त्रिफला लोह (Triphala Loha) के सेवन से भस्मक रोग (इस रोग में खाया हुआ
अन्न पचने की जगह भस्म हो जाता है और शरीर को पोषण नहीं दे शकता) नष्ट होता है। त्रिफला
लोह दाह (जलन) नाशक, पित्तशोधक और आमाशय (Stomach), ग्रहणी (Duodenum) तथा अंत्र (Intestine) में होनेवाले वात-पित्तज और पित्तज व्रणों (Ulcer) के लिये अत्यंत उपयोगी है।
मात्रा: 4 से 6
रत्ती। घी, मधु और मिश्री के साथ। घी और मधु विषम
मात्रा में लें। (1 रत्ती = 121.5 mg)
त्रिफला लोह घटक
द्रव्य और निर्माण विधि
(Triphala Loha Ingredients):
त्रिफला, मोथा,
वायविडंग, मिश्री,
पीपल और अपामार्ग (चिरचिटे) के बीजों का चूर्ण 1-1 भाग लें तथा लोह भस्म इन सबके
बराबर लेकर एकत्र करें।
Ref: रसेन्द्र सार संग्रह
Triphala
loha is useful in irritation in any part of the body and ulcer on intestine. It
regulates the digestion system.
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