कुटजारिष्ट (Kutajarishta) के सेवन से सब प्रकार के ज्वर नष्ट होते है। यह अग्निवर्द्धक
है। यह असाध्य ग्रहणी और रक्तातिसार में श्रेष्ठ है।
कुटज त्वक् कटु, तिक्त, शीत, रुक्ष और दीपन है।
यह अर्श (बवासीर), अतिसार (Diarrhoea),
रक्तपित्त (नाक से या मुंह से खून निकलना), आम (अपक्व अन्न रस
जो एक प्रकार का विष बन जाता है और शरीर में रोग पैदा करता है), कफ, तृष्णा और कुष्ठ नाशक है।
कुटजारिष्ट (Kutajarishta) पाचक, संग्राही, दाहनाशक (जलन का नाश करनेवाला), ज्वरन्न (बुखार का नाश करनेवाला), आम-कफ-वात नाशक, वातानुलोमक (वायु की गति को नीचे की तरफ करनेवाला) और अन्त्रशोथ (आंतों की सूजन), क्षोभ (Irritation), शैथिल्य तथा अन्त्रकला (Mucous Membrane of Intestine) जडता नाशक है। इसके सेवन से आमातिसार, रक्तातिसार, रक्तार्श (खूनी बवासीर) और संग्रहणी का नाश होता है। पुरातन संग्रहणी, जीर्ण प्रवाहिका, आम विकार और ग्रहणी तथा अन्त्र शैथिल्य के लिए कुटजारिष्ट उत्तम औषध है।
कुटजारिष्ट घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान
(Kutajarishta Ingredients):
क्वाथ द्रव्य: कुडे की छाल 6.25 सेर, द्राक्षा (मुनका) 3 सेर 10 तोले, महुवे के फूल और खम्भारी 50-50 तोला। सबको एकत्र कर अधकुटा करले।
जल: 4 द्रोण (128 सेर)।
प्रक्षेप द्रव्य: धाय के फूलो का चूर्ण 1.25 सेर और गुड 6.25 सेर।
क्वाथ द्रव्यो फो 128 सेर जलमे पकावे। 32 सेर अवशेष रहने पर क्वाथ को ठण्डा करलें। फिर उसे स्वच्छ, गंध धूपित और घृत प्रलिप्त मटके मे भरकर उसमे प्रक्षेप द्रव्यो को मिला और मटके का भली प्रकार संधान करके गढे में दबा
दें। 1 मास पश्चात औषध को निकाल कर स्वच्छ शीशियो मे भरकर प्रयोगार्थ सुरक्षित
रखले।
मात्रा: 1.25 से 2.5 तोला यथावश्यक समान जल मिलाकर। 10 से 20 ml समान जल मिलाकर।
मात्रा: 1.25 से 2.5 तोला यथावश्यक समान जल मिलाकर। 10 से 20 ml समान जल मिलाकर।
Ref: भैषज्य रत्नावली
Kutajarishta
is useful in all types of fever. It is digestive and best used in sprue and
diarrhoea.
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