सोमवार, 2 सितंबर 2019

सारिवाद्यारिष्ट के फायदे / Sarivadyarishta Benefits


इस सारिवाद्यारिष्ट (Sarivadyarishta) के पीने से 20 प्रकार के प्रमेह, शराविकादि समस्त प्रमेहजन्य पीडिकाएं, उपदंश (Syphilis) जन्य विकार, वातरक्त (Gout) और भगंदर नष्ट होते हैं।

यह सारिवाद्यारिष्ट (Sarivadyarishta) शीतवीर्य और लघु विपाकी है। इसका प्रत्येक द्रव्य पित्तज और रक्तज विकारो का नाश करनेवाला, दोषानुलोमक, पाचक, कोष्ठशोधक (कोठे को शुद्ध करनेवाला), मूत्रल और पोषक है। इसके सेवन से रक्तगत, त्वचागत, ग्रन्थिगत तथा विविधाशयो मे वात पित्त द्वारा प्रविष्ट हुए दोष नष्ट होते है। यह प्रमेह, वातरक्त, भगंदर और उपदंश जन्य विकारों के लिए हितकर है।

मात्रा: 1.25 से 2.5 तोला भोजन के बाद समान पानी मिलाकर। 10 से 20 ml समान पानी मिलाकर भोजन के बाद। 

सारिवाद्यारिष्ट घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान(Sarivadyarishta Ingredients): सारिवा, नागरमोथा, लोध्र, बरगद की छाल, पीपल वृक्ष की छाल, कचूर, अनन्तमूल, पद्माक, सुगन्धबाला, पाठा, आंवला, गिलोय, खस, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, अजवायन और कुटकी, प्रत्येक द्रव्य का चूर्ण 5-5 तोले तथा छोटी इलायची, बडी इलायची, कूठ, सनाय और हैड, प्रत्येक का चूर्ण 20-20 तोले लें। सब द्रव्यों के चूर्गों को एकत्र मिश्रित करें।

एक स्वच्छ, गंध धृपित और घृत प्रलिप्त मटके मे 64 सेर शुद्ध जल भरें और उसमें उपरोक्त द्रव्यों के मिश्रण को डालकर घोल दें। अब इसमें 18.5 सेर गुड, 50 तोले धाय के फूल और 3.5 सेर द्राक्ष (मुनक्का) और मिला दे। मटके का मुख कपडमिट्टी से बंद करके उसे गढे में दबा दे।

एक मास पर्यन्त औषध को निर्वात सिद्ध होने दे, तत्पश्चात उसे निकाल और छान कर प्रयोग में लावें।

Ref: भैषज्य रत्नावली

Read more:




Previous Post
Next Post

0 टिप्पणियाँ: