मंगलवार, 23 जुलाई 2019

अग्निसंदीपन रस के फायदे / Agnisandipan Ras Benefits


अग्निसंदीपन रस (Agnisandipan Ras) के सेवन से अग्निवृद्धि होती है। अजीर्ण, अम्लपित्त और पेट की गांठ आदि का शीघ्र नाश होता है। तीनों ही दोषों (कफ, पित्त और वायु) संशमन करने वाली औषधियों के योग से बनी हुई यह औषध पेट के अनेक रोगों के लिये हितावह है। अग्निसंदीपन रस के सेवन से पाचक अग्नि बढती है। आम (अपक्व अन्न रस जो शरीर में रोग पैदा करता है) का शोषण होता है। वायु का अनुलोम होता है और जठर के दोषों से एकत्र हुये विषों का संशोधन होता है।

अग्निसंदीपन रस (Agnisandipan Ras) पाचक, दीपक, वातानुलोमक, आम शोषक, अग्निवर्धक, यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen) और ग्रहणी (Duodenum) के दोषों को दूर करके रक्त की वृद्धि करने वाली सुंदर औषध है। इसका सेवन सुबह-शाम जल में मिलाकर करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा अंत्र (Intestine) की शिथिलता मिटती है।

मात्रा: 2 से 4 रत्ती (1 रत्ती = 121.5 mg)

अग्निसंदीपन रस घटक द्रव्य और निर्माण विधि (Agnisandipan Ras Ingredients): पीपल, पिपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, कालीमिर्च, पांचों नमक, यवक्षार, सज्जीक्षार, सुहागे की खील, सफेद जीरा, काला जीरा, अजवायन, वच, सौंफ, भुनीहुई हींग, चीते की छाल, जायफल, कूट, जावित्री, दालचीनी, तेजपात, इलायची, इमली का क्षार, चिरचिटे का क्षार, शुद्ध वच्छनाग, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, वंग भस्म, लौंग और हरड़ का चूर्ण, प्रत्येक 1-1 भाग लें तथा अम्लवेतस 2 भाग और शंख भस्म 4 भाग लेकर प्रथम पारे और गंधक की कज्जली बनावें। तदनंतर लौह, अभ्रक और वंग भस्म उसमें मिलावें और फिर अन्य सब द्रव्यों को उसमें मिलाकर उसको पंचकोल के क्वाथ, चीते के क्वाथ, चिरचिटे के क्वाथ और खट्टे लोनियों के क्वाथ या रस की 3-3 भावनाये पृथक पृथक देवें। और अंत में नींबु की 21 भावनाये देकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनाकर छाया शुष्क करके रक्खे।

Ref: भैषज्य रत्नावली

Agnisandipan Ras strengthens digestive fire. It cures indigestion, acidity and abdominal lump.

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