सप्तामृत लोह (Saptamrit Lauh) के सेवन से तिमिर, क्षत (नेत्र का घाव),
लाल रेखाये, नेत्र की खाज, रतौंध, नेत्रार्बुद, नेत्रतोद, नेत्रदाह (नेत्र की जलन), नेत्रशूल, पटल,
काच और पिल्लादि रोगो का नाश होता है।
यह प्रयोग
मनुष्यों के केवल नेत्ररोग को ही नष्ट नहीं करता परंतु, दांत, कर्ण (कान) और ऊर्ध्वजत्रुगत (गरदन के
ऊपर के) रोगों का भी नाश करता है।
यह सप्तामृत लोह
पलित रोग (बाल सफेद होना) को नष्ट करता है और बहुत समय की पुरानी मंदाग्नि को
अत्यंत तीक्ष्ण कर देता है।
सप्तामृत लोह (Saptamrit Lauh) के सेवन करने से कामशक्ति अत्यंत बढ जाती
है और मुखमण्डल दीप्त हो जाता है। बाल अत्यंत काले हो जाते है और दृष्टि गिद्ध के
समान तीक्ष्ण हो जाती है। इसको सेवन करने वाला मनुष्य 100 वर्ष तक सुखपूर्वक जी
सकता है।
मात्रा: 1 से 2
गोली तक। सुबह-शाम दूध के साथ।
सप्तामृत लोह घटक
द्रव्य और निर्माण विधि
(Saptamrit Lauh Ingredients):
हरड़, बहेड़ा,
आमला, मुलैठी,
लोह भस्म, मधु और घी प्रत्येक 1-1 भाग लें। लोहे के
खरल में सबको एकत्र खरल करें और तैयार हो जाने पर 2-2 रत्ती की गोलियां बनालें। (1
रत्ती = 121.5 mg)
सूचना: यहाँ पर
ग्रंथ में मधु और घी समान भाग लेने को लिखा है,
लेकिन यह गलती है। घी और मधु को हमेशा विषम मात्रा में ही प्रयोग करें। घी और मधु
को समान मात्रा में लेने से विष (Toxin) बन जाता है।
Ref: योग रत्नाकर, रसेंद्रचिंतामणि
Saptamrit
Lauh is useful in eye diseases. It also supports digestion and libido.
Saptamrit Lauh can also be used as general tonic.
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