चतुर्भुज रस (Chaturbhuj Ras) को यथा अग्निबल मात्रानुसार त्रिफले के
चूर्ण में और मधु के साथ सेवन करने से वलि (चेहरे की झुर्रियां) तथा पलित (बालो का
सफेद होना), अपस्मार (Epilepsy),
बुखार, खांसी,
सूजन, अग्निमांद्य, क्षय (Tuberculosis), हस्तकंप (हाथो का कंप), शिरकंप, गात्रकंप आदि विशेष रोगों तथा वात, पित्त और कफ से होनेवाले अन्य रोगों का अवश्य नाश
होता है।
अन्य औषधियों से
पंचकर्म द्वारा और अन्य औषधियों से जो रोग नष्ट नहीं होते हो उन सबका यह चतुर्भुज
रस (Chaturbhuj Ras) नाश करता है जैसे वृक्षो को बिजली नाश
करती है।
उन्माद (Insanity), अपस्मार और ज्ञानतंतुओ की निर्बलता में इस चतुर्भुज
रस का प्रयोग सर्वदा सफल पाया गया है। यह उत्तम पोषक और शरीर तथा मस्तिष्क बलवर्धक
है।
मात्रा: 1 से 2
रत्ती। त्रिफला और मधु के साथ। (1 रत्ती = 121.5 mg)
चतुर्भुज रस घटक
द्रव्य (Chaturbhuj
Ras Ingredients): पारद भस्म
(अभाव में रससिंदूर) 2 भाग तथा स्वर्ण भस्म, मनसिल,
कस्तुरी और हरताल भस्म 1-1 भाग। भावना: धृतकुमारी का रस।
Ref: रस राज सुंदर
Chaturbhuj
Ras delays old age, cures epilepsy, fever, cough, swelling, indigestion and tuberculosis.
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