गुरुवार, 29 अगस्त 2019

कालमेघासव के फायदे / Kalmeghasava Benefits


कालमेघासव (Kalmeghasava) यकृत्प्लीहावृद्धि (Liver and Spleen Enlargement), जीर्णज्वर (पुराना बुखार), कोष्टवद्धता (कब्ज) आदि रोगो मे हितकर है।

कालमेघ कषाय रस प्रधान ज्वरध्न (बुखार नाशक) द्रव्य है । इसकी क्रिया किरातमूल के अनुसार ज्वरनाशक, कोष्टशोधक (पेट को शुद्ध करनेवाला), यकृत-प्लीहावृद्धिनाशक (Cures Liver and Spleen Enlargement), अन्त्र (Intestine)-शैथिल्यनाशक और जीर्णज्वरजन्य पाण्डुनाशक (लंबे समय के बुखार से शरीर पीला पड़जाता है उस पीलेपन का नाश होता है) है। यदि लौह के योग के साथ प्रयुक्त किया जाय तो यह पाण्डु, कामला, रक्तहीनता आदि का नाश करता है और अन्त्र के शोष द्वारा उत्पन्न हुए विकारो का नाश करके अन्त्र को सक्रिय करता है।

सप्तपर्णके कषाय या चूर्ण के साथ देने से यह अचूक अंत्र शैथिल्य नाशक क्रिया करता है और इस योग के साथ इसकी यकृद-प्लीहावृद्धि नाशक क्रिया शीघ्र होती है।

मात्रा:- ½ से 1 तोला (5 से 10 ग्राम) तक समान पानी मिलाकर भोजन के बाद अथवा आवश्यकतानुसार।

कालमेघासव घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान (Kalmeghasava Ingredients): एक घृतप्रलिप्स शुद्ध मटके मे ५० सेर शुद्ध जल भरे और उसमें १२॥ सेर अधकुटी कालमेघ की छाल डाले । अब इस मटके मे १९॥ सेर गुड, २ सेर धाय के फूल और चिरायता, कुटकी, नीम की छाल, सोंठ, हरड़, धमासा, पटोल पत्र, लाल चन्दन और खस प्रत्येक द्रव्य का १०-१० तोले सूक्ष्म चूर्ण एकत्रित कर डाल दे । मटके का भली प्रकार संधान करके गढे मे निर्वात सिद्धि के लिए रख दे। १ मास पश्चात् औषध को निकाल कर, छान कर और स्वच्छ शीशियो में भरकर प्रयोगार्थ सुरक्षित रख ले।

Kalmeghasava is useful in chronic fever, constipation, liver and spleen enlargement.

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