स्वर्ण सिंदूर (Swarna Sindoor) के सेवन से समस्त रोगों का नाश होता है।
धातु, बल, अग्नि,
आयु, मेघा,
कांति और कामशक्ति की इसके सेवन से वृद्धि होती है। यह रसायन और वृष्य (पौष्टिक)
है।
स्वर्ण सिंदूर
शोधक (शरीर को शुद्ध करनेवाला), पाचक,
त्रिदोषनाशक तथा दोषानुलोमक है। वर्णकारक (शरीर के रंग को सुधारनेवाला), अग्नि और बलवर्धक तथा अंत्रकला (Mucous Membrane of Intestine) के दोषों को दूर करनेवाला है। इसके सेवन
से दिर्धकाल से क्षीण हुई अग्नि जागृत होती है। शरीर और मुख पर कांति की वृद्धि
होती है। पुराने रोगों पर इसकी क्रिया स्थायी और श्रेष्ठ होती है।
मात्रा: ½ से 2 रत्ती तक। मधु अथवा यथादोषानुपान। (1 रत्ती =
121.5 mg)
स्वर्ण सिंदूर
घटक द्रव्य और निर्माण विधि
(Swarna Sindoor Composition):
शुद्ध पारद 5 तोला, शुद्ध गंधक 5 तोला और सोने के वर्क 1.25
तोला लें। प्रथम सोने के वर्क और पारे को एकत्र मिलाकर खरल करें। जब दोनों
भालिभांति मिलजाय तो फिर गंधक मिलाकर कज्जली करें। कज्जली तैयार होने पर उसे एक प्रहर
वट के अंकुरों के रस और धृतकुमारी के रस में खरल करें और सुखाकर आतसी शीशी में
भरदें। तदनंतर 12 प्रहर इसे बालुकायंत्र में पकावे। यंत्र के स्वांगशीतल होने पर
उसके गले में लगे हुये रस को शीशी तोड़कर निकाल लें। (शीशी के तले में स्वर्ण भस्म
मिलेगी उसे पृथक रक्खे)
Ref: भैषज्य रत्नावली
Swarna
Sindoor cures all the diseases. It is nutritious, delays old age and
strengthens the body and mind.
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