अम्लपित्तान्तक
रस (Amlapittantak
Ras) अम्लपित्त (Acidity) की शांति करता है। अम्लपित्तान्तक रस एक मात्र शोधक, दाहनाशक (जलन का नाश करने वाला), पित्तनाशक, मधुरविपाकी, क्षोभ (Irritation) का नाश करने वाला और अंत्र (Intestine) कलाओं के शोथ (सूजन) को दूर करनेवाला ही नहीं है, अपितु इसके सेवन से यकृत (Liver) और प्लीहा (Spleen) के विकार भी शांत होते है। अग्नि की
वृद्धि होती है। रस-रक्त का शोधन, धातुगतज्वलन की शांति और विदाह (जलन) के
कारण होनेवाले शिरोरोग का नाश होता है। इसको
अम्लपित्तान्तक योग और अम्लपित्तान्तक वटी के नाम से भी जाना जाता है।
अम्लपित्तान्तक
रस के सेवन से पेट की सभी श्लेष्म कलाये
निर्विष होकर शरीरवर्धक रसों की उत्पत्ति करती है। इसका सेवन ऊर्ध्व और अधोगत
दोनों ही अम्लपित्त विकारों में किया जाता है।
मात्रा: 4 रत्ती।
मधु मिलाकर चाटें। (1 रत्ती = 121.5 mg)
अम्लपित्तान्तक
रस घटक द्रव्य और निर्माण विधि
(Amlapittantak Ras Ingredients):
रससिंदूर, अभ्रक भस्म और लौह भस्म समान भाग लेकर, सब के बराबर हरड़ मिलाकर चूर्ण करें।
Ref: रसेंद्र चिंतामणि
Amlapittantak
Ras is useful in acidity, swelling on bowels, liver and spleen disorder.
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