रास्नादि गुग्गुल
के सेवन से वातज कर्ण रोग, शिरोरोग,
नाड़ीव्रण (Sinus) और भगंदर का नाश होता है। यह औषध आमपाचक, वातानुलोमक, स्वेदल (पसीना लानेवाला), सहज रेचक और स्नेह्य है। इसके सेवन से रंध्रगत वात
विकारों का नाश होता है।
मात्रा: 1 से 2
गोली तक उष्ण जल के साथ सुबह-शाम।
घटक द्रव्य और
निर्माण विधि
(Rasnadi Guggulu Ingredients):
रास्ना, गिलोय,
एरंडमूल, देवदारू और सोंठ प्रत्येक 1-1 भाग लेकर
सूक्ष्म चूर्ण बनावे और चूर्ण को इसी के समान अर्थात 5 भाग सुद्ध गुग्गुल में
मिलाकर तैयार करें। (गुग्गुल में थोड़ा-थोड़ा घी मिलते जाय और कूटते जाय) तैयार होने
पर 4-4 रत्ती की गोलियां बनालें। (1 रत्ती =121.5 mg)।
Ref: यो. र. (योगरत्नाकर), भा. भै. र. (भारत भैषज्य रत्नाकर 5932)
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