किसी भी रोग की
चिकित्सा करने से पहले यह जानना जरूरी है कि, रोग के कारण क्या है और उसके लक्षण क्या
है? लक्षणो से पता चलता है कि, रोग किन दोषों के कुपित होने से हुआ है। आयुर्वेद में
मुख्य तीन दोष है। कफ, पित्त और वायु। इन तीनों में से किसी एक, दो या तीनों दोषों के कुपित होने से रोग होता है।
वायु से 80
प्रकार के रोग होते है (जैसे पक्षाघात)। अगर शरीर में या शरीर के किसी अंग में
दर्द होता है तो जरूर वायु ही करणभूत होगा। वायु का प्रकोप हमेशा दोपहर के बाद बढ़
जाता है और शाम को बहुत दर्द होता है। यह वायु के लक्षण है।
पित्त से 40
प्रकार के रोग होते है (जैसे अम्लपित्त)। शरीर में जलन के लिये पित्त ही करणभूत
है। इसका प्रकोप दोपहर को ज्यादा होता है।
अम्लपित्त के
कारण:
परस्पर विरुद्ध
(मछली, दूध आदि),
दूषित, अम्ल,
विदाही (जलन करनेवाला) और पित्त को कुपित करनेवाले पदार्थ खाने-पीने से पित्त
कुपित होता है और अपने करणों से संचित हुआ पित्त अम्लपित्त रोग (Acidity) उत्पन्न कर देता है। इस रोग को एसिडिटी और Heartburn भी कहते है।
अम्लपित्त के
लक्षण (Acidity
Symptoms):
भोजन का ठीक
परिपाक नहीं होता, अनायास थकावट मालूम होती है, उबकाई, कड़ुवी और खट्टी डकारें आती है, शरीर में भारीपन रहता है, ह्रदय और कंठ में जलन होता है, अरुचि होती है। इन लक्षणों को देखकर वैध अम्लपित्त
रोग (Acidity) निश्चित करते है।
अम्लपित्त की
चिकित्सा: घरेलू नुस्खे, शास्त्रोक्त औषधियाँ और पेटंटेड औषधियाँ।
अधोगत अम्लपित्त
के लक्षण:
प्यास, मूर्छा, भ्रम (चक्कर), मोह तथा पीला, काला या लाल रंग का पित्त गुदा मार्ग से
गिरता है और दुर्गंध आती है, उबकाई,
कोठ, मंदाग्नि,
रोमांच, पसीना और शरीर में पीलापन ये लक्षण
अम्लपित्त की अधोगति होने पर प्रकट होते है। (सदा नहीं रहते, कभी-कभी होते है)
ऊर्ध्वगत
अम्लपित्त के लक्षण:
उल्टी का रंग
हारा, पीला,
नीला या कुछ लाल होता है। मांस के धोवन के समान अथवा अत्यंत चिकना और स्वच्छ होता
है। भोजन विदग्ध होने पर अथवा बिना भोजन किये ही तिक्त और अम्लपित्त वमन (उल्टी)
होता है। इसी प्रकार की डकारें भी आती है। ह्रदय,
कंठ, कोख में जलन और सिर में पीड़ा होती है।
कफ-पित्त के
लक्षण:
हाथ-पाँव में जलन
और बड़ी गर्मी मालूम होती है। भोजन में अत्यंत अरुचि,
बुखार, शरीर में खुजली होती है, सैंकड़ों फुंसियाँ निकलती है या चकते पड़ जाते है। ऊपर
कहे रोग समूह भी होते है। ये लक्षण कफ-पित्त के है।
वातयुक्त
अम्लपित्त (एसिडिटी), वात-कफयुक्त अम्लपित्त और कफयुक्त
अम्लपित्त को बुद्धिमान वैध दोषों के लक्षण देखकर पहचाने, क्योंकि यह रोग वैधों को छर्दि (उल्टी) और अतिसार (Diarrhoea) के भ्रम में डाल देता है। उनके लक्षण अलग-अलग होते
है।
वातयुक्त
अम्लपित्त के लक्षण:
कंप, प्रलाप (बेहोशी में बोलना), मूर्छा, अंगों में झुन-झूनाहट, अंगों में पीड़ा, अंधकार-सा मालूम होना, चक्कर, मोह और रोमांच होता है।
कफयुक्त
अम्लपित्त के लक्षण:
रोगी कफ थूकता है, शरीर में भारीपन और जड़ता होती है, अरुचि होती है, शरीर में टूटने की सी पीड़ा होती है, शरीर शीतल बना रहता है,
उल्टी होती है, मुंह में कफ भरा-सा रहता है, जठराग्नि और बल की क्षीणता होती है, शरीर में खुजली होती है, नींद अधिक आती है।
वात-कफयुक्त अम्लपित्त
के लक्षण:
इस में वात और कफ
दोनों के लक्षण प्रकट होते है। खट्टी, कड़ुवी,
चरपरी डकारें आती है और ह्रदय, कोख और कंठ में जलन होती है); चक्कर, मूर्छा,
अरुचि, उल्टी,
आलस्य, शिर में पीड़ा, मुंह से लार गिरना और मुंह में मिठास मालूम होना, ये लक्षण प्रकट होते है।
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