यवानीखांडव चूर्ण (Yavanikhandav Churna) के सेवन से अरुचि नष्ट होती है। यह चूर्ण
जिह्वा को शुद्ध करता है। ह्रद्य (ह्रदय को बल देने वाला) और दीपन है तथा ह्रदय
पीड़ा, पार्श्व शूल, कब्ज, अफरा,
खांसी, श्वास,
ग्रहणी और बवासीर का नाश करता है तथा यह ग्राही है।
यवानीखांडव चूर्ण
ग्रहणी दोष (Duodenum
Disorder) नाशक और दीपन है। इसके
सेवन से ग्रहणीस्थान विकार के कारण होनेवाले वात-कफ और आम (अपक्व अन्न रस) के रोग
नष्ट होते है। अग्निप्रदीप्त होती है और दोषों का अनुलोमन होता है।
मात्रा: 1 से 6
ग्राम तक। जल या मधु मिलाकर। सुबह-शाम।
यवानीखांडव चूर्ण
बनाने की विधि
(Yavanikhandav Churna Benefits): अजवायन, तिन्तडीक,
सोंठ, अम्लवेतस,
अनारदाना और खट्टेबेर प्रत्येक द्रव्य का सूक्ष्म चूर्ण 1.25-1.25 तोला, धनिया, कालानमक,
जीरा और दालचीनी प्रत्येक का सूक्ष्म चूर्ण ½- ½ कर्ष,
पीपल नंग 100 का सूक्ष्म चूर्ण, कालीमिर्च नंग 100 का सूक्ष्म चूर्ण और
खांड 10 तोले इन सब द्रव्यों को मिश्रीत करके यथा विधि प्रयोग में लेवें।
Ref: योग रत्नाकर, भैषज्य रत्नावली
Yavanikhandav
Churna is useful in anorexia, chest pain, constipation, flatulence, cough,
asthma and piles.
Read
more:
0 टिप्पणियाँ: