अमरसुंदरी वटी (Amarsundari Vati) विषध्न (जहर का नाश करने वाली), कृमिध्न (कृमि का नाश करने वाली), आक्षेपध्न, आमशोषक (आम=अपक्व अन्न रस जो शरीर में
रोग पैदा करता है), शोथ (सूजन) नाशक, वात-कफ नाशक और पित्त शामक है। इसके सेवन से वात-कफ
द्वारा होनेवाले विकार तथा आम, कफ, शरीर का जकड़ जाना, बुखार आदि, वात-कफ विकारों के कारण होनेवाले
मस्तिष्क, नेत्र,
मुख, कंठ के विकार, श्वास, बवासीर,
गुदपाक और अन्य अनेक विकार शांत होते है।
अमरसुंदरी वटी (Amarsundari Vati) पाचक है और पाचन के अभाव द्वारा होनेवाले
विकारो को नाश करने की उत्तम औषधि है। ये गोलियां अपस्मार (Epilepsy), सन्निपात, श्वास,
खांसी, गुदरोग और 80 प्रकार के वायुरोग और
विशेषकर उन्माद (Insanity) का नाश करती है।
मात्रा: 1 से 4
गोली। साधारण उष्ण जल तथा उष्ण दूध के साथ।
अमरसुंदरी वटी
घटक द्रव्य तथा निर्माण विधि
(Amarsundari Vati Ingredients): त्रिकटु, त्रिफला, पीपलामूल,
चीता, लोहभस्म,
चतुर्जात, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, शुद्ध मीठा तेलिया, वायविडंग, अकरकरा और नागरमोथा प्रत्येक द्रव्य समान
भाग लें तथा गुड सम्पूर्ण औषधियों के वजन से 2 गुना लें। प्रथम पारे और गंधक की
कज्जली बनावें। अनंतर उसमें मीठे तेलिये को मिश्रित करे तत्पश्चात अन्य द्रव्यों
के सूक्ष्म चूर्णों को मिलाकर भलीभाँति खरल करें। मिश्रण के भलीभाँति तैयार होने
पर उसमें गुड मिलावें। यदि गुड खरल में मिश्रित न किया जा सके तो एक लकड़ी के चौड़े
तख्ते पर धीरे-धीरे गुड में चूर्ण मिलाते जाय और उसे कूटते जाय। इस प्रकार जब
सम्पूर्ण चूर्ण गुड में समा जाय तब गुड को अच्छी तरह कुटें कि जिससे द्रव्यों का
गुड के कण कण में सम्मिश्रण हो जाय। तत्पश्चात 4-4 रत्ती (1 रत्ती=121.5 mg) की गोलियां बनाकर प्रयोग में लावें।
Ref: बृहद निघंटु रत्नाकर
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