स्वर्ण भूपति रस (Swarna Bhupati Ras) सब प्रकार के सन्निपात और क्षय (TB) की दूसरी अवस्था में अति लाभदायक है। आमवात (Rheumatism), धनुर्वात, लंगड़ापन,
उरुस्तंभ (कमर के नीचे का पक्षाघात), पंगुता,
कंपवात, कटिवात (कमर दर्द), मंदाग्नि, सब प्रकार के शूल (Colic), गुल्म (Abdominal Lump), उदावर्त (पेट में गेस उठना), भयंकर ग्रहणी, प्रमेह,
पेट के रोग, सब प्रकार की अश्मरी (पथरी), कब्ज, मूत्रविबंध, भगंदर, सब प्रकार के कुष्ठ (Skin Diseases), विषविकार,
बढ़ा हुआ विषप्रकोप, विद्रधि,
श्वास, खांसी,
अजीर्ण, सब प्रकार के बुखार, कामला (Jaundice), पांडु (Anaemia),
शिरोरोग आदि सब कफ-वात प्रधान रोग अनुकूल अनुपान के साथ सेवन करने से दूर होते है।
महाराष्ट्र में अनेक वैध इस औषधि का उपयोग अनेक रोगों पर करते है। यह महाराष्ट्र
की अति प्रसिद्ध औषधि है।
स्वर्ण भूपति रस (Swarna Bhupati Ras) में सुवर्ण, रौप्य, ताम्र,
लोह और अभ्रक, इन भिन्न-भिन्न गुणवाली धातुओ का संयोग
होने से यह वात, पित्त और कफ, तीनों दोषों के विकारो को शमन करने में प्रभावशाली
है। सन्निपात में कफ से श्वासनलिका अति आच्छादित न हुई हो, या पित्तप्रकोप अधिक हो, कफ-विकृति कम हो,
ऐसे सब सन्निपात में यह लाभ पहुंचाता है। क्षय की दूसरी अवस्था तक इसका उपयोग होता
है। क्षय में सूक्ष्म मात्रा देने से किटाणुओ का नाश, वातप्रकोप, बुखार और खांसी का शमन तथा बल की वृद्धि
होकर शांति प्राप्त होती है।
इस रसायन में
ताम्र का परिमाण अधिक होने से यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen)
और वृक्कस्थान (Kidneys) को शुद्ध करना, संचित सेंद्रिय विष (Toxin)
को बाहर फेंकना एवं कफ और आमपाचन करना, ये गुण विशेष रूप में मिलते है। इसके
सेवन से अजीर्ण, पेट दर्द,
सारे शरीर में चलनेवाले शूल और आमवात का शमन होता है।
इस तरह रौप्य के
प्रभाव से वातवाहिनिया और वातप्रकोप पर लाभ पहुंचता है। विविध प्रकार के कंप, कलायखंज (जो पुरुष चलते समय थरथर कांपे और खंज अर्थात
एक पैर हीन मालूम हो, इस रोग में संधि के बंधन शिथिल होते है
इस रोग को कलायखंज कहते है), आक्षेपयुक्त वात, चक्षुगत वातविकार,
वातवृद्धि होकर चक्कर आना, मूर्छा,
सुखी खांसी और शूल आदि पर उपयोग होता है।
आहार-विहार में
लंबे समय तक अनियमितता होने से आमाशय (Stomach), यकृत,
फुफ्फुस, ह्रदय या शुक्राशय आदि यंत्र शिथिल हो
जाते है, तब इनके व्यापार में कमी न होने के लिये
वातवाहिनियों के तन्तु लंबे और पतले बनकर इन सब आशयो का संरक्षण करते है। परंतु जब
इन वातनाड़ियो की शक्ति का क्षय (कमी) हो जाता है,
तब पक्षाघात आदि विविध वातरोगों का आक्रमण होता है। इन वातरोगों में तीव्र अवस्था
दूर होने पर वात, पित्त,
कफ तीनों धातु, सब आशय और वातवाहिनियों को सबल बनाकर रोग
को पूर्ण अंश में दूर करने के लिये यह स्वर्ण भूपति रस (Swarna Bhupati Ras) अति उपयोगी है।
जब पचन-क्रिया
में विकृति होने से सेंद्रिय विष की उत्पत्ति होती है; और फिर इसी कारण धमनीयों में फिरने वाले रक्त में
मलिनता आ जाती है; रक्त शैरिक भाव को प्राप्त होता है, तब वात का आक्षेप उपस्थित होता है। इस अवस्था में
