पंचकोल चूर्ण
रुचिकर, पाचक और दीपन है। इसके सेवन से आनाह
(अफरा), प्लीहा (Spleen),
गुल्म (Abdominal Lump), शूल और कफज पेट के रोग नष्ट होते है।
कोल मात्रा में
प्रयुक्त होने से इसे पंचकोल कहा गया है। कोल अर्थात 1 तोला। यह रस और पाक में कटु, रुचिकर, तीक्ष्ण,
पाचन, दीपन,
वात-कफनाशक, पित्त प्रकोप, श्लेष्मकलाओ के विकारों को दूर करनेवाला और आध्यमान, प्लीहा, गुल्म आदि रोगों को नाश करने वाला है।
मात्रा: 3 से 6
ग्राम तक। उष्ण जल के साथ। सुबह-शाम।
घटक द्रव्य और
निर्माण विधि
(Panchkol Churna Ingredients):
पीपल, पिपलामूल,
चव, चीतामूल और सोंठ प्रत्येक के समभाग चूर्ण
को लेकर एकत्र मिश्रित करके प्रयोग में लेवें।
Ref: शा. ध. (शार्गंधर), यो. त. (योग तरंगिनी) भै. र. (भैषज्य रत्नावली), भारत भैषज्य रत्नाकर-3879
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