नागार्जुनाभ्र रस (Nagarjunabhra Ras) के सेवन से ह्रदयरोग (ह्रदय की अधिक धड़कन, ह्रदय की मंदता),
सब प्रकार के शूल (ह्रदय मांस शूल, फुफ्फुस आवरण शूल, महाधमनी शूल, वातज ह्रदय शूल आदि), अर्श (बवासीर), हल्लास,
छर्दी (उल्टी), अरुचि,
अतिसार, अग्निमांद्य, रक्तपित्त, क्षत,
क्षय (Tuberculosis), शोथ (सूजन), पेट के रोग, अम्लपित्त (Acidity), विषमज्वर (Malaria) आदि ह्रद्रोगानुबंधि रोग नष्ट होते है।
यह बल, वीर्य की वृद्धि करता है और रसायन है।
नागार्जुनाभ्र रस (Nagarjunabhra Ras) का जिन जिन रोगों पर सेवन का शास्त्र ने
निर्देश किया है वे अधिकतर सभी ह्रदय रोग से संबंधित है। ह्रदय रोग की किसी भी
परिस्थिति में जहां रक्तहीनता के कारण पोषण अभाव से रोग उत्पन्न होते हों, ह्रदय मांस वायु द्वारा प्रस्फुटित होकर वेदना उत्पन्न
करता हो, ह्रदय अवरणों के बीच वायु भरकर ह्रदयतोद
(ह्रदय में वेदना) उत्पन्न करता हो अथवा ह्रदय का शोथ (सूजन) हो उन समस्त विकारों
पर यह औषध प्रशस्त है।
मात्रा: 1-1 गोली
सुबह-शाम। मधु के साथ।
नागार्जुनाभ्र रस
घटक द्रव्य और निर्माण विधि
(Nagarjunabhra Ras Ingredients):
सहस्त्रपुटी वज्राभ्रक भस्म को 7 दिन अर्जुन की छाल के रस में घोटकर 1-1 रत्ती की
गोलियां बनाकर छाया में सुखालें।
Ref: रस राज सुंदर, रसेन्द्र चिंतामणि
Nagarjunabhra
Ras is useful in heart diseases, chest pain, piles, vomit, anorexia, diarrhoea,
indigestion, tuberculosis, swelling, abdominal disease, acidity and malaria.
Nagarjunabhra Ras is rejuvenative, strengthens the body and promotes semen
production.
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