पचन-क्रिया सुधारकर और सेंद्रिय विष को नष्ट कर,
आक्षेप को दूर करने का कार्य इस स्वर्ण भूपति रस से होता है।
इनके अतिरिक्त
मानसिक आघात पहुंचने पर वातप्रकोप हो जाता है। उसे भी यह स्वर्ण भूपति रस दूर करता
है। इससे वात-कफ प्रधान उरुस्तंभ और वातवाहिनी की विकृति से होने वाले वातरोग (Musculoskeletal Disorder), यकृत (Liver)
और अन्य दोष से उत्पन्न वातरोग, उदावर्त (पेट में गेस उठना), शिरोरोग, गुल्म (Abdominal
Lump), पेट के रोग, खांसी और श्वास भी दूर होते है।
इस औषध में वात
आदि तीनों दोषो को नियमित करने और सेंद्रिय विष को नष्ट करने का गुण होने से यह
मधुमेह (Diabetes) को छोडकर शेष सब प्रकार के प्रमेहों को
नष्ट करती है। कच्चे आम को प्रस्वेद और मूत्र द्वारा बाहर निकालती है; और जलाती भी है, जिससे दिनों तक बने रहने वाले नये बुखार
और पुराने बुखार का शमन होता है, तथा मल-मूत्र का अवरोध और अजीर्ण नष्ट
होता है।
संयोगजन्य ग्राही
और दीपन-पाचन गुण होने से अतिसार (Diarrhoea) का शमन करने में यह उपयोगी है। इसके
अतिरिक्त इस औषधि का वियोजन पर्पटी के समान अंत्र में होता है। अतः अंत्र में सूजन
युक्त ग्रहणी, वात,
पित्त और कफोल्वण ग्रहणी, अंत्र व्रणयुक्त (Ulcer in Intestine) रक्तज ग्रहणी या पूय (Puss) युक्त ग्रहणी, अंत्रक्षय (संग्रहणी), इन सब को नष्ट करता है। एवं इस रसायन में लोह का
मिश्रण होने से यह रक्त में रहे हुए रक्ताणुओं की वृद्धि कर पांडु (Anaemia) और कमला (Jaundice) को दूर करता है।
सब रोगों के मूल
वात, पित्त और कफ दोष, एवं रस, रक्त आदि दुशयों की विकृति है, इन सब पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इन स्वर्ण भूपति
रस (Swarna Bhupati
Ras) का असर होता है। आमाशय
(Stomach), यकृत (Liver),
प्लीहा (Spleen), ह्रदय,
अंत्र, फुफ्फुस,
रक्तवाहिनी, वातवाहिनी,
मस्तिष्क, मांसग्रंथियां, पिपासा-स्थान,
वृक्कस्थान (Kidneys), वीर्यस्थान, आदि शरीर संरक्षण निमित्त महत्व के सब स्थानों को स्वर्ण
भूपति रस बल देता है। अतः शास्त्र में लिखा है कि,
‘सब रोगों के विनाश के लिये स्वर्ण भूपति
रस सबसे उत्तम है।‘
मात्रा: 1 से 3
रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg) अदरख के रस और मिश्री के साथ अथवा
रोगानुसार अनुपान के साथ।
स्वर्ण भूपति रस घटक द्रव्य
(Swarna Bhupati Ras Ingredients):
शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक 1-1 भाग, ताम्र भस्म 2 भाग,
अभ्रक भस्म, लोह भस्म,
कान्तलोह भस्म, सुवर्ण भस्म और शुद्ध वच्छनाग 1-1 भाग।
भावना: हंसराज का रस।
Ref: योग रत्नाकर
Swarna
Bhupati Ras is useful in musculoskeletal disorder, back pain, tetanus,
tuberculosis, gas, colic and abdominal lump. Swarna Bhupati Ras is also useful
in sprue, abdominal disease, stone, asthma, cough, indigestion, constipation,
jaundice, anaemia and diseases of the head. It is capable of destroying all the
diseases.
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