चोपचिन्यादि
चूर्ण (Chopchiniyadi
Churna) के सेवन से 5 प्रकार के
उपदंश (Syphilis), प्रमेह,
व्रण (घाव), वातरोग (Musculoskeletal Disorder) और कुष्ठ (Skin Diseases) का नाश होता है।
चोपचिन्यादि
चूर्ण कृमिध्न (कृमि का नाश करनेवाला), वात-पित्त नाशक और रक्तशोधक (Blood Purifier) है। इसके सेवन से फ़िरंग, उपदंश और इन रोगों के अनुबंधि विकारों का नाश होता
है।
मात्रा: 3 से 6
ग्राम तक। शहद और घी के साथ सुबह-शाम। शहद और घी विषम मात्रा में लें। या शहद को
घी से कम लें या घी को शहद से कम लें। बराबर मात्रा में न लें। बराबर मात्रा में
लेने से यह विष तुल्य बन जाता है।
पथ्य: शालीचावल
तथा अरहर की दाल, घी, मधु,
गेहु, सैंधा नमक,
सुहाञ्जना, तोरई,
अदरक और मंदोष्ण (थोड़ा गरम) जल।
चोपचिन्यादि
चूर्ण घटक द्रव्य और निर्माण विधि: चोपचीनी का चूर्ण 20 तोले, खांड 5 तोले, पीपल,
पिपलामूल, मरिच,
लौंग, अकरकरा,
तालमखाना, सोंठ,
वायविडंग और दालचीनी प्रत्येक का चूर्ण 1.25-1.25 तोले लेकर सबको एकत्र खरल करें
और प्रयोगार्थ सुरक्षित रक्खें।
Chopchiniyadi
Churna is useful in syphilis, wound, musculoskeletal disorder and skin
diseases.
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