्पणियाँ: