संतरा (नारंगी) आहार तथा पान दोनों का काम देता है।
संतरे में सारे शरीर को शुद्ध कर देने का गुण है। यह प्रत्येक पुरुष के लिये रोचक
है। इसको शिशु और वृद्ध समान रूप से खा सकते है। जिन लोगों को व्यवसाय वश बैठे
रहना पड़ता है और जिन्हें कब्ज रहता है उनके लिये संतरा (नारंगी) सुंदर सुपच आहार
है। संतरे (Orange) का रस पेट की ग्रंथियों को उत्तेजित कर
भूख बढ़ाता है। वह संधिवात तथा दंतपूयमेह (Pyorrhoea) से बचाता है। प्रतिश्याय (जुकाम) को भी
रोकता है। सर्व प्रकार के बुखारों, श्वास-सहित क्लोमकंडिका के सर्व रोगों (Bronchial affections) और पैत्तिक उपद्रवों (Biliary troubles) की चिकित्सा है। यदि आपकी संधियों में
कठोरता आ गई है व नाड़ीयों में चुभक (Tivitching) की पीड़ा हो रही है, मस्तिष्क स्वच्छ नहीं है, आलस्य सताता है और नींद उचटती है तो 2-4 सप्ताह तक
संतरों का सेवन कीजिये और मध्यान्हार में भी किसी हरे शाक के प्रचुर सलाद के साथ
खाइये। इससे आप स्वास्थ्य की उन्नति स्वयमेव प्रत्यक्ष देख सकेंगे।
संतरे के एक चमचा
रस में 10 छटांक दूध का गुण है। उसमें विटामिन सी,
खटिक (Lime) और पोटाश भी है।
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